आपका शरीर आपकी पूंजी है, इसे व्यसन से व्यर्थ न करें : ओमानंद महाराज

रायपुर ,05 अगस्त। रायपुर के संतोषी नगर में विगत 5 दिनों से जारी श्रीराम कथा के पंचम दिवस, शनिवार को कथावाचक ओमानंद महाराज ने कहा कि हमारा शरीर सस्ता नहीं, अनमोल है। यह जनम-जनम की पूंजी है, इसे व्यसन के द्वारा व्यर्थ न करें। हमारे शरीर में ही भगवान का वास होता है, अपने शरीर को स्वस्थ रखें। आपका शरीर आपकी पहचान बताता है, जैसे स्वयंवर में उपस्थित राजाओं ने श्रीराम को देखकर जान लिया था कि ये ही धनुष तोड़ेंगे और माता सीता से विवाह करेंगे।

रामकथा से पहले मुख्य यजमान मित्रेश कुमार दुबे और उनकी धर्मपत्नी मीरा दुबे ने ओमानंद महाराज का पुष्पवर्षा का स्वागत किया। तत्पश्चात व्यास गद्दी और महाराज की आरती उतारी। इस दौरान मंच का संचालन धीरेन्द्र कुमार शुक्ला ने किया। इसके बाद वहां उपस्थित रामभक्त परिवार ने ओमानंद महाराज का अभिनन्दन किया और आशीर्वाद लिया। रामकथा प्रारंभ करते हुए महाराज ने कहा कि अधिमास में पूजा करने से उसका फल दुगना मिलता है। इससे जुड़े के किस्से का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजा युधष्ठिर ने एक बार महर्षि नारद से पूछा कि क्या कम पूजा करने से ज्यादा फल मिल सत्ता है?अगर ऐसा है तो मुझे बताएं। नारद जी ने कहा कि अधिमास में पूजा करने से उसका फल दुगना मिलता है।

रामकथा प्रारंभ करने से पहले भजन मंडली ने सुमधुर ‘सीताराम-सीताराम कहिये…’ भजन से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। ओमानंद महाराज ने कथा प्रारंभ करते हुए कहा कि सीता के विवाह के लिए राजा जनक ने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी महादेव के धनिष पिनाका को तोड़ेगा, उसी के साथ सीता का विवाह होगा। स्वयंवर की भव्य तैयारी हुई। दूर-दूर से हजारों राजा आये था, रावण भी आया था। इसी बीच महर्षि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण पहुंचे। उन्हें देखकर सभी चकित हो गए। ऐसी सुन्दर काया, इतना तेज चेहरा, एक अलौकिक आभा छटक रही थी। उन्हें देखकर कई राजाओं को यह प्रतीत हो गया था कि ये कोई साधारण बालक नहीं हैं, भगवान शिव का धनुष पिनाक यही तोड़ेंगे और सीता का विवाह इन्ही के साथ होगा

आगे ओमानंद महाराज ने बताया कि 10 हजार राजा उस धनुष को उठाना तो दूर की बात है, हिला भी नहीं पाए। स्वयंवर में लंकापति रावण भी आया था। उसने सभी ग्रहों और देवों को आदेश दिया था कि वे सब धनुष को पकड़कर रखेंगे। उसका आदेश था कि जब तक राजा जनक स्वयंवर समाप्त होने के बाद उपस्थित लोगों से जाने का आग्रह नहीं करेंगे, वे धनुष को पकड़े रहेंगे। जब रावण की बारी आई तो उसी समय आकाशवाणी हुई कि लंका वे भारी विपदा आई है, आप तुरंत पहुंचिए। रावण ने ग्रहों और देवों को आदेश दिया और लंका लौट गया। इसके बाद कोई भी उस धनुष को नहीं उठा पाया।

जब सब विफल हो गए तो निराश होकर राजा जनक ने कहा कि लगता है कि पृथ्वी वीर विहीन हो गई है। ऐसा कोई वीर नहीं है जो इस धनुष का खंडन कर मेरी पुत्री से विवाह कर सके। उन्होंने वहां उपस्थित समस्त राजाओं से जाने का आग्रह किया। लेकिन लक्ष्मण लला से रहा नहीं गया। वे उठ खड़े हुए, गुस्से में थे, अपने बड़े भाई राम के चरण स्पर्श कर राजा जनक से कहा कि जैसे कोई कच्चे घड़े को तोड़ देता है, मैं वैसे ही इस पृथ्वी को तोड़ दूंगा। लक्ष्मण इतने क्रोध में थे कि मानो सभा में भूकंप आ गया हो। तभी श्रीराम उन्हें बैठने का इशारा करते हैं। अब विश्वामित्र राम को उठने का आदेश देते हैं, गुरु की आज्ञा से राम धीरे-धीरे धनुष की ओर बढ़ते हैं, वहीं माता सीता की सखियां भगवान से प्रार्थना करती हैं कि धनुष हल्का हो जाए, लक्ष्मण जी अपने पैरों से धरती को दबाने लगते हैं। वहीं राजा जनक की बात सुनकर समस्त ग्रह और देवता भी धनुष को छोड़कर अपने अपने स्थान को लौट जाते हैं। राम धनुष के पास पहुँचते हैं, और कब धनुष टूटता है, किसी को भी पता नहीं चलता है। धनुष कैसे टूटा, यह किसी ने नहीं देखा, लकिन को भक्त है वो जानता है कि धनुष कैसे टूटा।

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]