तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत, गुजरात हाईकोर्ट के आत्मसमर्पण के आदेश पर रोक

नईदिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को एक हफ्ते के लिए अंतरिम राहत दे दी है। कोर्ट का यह फैसला गुजरात उच्च न्यायालय की ओर से नियमित जमानत देने से इनकार किए जाने के बाद आया। दरअसल, तीस्ता की ओर से हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पहले शीर्ष कोर्ट की दो जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की, लेकिन दोनों जजों में असहमति के बाद मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया गया। पीठ में जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता शामिल थे।

पीठ ने नियमित जमानत याचिका खारिज करने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुनवाई की। तीस्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें पिछले साल 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी थी और उन्होंने जमानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वह 10 महीने से जमानत पर थीं ऐसे में हिरासत में लेने की इतनी जल्दी क्यों? कोर्ट ने पूछ कि अगर अंतरिम संरक्षण दिया गया तो क्या आसमान गिर जाएगा? उच्च न्यायालय ने जो किया है उससे हम आश्चर्यचकित हैं। इतनी चिंताजनक जल्दबाजी किसलिए?

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि किसी व्यक्ति को फैसले को चुनौती देने के लिए सात दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह व्यक्ति इतने लंबे समय से बाहर है। इस पर एसजी ने कहा कि जो दिखता है, उससे कहीं ज्यादा कुछ है। इस मामले को जिस सरलता के साथ सामने रखा जा रहा है, उससे कहीं अधिक है। यह उस व्यक्ति का सवाल है, जो हर मंच का अपमान कर रहा है।

एसजी ने कहा कि एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई थी और इसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की। गवाहों ने एसआईटी को बताया कि सीतलवाड़ ने उन्हें बयान दिया था और उनका फोकस एक विशेष पहलू पर था, जो गलत पाया गया। एसजी ने दलील दी कि सीतलवाड़ ने झूठे हलफनामे दायर किए, गवाहों को बरगलाया।

दो जजों की बेंच की राय अलग-अलग
इससे पहले 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम संरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की राय अलग-अलग रही। पीठ ने कहा, ‘जमानत देने के सवाल पर हमारे बीच असहमति है। इसलिए हम चीफ जस्टिस से इस मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं। इसके बाद न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने विशेष सुनवाई के तहत मामले की सुनवाई की और मुख्य न्यायाधीश से मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का आग्रह किया।

हाईकोर्ट ने तत्काल सरेंडर करने को कहा
इससे पहले शनिवार को गुजरात उच्च न्यायालय ने सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति निर्जर देसाई ने उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया, क्योंकि वह पिछले साल सितंबर में शीर्ष अदालत से अंतरिम जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘चूंकि आवेदक उच्चतम न्यायालय की ओर से दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर है, इसलिए उसे तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है। उन्हें जमानत पर रिहा करने से यह गलत संकेत जाएगा कि एक लोकतांत्रिक देश में सब कुछ किया जा सकता है, भले ही कोई व्यक्ति तत्कालीन सत्ता प्रतिष्ठान को सत्ता से बेदखल करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि को बदनाम करने के लिए इस हद तक चला जाए कि उसे जेल हो जाए। क्या ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।’  उच्च न्यायालय ने कहा कि यह दूसरों को भी इसी तरह से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

‘तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने का था इरादा’
कोर्ट ने कहा कि सीतलवाड़ ने बिना किसी आधार के मुकदमे दायर किए और गवाहों से सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न मंचों के समक्ष झूठे हलफनामे दायर करने के लिए कहा। इस पूरी कवायद का उद्देश्य निर्दोष लोगों को फंसाना, सरकार को अस्थिर करना और तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करना था। उन्हें जेल भेजना और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर करना था।  उच्च न्यायालय ने कहा,  आरोपित के प्रति कोई नरमी दिखाने से लोग समुदाय की भावनाओं के साथ खेलकर और लोगों की मानसिकता प्रभावित कर गैरकानूनी और गलत तरीके से अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

उच्च न्यायालय ने कहा, ”प्रथम दृष्टया, इस अदालत का मानना है कि आज, यदि आवेदक को जमानत दी जाती है, तो यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाएगा।”  अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया अदालत का यह भी मानना है कि ‘बेहद प्रभावशाली व्यक्ति’ सीतलवाड़ अपने एजेंडे को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं जैसा कि उन्होंने अतीत में ‘गवाहों को प्रभावित करके और सरकार, उसकी मशीनरी के साथ-साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ आक्रामक प्रचार करके’ किया था। इसमें कहा गया है कि आरोपियों ने अतीत में गवाहों को धमकाने, सबूतों से छेड़छाड़ करने और लोगों को प्रभावित करने का साहस भी दिखाया था। 

पिछले साल 25 जून को हिरासत में लिया गया था
गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने को लेकर अहमदाबाद अपराध शाखा पुलिस की ओर से दर्ज एक मामले में सीतलवाड़ को पिछले साल 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ हिरासत में लिया गया था। अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई, 2022 को मामले में सीतलवाड़ और श्रीकुमार की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को यह संदेश जाएगा कि कोई व्यक्ति बिना किसी सजा के आरोप लगा सकता है और बच सकता है।

इससे पहले उच्च न्यायालय ने 3 अगस्त 2022 को सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख तय की थी। इस बीच, उच्च न्यायालय की ओर से उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद उन्होंने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट (एससी) का रुख किया। शीर्ष अदालत ने पिछले साल दो सितंबर को उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी और गुजरात उच्च न्यायालय में उनकी नियमित जमानत याचिका पर फैसला होने तक निचली अदालत में अपना पासपोर्ट जमा करने को कहा था। शीर्ष अदालत ने उनसे मामले की जांच में जांच एजेंसी के साथ सहयोग करने को भी कहा था। सीतलवाड़ तीन सितंबर को जेल से बाहर आई थीं।

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