कोरबा, 29 जून । जिले में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार सादगी और कुर्बानी के जज्बे के साथ मनाया गया। मस्जिदों और ईदगाहों में मौलाना की इमामत में हजारों मुस्लिमों ने ईद-उल-अजहा की विशेष नमाज अदा की। मुस्लिम बंधुओं ने अमन चैन की दुआ मांगी। नमाज के बाद गले मिलकर एक दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी। घरों में बकरों की कुर्बानी की परंपरा का निर्वहन किया गया। घरों में फातिहा पढ़ी गई।
शहर के मरकजी ईदगाह दुरपा रोड, जामा मस्जिद कोरबा, मदीना मस्जिद, मस्जिद गरीब नवाज टीपी नगर, मस्जिद आला हजरत गेरवाघाट, मस्जिद गौसे आजम मुड़ापार, कोलियरी (नूरानी) मस्जिद एसईसीएल, शाही नूरी मस्जिद बुधवारी, खानकाह-ए चिश्तिया दादर, मस्जिद-ए गरीब नवाज रजगामार, मदरसा गुलशन मदीना ओमपुर, नूरानी मस्जिद दर्री, मस्जिद ए गौसिया रुमगरा, मदीना मस्जिद एचटीपीपी जैलगांव, मदीना मस्जिद एनटीपीसी, गौसिया मस्जिद बालको, जामिया फैजाने औलिया बल्गी, मदरसा गौसिया चुनचुनी कुसमुंडा, मदरसा हबीविया विकास नगर कुसमुंडा, मदरसा गरीब नवाज कुचैना कुसमुंडा, मदरसा गौमुल आज़म कृष्णानगर दीपका, मदरसा इजराहुल उलूम दीपका प्रोजेक्ट, मदरसा गौसुलवरा तिवरता दीपका, मुमताज शाही मस्जिद बांकीमोगरा, मस्जिद-ए गरीब नवाज तहसीलभांटा कटघोरा, ईदगाह कटघोरा सहित अन्य इबादतगाहों में तय वक्त पर जमात खड़ी हुई। ईद उल अजहा की 2 रकात नमाज अदा कराई ।
साथ ही शहर में अमन चैन और सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने सहित हज यात्रा में गए हाजियों के हज एवं कुर्बानी को कुबूल करने की दुआ मांगी। इस त्योहार को बकरे की कुर्बानी देकर मनाया गया। इसे तीन भागों में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को देते हैं और दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है।पर्व की तारीख हर साल बदलती रहती है क्योंकि यह कैलेंडर पर आधारित है। सऊदी अरब के सुप्रीम कोर्ट ने जिलहिज्जा का पहला दिन 19 जून को घोषित किया था। जिसके कारण भारत में 29 जून को बकरीद का त्योहार मनाया गया।
हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा हुई शुरू
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी। मुस्लिम मान्यता हैं कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। कहते हैं कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को खुदा की राह में कुर्बान करने वाले थे। अल्लाह की रहमत से बेटे की जगह भेड़ की कुर्बानी हो चुकी थी। तभी से बकरीद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है।
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