डोंगरगढ़ ,21 जून । छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर्स असोसिएशन द्वारा राज्य स्तरीय द्वितीय पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन का आयोजन माँ बम्लेश्वरी मंदिर प्रांगण नीचे मंदिर डोंरगगढ़ जिला राजनांदगांव में किया गया। कार्यक्रम में पंचगव्य विद्यापीठम् कांचीपुरम् तमिलनाडु के संस्थापक एवं गुरूकुलपति डॉ. निरंजन वर्मा मुख्य वक्ता के रूप में प्रदेश की जनता को संबोधित किया। डॉ. निरंजन वर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में गौमाता के पंचगव्य से बड़ी से बड़ी बीमारियों का ईलाज संभव है। जिसके लिए प्रत्येक गौशालाओं को स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में लगभग 350 चिकित्सा पद्धतियां है। जिनमें से लगभग 200 चिकित्सा पद्धतियां विभिन्न देशों में पंजीकृत है और इनमें से लगभग सभी चिकित्सा पद्धतियों का जन्म भारत से ही हुआ है।
उन्होंने देश में गाय की स्थिति पर चिंता व्यक्ति करते हुए बताया कि 1945 में भारत की जनसंख्या 32 करोड़ थी और गायों की संख्या 34 करोड़ थी, लेकिन वर्तमान में भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से अधिक है और गायों की संख्या घटकर 4 करोड़ हो गई है, जो एक बड़ी चिंता का विषय है। गाय के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए भारत के नागरिकों के साथ देश की सरकारों को कार्य करने की आवश्यकता है। आज भारत की देशी गायों को ब्राजील, उरूग्वे जैसे अन्य देशों में संरक्षण और संवर्धन किया जा रहा है और वह देश आर्थिक रूप समृद्ध हो रहा है। समाज को आर्थिक एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता गौमाता में ही है। भारत के गाय के गौमूत्र, गोमय भस्म की मांग बड़ी मात्रा में देश-विदेशों में है। जिसका उपयोग कर विभिन्न प्रकार की दवाईयां बनाई जा रही है।
गुरूकुलपति डॉ. निरंजन वर्मा ने कहा कि भारत में बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या है। जिसका समाधान गाय के विज्ञान को समझकर इसे उद्योग के रूप में स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत को पुन: विश्वगुरू बनाने के लिए गाय के विज्ञान को समझना अति आवश्यक है। जिससे प्रत्येक घर में गौपालन को बढ़ावा मिल सकता है। गाय केवल आस्था का विषय नहीं हैं, इसके विज्ञान में पूरे समाज का अर्थशास्त्र समाहित है। समाज को संस्कार एवं चरित्रवान बनाने के लिए गाय का सानिध्य आवश्यक है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में बेटी के विवाह में गौदान की परंपरा थी। अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाने के लिए तथा अपने परिवार को स्वस्थ्य रखने के लिए बेटी का विवाह गौपालक परिवार में करें। शहरों में लोग प्रदूषण और तनाव से ग्रस्त है और उनका जीवन नर्क के समान है।
इसलिए आज लोगों को सुकून और शांति के लिए गाय, प्रकृति और गांव की ओर लौटेने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरू की उपलब्धि भारत में संचालित हो रहे गुरूकुलों के आधार पर ही मिली थी। भारत में नालंदा, तक्षशिला जैसे सैकड़ों गुरूकुलीय विश्वविद्यालय संचालित हो रहे थे। जहां विदेशों से विद्यार्थी विद्या अध्ययन करने आते थे। भारत को पुन: विश्वगुरू बनाने के लिए ऐसे ही गुरूकुलों की पुन: आवश्यकता है। डॉ. निरंजन वर्मा ने बताया कि पूरे भारत में लगभग 8 हजार गव्यसिद्ध चिकित्सक है और लगभग 3 हजार पंचगव्य चिकित्सा केन्द्र्र का संचालन हो रहा है। बेरोजगार युवा गव्यसिद्ध बनकर गौशाला प्रबंधन, जैविक कृषि, पंचगव्य चिकित्सक बनकर रोजगार का अवसर प्राप्त कर सकते है। गुरूकुलपति ने कार्यक्रम में आमजनों के मन में उठ रहे प्रश्रों का उत्तर भी दिया।
कार्यक्रम में गौशाला प्रमुख डोंगरगढ़ विरेन्द्र अग्रवाल, नगर पालिक परिषद डोंगरगढ़ के पूर्व अध्यक्ष तरूण हथेल, माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट डोंगरगढ़ से अजय ठाकुर, नंदकिशोर अग्रवाल, राधेश्याम गुप्ता सहित अन्य अतिथियों ने कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम में अतिथियों को प्रतीक चिन्ह एवं गव्यसिद्ध डॉक्टर्स व आयोजन कर्ताओं को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में नि:शुल्क नाड़ी परीक्षण शिविर का आयोजन भी किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में शहर के नागरिकों ने स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन आनंद श्रीवास्तव द्वारा किया गया। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर्स असोसिएशन ने अध्यक्ष अवधेश कुमार, उपाध्यक्ष धीरेन्द्र यादव, सचिव कमलेश धीवर, सह सचिव डिलेश्वर साहू, संयोजक मुकेश स्वर्णकार, कार्यक्रम के संयोजक प्रमोद कश्यप, गिरधर जंघेल, तामेश्वर, जगदीश पटेल, पुरूषोत्तम सिंह राजपूत, उड़ीसा से श्रीनिवास राव सहित झारखंड, महाराष्ट्र से गव्यसिद्ध व बड़ी संख्या में नगरवासी उपस्थित थे।
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