भोपाल । अब आंख से ही शरीर की हर बीमारी का पता लगाया जा सकेगा। जी हां, ये सच है। एम्स भोपाल ऐसे कई डिवाइस खरीदने की तैयारी कर रहा है, जिससे रेटिना का स्कैन कर बीमारी की जानकारी मिल सकेगी। इससे सीटी स्कैन, एक्सरे की ज़रूरत भी कम हो जाएगी। ऐसा संभव होगा कृत्रिम बौद्धिकता (एआइ) से। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. डा. अजय सिंह ने एम्स में एआइ को लाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेज दिया है। इसके बाद एआइ के सेटअप को लगाने पर काम किया जाएगा।
हार्ट अटैक की आशंका भी बता देगा साफ्टवेयर
एम्स प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार एआइ से ऐसा सिस्टम डेवलप किया गया है कि चिकित्सक सही समय पर बीमारियों को चिह्नित कर सकते हैं। साफ्टवेयर के आधार पर ही यह काम करेगा। एआइ सिस्टम डायबेटिक रेटिनोपैथी के अलावा दूसरी चीजों पर भी इनसाइट दे सकता है। इसके अलावा आंख के स्कैन से ये भी पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति की उम्र कितनी है, बायोलाजिकल सेक्स क्या है, वह स्मोकिंग करता है या नहीं। इसके साथ ही स्कैन ये भी बता सकता है कि आगे उसे हार्ट अटैक की आशंका तो नहीं है।
हर माह एम्स में 1500 रेटिना के मरीज
एम्स भोपाल में हर रोज रेटिना की अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या करीब 50 होती है। ऐसे में एक माह में करीब 15 सौ मरीज ऐसे होते है, जिनको रेटिना संबंधित परेशानियां होती हैं।
शंकर नेत्रालय में हो रहा उपयोग
चेन्नई के शंकर नेत्रालय में अभी आंखों में डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। गूगल की मदद से इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया जा रहा है। इसका फायदा मरीजों को मिल रहा है। इससे ही प्रेरित होने के बाद इस तकनीक को एम्स में लाने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है।
सरकार को भेजा है प्रस्ताव
एम्स में हम एआइ को लाने के लिए काम कर रहे हैं, इसे लेकर सरकार को भी प्रस्ताव भेजा गया है। इसके आने से मरीजों में रोगों की पहचान करना आसान होगी। अभी इसका कुछ स्थानों में प्रयोग किया भी जा रहा है। हम वहां से भी इनके रिजल्ट की जानकारी लेंगे।
– प्रो. डा. अजय सिंह, कार्यपालक निदेशक, एम्स भोपाल
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