नई दिल्ली I चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के साथ ही भारत ने इतिहास रचने की ओर कदम बढ़ा दिया था। चंद्रयान अब चांद की कक्षा में दाखिल हो चुका है और कुछ ही दिनों में चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सकता है। ISRO द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, चंद्रयान का ‘विक्रम लैंडर’ 10 दिन बाद लैंडिंग करेगा। चंद्रयान का सबसे पहला और बड़ा मकसद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है और अगर ऐसा होता है तो यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत पहला देश होगा। दरअसल, दक्षिणी द्रुव वो जगह है, जहां आज तक कोई नहीं पहुंचा है।
धरती से चंद्रमा का केवल एक हिस्सा दिखता है, जिसे नियर साइट कहा जाता है। वहीं, जो हिस्सा नहीं दिखता उसे फार साइट कहा जाता है। आज तक जितने भी सैटेलाइट चांद पर लैंड हुए वो नियर साइट पर ही लैंड हुए हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि डार्क साइट पर उतरने पर इसका कनेक्शन टूटने का डर रहता है। अब अगर भारत का चंद्रयान दक्षिणी द्रुव यानी डार्क साइट पर सफल लैंडिंग करता है, तो ये इतिहास रच देगा।
चंद्रयान कब करेगा लैंडिंग
इसरो की माने तो चंद्रयान का ‘विक्रम लैंडर’ 23 अगस्त को चांद पर लैंड करेगा। अगर सब ठीक रहा तो भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा।
क्यों खास है दक्षिणी द्रुव?
- दक्षिणी द्रुव पर पहुंचना आसान नहीं है, इसलिए उसकी अभी तक कोई खास जानकारी किसी के पास नहीं है। माना जाता है कि इस साइट पर चांद की सबसे पुरानी और मोटी परत है जो गड्ढों (क्रेटर्स) से भरी है।
- अब चांद के बारे में नई जानकारी पाने के लिए पुरानी परत की जांच करना काफी अहम होगा। इसलिए ये साइट काफी खास मानी जाती है, क्योंकि इसके बारे में अब तक कोई नहीं जान सका है।
- इसी के साथ चांद का ये हिस्सा पृथ्वी के दक्षिणी द्रुव अंटार्कटिका की तरह ठंडा माना जाता है। दक्षिणी द्रुव को ठंडा इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि इसपर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती है और ये छाया में रहता है।
- कम तापमान होने के चलते यहां खनिज और पानी होने की बात कही जाती है, जिसकी पुष्टि पहेल मून मिशन में हुई थी।
- नासा की मानें तो इस साइट पर पानी या बर्फ के अलावा कई दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी मिल सकते हैं। अगर यहां पानी मिल जाता है तो इससे पानी की समस्या दूर होगी और रॉकेट फ्यूल बनाने में भी मदद मिलेगी।
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