नईदिल्ली । वाराणसी की एक अदालत ने शुक्रवार को काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दे दी। अदालत ने यह आदेश हिंदू पक्ष द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर सुनाया। इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि, अदालत ने वजुखाना को छोड़कर पूरे परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दी क्योंकि क्षेत्र को सील कर दिया गया है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
हिंदू पक्ष की याचिका के आधार पर ज्ञानवापी परिसर का सामान्य सर्वे हुआ था। अब इसका वैज्ञानिक सर्वे किया जाएगा। इस बीच जानना जरुरी है कि ज्ञानवापी मामले में अभी क्या हुआ है? वैज्ञानिक सर्वेक्षण कब से किया जाएगा? यह क्या पता लगाएगा? कार्बन डेटिंग क्या होती है?
ज्ञानवापी मामले में अभी क्या हुआ है?
वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से रडार तकनीक से सर्वे कराने के आवेदन को मंजूर कर लिया है। इसके साथ ही अब सील परिसर को छोड़कर बाकी सभी स्थानों का सर्वे होगा।
अदालत में हिंदू पक्ष की वादिनियों की तरफ से 16 मई 2023 को प्रार्थना पत्र दिया गया था। कहा गया था कि ज्ञानवापी में सील किए गए वजूखाना को छोड़कर बाकी क्षेत्र का एएसआई से रडार तकनीक से सर्वे कराया जाए। इस पर 19 मई को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने आपत्ति की थी। 14 जुलाई को सुनवाई पूरी हो गई थी। तब कोर्ट ने आदेश के लिए पत्रावली सुरक्षित रखते हुए सुनवाई के लिए 21 जुलाई की तिथि तय की थी।
वैज्ञानिक सर्वेक्षण कब से किया जाएगा?
अदालत ने कहा कि एएसआई द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण सुबह आठ से 12 बजे के बीच किया जाएगा और स्पष्ट किया कि नमाज पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा और मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इसके अलावा, सर्वेक्षण की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराने का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा कि चार अगस्त से पहले उसे एक रिपोर्ट सौंपी जानी चाहिए। अगली सुनवाई चार अगस्त को होगी।
वैज्ञानिक सर्वेक्षण क्या पता लगाएगा?
एएसआई के निदेशक को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण, खुदाई, डेटिंग पद्धति और वर्तमान संरचना की अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच करने का निर्देश दिया गया है। एएसआई द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण में यह पता लगाया जाएगा कि क्या वर्तमान संरचना का निर्माण एक हिंदू मंदिर की पूर्व-मौजूदा संरचना के ऊपर किया गया था? एएसआई संरचना के तीन गुंबदों के ठीक नीचे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण करेगी और यदि आवश्यक हो तो खुदाई भी कर सकती है।
एएसआई वैज्ञानिक तरीकों से इमारत की पश्चिमी दीवार की उम्र और निर्माण की प्रकृति की जांच करेगी। आदेश में सभी तहखानों की जमीन के नीचे जीपीआर सर्वेक्षण करने और यदि आवश्यक हो तो खुदाई करने का भी जिक्र है। एएसआई संरचना में पाए गए सभी कलाकृतियों की एक सूची तैयार करेगा, जिसमें उनकी सामग्री को पता लगा जाएगा जाएगा और वैज्ञानिक जांच की जाएगी और निर्माण की उम्र और प्रकृति का पता लगाने के लिए डेटिंग डेटिंग की जाएगी। हालांकि, आदेश में कहा गया है कि एएसआई निदेशक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विवादित भूमि पर खड़ी संरचना को कोई नुकसान न हो और यह बरकरार रहे।
किन सवालों के जवाब मिल सकते हैं?
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि देश की जनता को ज्ञानवापी से जुड़े इन सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं। ज्ञानवापी में मिली शिवलिंगनुमा आकृति कितनी प्राचीन है? शिवलिंग स्वयंभू है या कहीं और से लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी? विवादित स्थल की वास्तविकता क्या है? विवादित स्थल के नीचे जमीन में क्या सच दबा हुआ है? मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन कथित गुंबद कब बनाए गए? तीनों कथित गुंबद कितने पुराने हैं?
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग उस विधि का नाम है जिसका इस्तेमाल कर के किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है। कार्बन डेटिंग के विधि की खोज 1949 में अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। इस विधि के माध्यम से लकड़ी, बीजाणु, चमड़ी, बाल, कंकाल आदि की आयु पता की जा सकती है। यानी की ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी करीब-करीब आयु इस विधि के माध्यम से पता की जा सकती है। इसी कारण वादी पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे में कार्बन डेटिंग या किसी अन्य आधुनिक विधि से जांच की मांग की थी।
क्या होती है कार्बन डेटिंग की विधि?
दरअसल, हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन के तीन आइसोटोप पाए जाते हैं। ये कार्बन- 12, कार्बन- 13 और कार्बन- 14 के रूप में जाने जाते हैं। कार्बन डेटिंग की विधि में कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है। जब किसी जीव की मृत्यु होती है तब ये वातावरण से कार्बन का आदान प्रदान बंद कर देते हैं। इस कारण उनके कार्बन- 12 से कार्बन- 14 के अनुपात में अंतर आने लगता है।यानी कि कार्बन- 14 का क्षरण होने लगता है। इसी अंतर का अंदाजा लगाकर किसी भी अवशेष की आयु का अनुमान लगाया जाता है।
क्या पत्थर पर भी कारगर है कार्बन डेटिंग?
आम तौर पर कार्बन डेटिंग की मदद से 50 हजार साल पुराने अवशेष का ही पता लगाया जा सकता है। पत्थर और चट्टानों की आयु इससे ज्यादा भी हो सकती है। हालांकि, कई अप्रत्यक्ष विधियां भी हैं जिनसे पत्थर और चट्टानों की आयु का पता लगाया जा सकता है। कार्बन डेटिंग के लिए चट्टान पर मुख्यत: कार्बन- 14 का होना जरूरी है। अगर ये चट्टान पर न भी मिले तो इस पर मौजूद रेडियोएक्टिव आइसोटोप के आधार पर इसकी आयु का पता लगाया जा सकता है।
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