जमशेदपुर,11 जून । नदियों, तालाबों, जलाशयों पर कब्जा कर लेने वाली जलकुंभियां अभिशाप मानी जाती हैं, लेकिन झारखंड के एक पर्यावरण वैज्ञानिक गौरव आनंद ने इन्हें वरदान में बदल डाला है। उन्होंने जलकुंभी से फाइबर बनाने की तकनीक विकसित की और उसे कपास के साथ मिलाकर साड़ियां बनाने का उद्यम स्थापित कर डाला। इस अभिनव प्रयोग ने लगभग 450 महिलाओं के लिए रोजगार की राह खोल दी है। अपने 16 साल के जमे-जमाये कॉरपोरेट करियर को छोड़कर गौरव आनंद ने स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन नामक संस्था बनाई और खुद को पर्यावरण संरक्षण के मिशन को समर्पित कर दिया। जलकुंभियों से साड़ी एवं अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने के उनके अभिनव प्रयोग को खूब सराहा जा रहा है।
46 वर्षीय गौरव आनंद जमशेदपुर में टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्च र सर्विसेज में बेहतरीन पैकेज वाली नौकरी कर रहे थे। नौकरी करते हुए भी वह पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर वर्षों से काम कर रहे थे। वर्ष 2018 में उन्हें नमामि गंगे मिशन से जुड़कर लगभग एक महीने तक गंगा की सफाई के अभियान में सहभागी बनने का मौका मिला। इस अभियान से लौटकर उनकी जिंदगी का मकसद बदल गया। उन्होंने जमशेदपुर आकर नदियों और जलस्रोतों की सफाई का अभियान शुरू किया। स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन के बैनर तले रविवार और छुट्टियों के दिन जमशेदपुर की स्वर्णरेखा, खरकई नदी और विभिन्न जलाशयों की सफाई की जाती थी।
इसी दौरान उन्होंने पाया कि अधिकतर जलाशय जलकुंभी से भरे रहते हैं। हटाए जाने के कुछ समय बाद जलकुंभियां फिर फैल जाती थीं। उन्होंने सोचना शुरू किया कि मुसीबत बनी जलकुंभियों को संसाधन के रूप में कैसे विकसित किया जाये? आखिर इनमें कुछ तो गुण होंगे। गौरव बताते हैं कि रिसर्च के दौरान पाया कि जलकुंभी में सेल्युलोज होता है। यह फाइबर की बुनियादी जरूरत है। इसकी खासियत जानने के बाद हमने ऐसे लोगों से संपर्क किया जो इनसे फाइबर निकालने में मदद कर सकें।
रिसर्च और प्रयोग की बदौलत राह निकल आई। हमें पता चला कि असम और पश्चिम बंगाल में कुछ लोग छोटे स्तर पर इसपर काम कर रहे हैं। उनसे प्रेरित होकर हमने इस पर काम करना शुरू किया और इनसे लैंपशेड, नोटबुक और शोपीस तैयार करने में सफल रहे। इसी बीच उन्होंने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर खुद को पर्यावरण संरक्षण के प्रयोगों और प्रयासों के प्रति समर्पित कर दिया। जलकुंभियों से निकाले जाने वाले फाइबर से बुनाई की संभावनाओं पर जब उन्होंने काम शुरू किया तो तमाम विशेषज्ञों और कपड़ा उद्योग के विशेषज्ञों ने इसे नकार दिया। सबका कहना था कि इनसे कपड़े बनाना संभव नहीं है।
पर वे प्रयोग में जुटे रहे और अंतत: फरवरी 2022 में पश्चिम बंगाल के शांतिपुर में हैंडलूम पर काम करने वाले परंपरागत कारीगरों के साथ मिलकर उन्होंने इस फाइबर को कपास के साथ मिलाकर हैंडलूम फ्यूजन साड़ियां तैयार करने में सफलता हासिल कर ली। पश्चिम बंगाल और झारखंड के बुनकर परिवारों की लगभग पांच सौ महिलाएं अब इस विशेष साड़ी की बुनाई में जुटी हैं। आम तौर पर तीन से चार दिन में यह विशेष साड़ी तैयार कर ली जाती है। जलकुंभी से साड़ियां बनाने के लिए जलकुंभी की लुगदी से फाइबर बनाया जाता है। गूदे से कीड़ों को दूर करने के लिए उसे गर्म पानी से उपचारित करने के बाद तने से रेशे निकाले जाते हैं।
इन रेशों से धागा बनता है और इनपर रंग लगाया जाता है। इन्हीं धागों से बुनकर साड़ियां बनाते हैं। जलकुंभी से एक साड़ी बनाने में तीन से चार दिन का समय लगता है। साड़ी बनाने के लिए जलकुंभी और कपास का अनुपात 25:75 रखा जाता है। एक साड़ी बनाने के लिए लगभग 25 किलो जलकुंभी का उपयोग किया जाता है। 100 फीसदी जलकुंभी से साड़ियां बनायी जायें तो यह कमजोर होगी इसलिए इसमें कपास, पॉलिएस्टर, तसर और अन्य फाइबर जैसी सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इस फ्यूजन साड़ी की कीमत दो से साढ़े तीन हजार रुपये के बीच रखी गई है ताकि यह मध्यम आय वर्ग की पहुंच के भीतर हो।
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