कुशीनगर । अपनों की डांट-फटकार व नसीहत से सीख लेने की बजाय बच्चे इसे बुरा मान रहे और अपने तरीके से इसका प्रतिरोध भी कर रहे हैं। प्रतिरोध करने के तरीके में चुपचाप घर छोड़ने जैसे मामले अधिक देखे जा रहे है। हाल के दिनों में घर छोड़ने के कई मामले सामने आए हैं। संयोग ठीक रहा कि घर से भागे ये बच्चे किसी गिरोह के चंगुल में नहीं फंसे और सभी को पुलिस ने सुरक्षित ढूंढ कर उनके स्वजन को सौंप दिया।
यह है पूरा मामला
तीन दिन पहले नेबुआ नौरंगिया इलाके के खोटहीं गांव में एक साथ जब तीन बालकों 11 वर्षीय आदित्य, 11 वर्षीय आशीष कुशवाहा व 10 वर्षीय सन्नी के लापता होने की खबर आम होते ही लोग हैरान रह गए। बच्चों की तलाश में स्वाट, सर्विलांस सहित चार टीमें लगाईं गईं। आसपास के जनपदों के अलावा गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर स्थापित आरपीएफ, जीआरपी में बच्चों की तस्वीर भेजकर पुलिस के उच्चाधिकारियों ने संपर्क साध सहयोग मांगा। इसी सक्रियता का परिणाम रहा कि तीनों को पुलिस ने 24 घंटे के भीतर गोरखपुर रेलवे स्टेशन परिसर से ढूंढ निकाला। बालकों के सुरक्षित मिलने की खबर पाकर स्वजन के साथ ही पुलिस ने भी राहत की सांस ली।
पूछताछ में आदित्य ने बताया कि माता-पिता के डांटने के बाद उसने घर छोड़ने का मन बनाया। दो दोस्त भी साथ चलने को तैयार हो गए और तीनों निकल गए। ट्रेन से लखनऊ गए। पैसे खत्म हो गए, तो परेशान भी हुए। अनजान शहर में भय लगा तो वहां से गोरखपुर आने वाली ट्रेन में बैठ गए।
बच्चों के मनोभाव को समझें माता-पिता: डा. विवेक
समाजशास्त्री डा. विवेक पांडेय का कहना है कि अभिभावक बच्चों के मनोभाव को समझेंउनकी रूचि के विपरित दबाव बनाकर जबरदस्ती न करें। चाहें पढ़ाई की बात हो या फिर उनके रहन सहन की। बच्चों की कमियों को शांत माहौल में पास बैठाकर चर्चा करें और उन्हें स्नेह के साथ समझाएं। ऐसा करने से बच्चों में सुधार होगा और वे अभिभावक की बात को बुरा नहीं मानेंगे।
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