रायपुर,09 अगस्त। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में बुधवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा ने कहा कि देखा देखी ही सही, अगर आप किसी के अच्छे गुणों को अपनाते हो तो भी आपके जीवन का कल्याण हो जाएगा। साथ ही आपकी जितनी शक्ति उतना तप आपको करना चाहिए। अब पर्युषण महापर्व आने वाला है, अपने व्यापार की कमाई का सदुपयोग करने का समय आ गया है।
साध्वीजी ने कहा कि हमें अपने कर्मों का क्षय करना है लेकिन कर्मों का क्षय कैसे होगा। मन, वचन और काया से मिच्छामी दुक्कड़म कर लीजिए क्योंकि कर्मचक्र के केंद्र बिंदु पर ही कर्मों का क्षय किया जा सकता है। आप माफी मांग कर धीरे-धीरे अपने भव को शुद्धतम बना सकते हो। जीवन में जो भी अशुभ हुआ, वह या तो आपने जानबूझ कर किया या फिर वह अनजाने में हुआ, उसकी स्मृति उभर ही जाती है। आप प्रायश्चित करते रहिए और माफी मांग कर आगे बढ़ते रहिए, ऐसा करने से आपके बंधे हुए कर्म पूरे तो नहीं छूटेंगे पर काफी हद तक उनका प्रभाव कम हो जाएगा। हमारा किसी से झगड़ा हो जाए, कहा-सुनी हो जाए, तू-तू, मैं-मैं हो जाए तो आप रात को अबोला होकर मत सो जाना। क्योंकि आपको यह नहीं पता है कि आप रात को तो सो रहे पर क्या अगली सुबह आपकी नींद खुलेगी या नहीं, हमें बहुत सावधान होकर चलना है। हमारे साथ जो भी बात हो रही है, हमें रात को उस बात को खत्म कर नींद लेना चाहिए। इस पहल को करने में आपको कुछ तकलीफ जरूर होगी लेकिन आपको यह करना ही होगा। ऐसा करने में हमारा अहंकार भी पीछे नहीं हटता वह चाहता है कि अगला व्यक्ति हमसे पहले आकर माफी मांगे और वह भी ऐसा ही सोचता है कि हम उनसे जाकर पहले बात शुरू करें। कई बार ऐसा करते पूरी जिंदगी बीत जाती है, अगर सामने वाले व्यक्ति ने दुनिया को अलविदा कह दिया तो यह बात अंदर ही अंदर आपको कचोड़ कर रख देगी और फिर आप घुट कर रह जाओगे।
साध्वीजी आगे कहती है कि आपको जीभ मिली है तो केवल खाने का स्वाद लेकर आनंदित नहीं रहना है। अगले भव में अगर आप गुंगे पैदा हुए तो फिर आप केवल खाने का स्वाद बस ले सकेंगे या हो सकता है आपको दोनों ही ढंग से नहीं मिले। आज आपने शादी-पार्टियों में देखा होगा कि सलाद के बीचोंबीच फलों को छिलकर उसे अलग-अलग पुतलों का रूप दिया जाता है। फल-सब्जियों को छिल-काटकर उन्हें विभिन्न रूप से आकर्षक बनाया जाता है। यह दर्शन-प्रदर्शन आपको पाप की बहुत की गहरी खाई में उतार सकता है। फल-सब्जियों में भी जान होती है, हालांकि हम इन्हें खाएंगे नहीं तो जाएंगे कहां, इसलिए केवल अपने खाने तक इसे सीमित रखो और इन्हें खाने के बाद प्रायश्चित करना भी आपका फर्ज है। केवल मनुष्य भव में ही हम कुछ अच्छा सुन सकते है और उसे अपने जीवन में उतार सकते हैं, लेकिन हम आज ऐसा कर नहीं रहे हैं। पहले हम अनाज को धोकर उसे सुखाते और फिर उन्हें कोठी में रख देते थे। बुजुर्गों के अनुसार कोठी हमेशा भरी हुई रहनी चाहिए। कोठी में कही से हवा नहीं जानी चाहिए, समय-समय पर अनाज को धूप भी दिखाना चाहिए। यदि कोठी खाली रही तो ऐसा माना जाता था कि माता लक्ष्मी नाराज हो जाएंगी। इसके बावजूद हमारे कर्म बंध ही जाते है पर यह बहुत कम होते है। आज हम तो पैकेट वाला अनाज लाते है, एक बार उन्हें धोते है और पकाकर उसे ग्रहण कर लेते है। यह विचरणीय है कि ऐसा कर हम अपने कर्म बांध रहे है पर वह हमें दिखाई नहीं दे रहे है।
दादाबाड़ी में कुंभ कलश की स्थापना
एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में 27वें नवकार दरबार का आगाज हो चुका है। मनोहरमय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुशील कोचर और महासचिव नवीन भंसाली ने बताया कि नवकार जपेश्वरी परम पूज्य शुभंकरा श्रीजी म.सा. की पावन निश्रा में दरबार के तेजस्वी तृतीय दिवस पर मंगलवार को कुंभ कलश स्थापना, दीप स्थापना, नवग्रह, दस दीकपाल अष्टमंगल स्थापना हुई। उन्होंने दादाबाड़ी प्रवचन स्थल पर लगाई गई भव्य झांकी देखने नगरवासियों से आग्रह किया है।
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