नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी। सुनवाई करने वाले पांच जजों की बैंच में में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
3 अगस्त को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि आर्टिकल 370 को छेड़ा नहीं जा सकता। इसके जवाब में जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस आर्टिकल का सेक्शन (c) ऐसा नहीं कहता। इसके बाद सिब्बल ने कहा, ‘मैं आपको दिखा सकता हूं कि आर्टिकल 370 स्थायी है।’
आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट में 3 साल बाद सुनवाई हो रही है। इससे पहले, 2020 में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी। तब कोर्ट ने कहा था कि हम मामला बड़ी संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर रहे हैं।
3 अगस्त को कोर्ट रूम में क्या हुआ?
सिब्बल- सब कुछ छोड़ दीजिए, आप (केंद्र सरकार) बिल पेश नहीं कर सकते।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़- अभी तक जम्मू-कश्मीर की सहमति की आवश्यकता है और अन्य राज्यों के लिए विधेयक पेश करने के लिए केवल विचारों की जरूरत है।
जस्टिस सूर्यकांत- संवैधानिक ऑर्डर्स को पास करने के लिए कौन सी प्रक्रिया होती है?
सिब्बल- सभी सहमति से पास हुए।
जस्टिस सूर्यकांत- लेकिन प्रक्रिया क्या थी? क्या ये संसद से पास हुए या राष्ट्रपति द्वारा?’
सिब्बल- यह राष्ट्रपति की अधिसूचना के माध्यम से हुआ। आपसी सहमति बनाने के बाद सलाह ली गई। इस तरह इसे लागू किया गया।
सिब्बल- इसके लिए लोगों की राय भी लेनी थी।
सिब्बल- जब सभी राज्य, संघ से आपस में जुड़े हुए हैं, उन्होंने (सरकार) ने सलाह लेने की जरूरत नहीं समझी।
सिब्बल- तो आप केंद्र और राज्य के बीच का संबंध पूरी तरह से खो देते हैं। आप (सरकार) कार्यपालिका के साथ-साथ विधायिका के रूप में राज्य की शक्तियों को अपने पास रखते हैं। और आप किसी अन्य संस्था के संदर्भ के बिना निर्णय लेते हैं।
सिब्बल- …तो आप अपनी सहमति दे दीजिए। जिन लोगों ने खुद को यह संविधान दिया, उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया। यह मूलतः संवैधानिक ढांचे को तोड़ने जैसा है।
सिब्बल- जम्मू और कश्मीर (J&K) के संविधान के प्रावधानों के अनुसार, विधायिका के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश करने की शक्ति नहीं थी।
सिब्बल- जम्मू-कश्मीर के संविधान के 1950 और 1954 के ऑर्डर के मुताबिक एक वादा किया गया था कि जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को संशोधित करने का इरादा रखने वाला कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बीआर गवई- जब तक पूरी जम्मू-कश्मीर की आबादी के विचार को ध्यान में नहीं रखा जाता, निरस्तीकरण नहीं किया जा सकता?
सिब्बल- मैं समझता हूं कि किसी न किसी स्तर पर ऐसा करना ही होगा, लेकिन फिर इसे ऐसा करने के लिए संवैधानिक तरीके का पालन करना होगा।
सीजेआई चंद्रचूड़- आप कह रहे हैं कि संविधान का एक प्रावधान है, जो संविधान की संशोधन शक्तियों से भी परे है। तो हम मूल ढांचे से अलग एक नई कैटेगरी बना रहे हैं और अनुच्छेद 370 उसी के तहत आता है?
सिब्बल- यह कोई नई कैटेगरी नहीं है। यह एक ऐसी कैटेगरी है, जो अस्तित्व में है।
जस्टिस कौल- क्या आप कह सकते हैं कि इसे (अनुच्छेद 370) बदलने की कोई व्यवस्था नहीं है, भले ही हर कोई इसे बदलना चाहता हो? आप कहना चाह रहे हैं कि पूरा कश्मीर चाहे तो भी इसे बदला नहीं जा सकता?
सिब्बल- अनुच्छेद 370 में संशोधन या बदलाव की कोई प्रक्रिया नहीं है।
2 अगस्त- कोर्ट रूम में ये हुआ
बुधवार (2 अगस्त) को सुनवाई के दौरान CJI ने याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि आर्टिकल 370 खुद ही अपने आप में अस्थायी और ट्रांजिशनल है। क्या संविधान सभा के अभाव में संसद 370 को निरस्त नहीं कर सकती?
इस पर जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा था कि संविधान के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर से 370 को कभी हटाया नहीं जा सकता। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि आर्टिकल 370 के मुताबिक, संसद सिर्फ राज्य सरकार के परामर्श से जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बना सकती है। 370 को निरस्त करने की शक्ति हमेशा जम्मू-कश्मीर विधायिका के पास है।
सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि पहले 370 अस्थायी था, लेकिन जब 1950 में संविधान सभा भंग हुई, तो ये अपने आप स्थायी आर्टिकल बन गया। अगर इसे हटाना है तो संविधान सभा की इजाजत लेनी होगी, लेकिन वो अब है ही नहीं, ऐसे में इसको हटाया नहीं जा सकता है।
IAS शाह फैसल और शेहला राशिद ने याचिका वापस ली
याचिकाकर्ताओं का नेतृत्व कर रहे सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने आखिरी सुनवाई के दौरान कहा था कि दो याचिकाकर्ता IAS शाह फैसल और शेहला राशिद शोरा ने याचिका वापस लेने के लिए अपील की है।
इस पर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर कोई याचिकाकर्ता अपना नाम वापस लेना चाहता है तो उन्हें कोई कठिनाई नहीं है। इसके बाद बेंच ने नाम वापसी की अनुमति दे दी।
4 साल से मामला सुप्रीम कोर्ट में
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था। अक्टूबर 2020 से संविधान पीठ ही इस मामले की सुनवाई कर रही है।
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