BL राय ने नेशनल गेम्स में जीते दो गोल्ड:80 के उम्र में भी बुजुर्ग ने लगा दी 3.5 मीटर लंबी छलांग

कोरबा ,05 जून । ढलती उम्र के बाद भी एथलेटिक्स में कोई न कोई रिकार्ड अपने नाम कर लगातार युवाओं के प्रेरणा बने हुए हैं नगर के 80 वर्षीय एथलीट बीएल राय। खेल का ऐसा जुनून कि उन्हें बस पता चलना चाहिए कि देश के अमुक राज्य के शहर में वेटरंस टूर्नामेंट होने वाला है। फिर क्या वे पदक जीतने का लक्ष्य लेकर भाग लेने चल पड़ते हैं। यही ललक उन्हें सफलता की मंजिल तक पहुंचाती है। अब तक सैकड़ों मेडल के साथ विनर ट्राफी जीतने वाले राय, संयुक्त भारतीय खेल फाउंडेशन (एबीकेएफ) द्वारा आयोजित नेशनल गेम्स में भाग लेने 26 से 28 मई तक नई दिल्ली में थे।

वहां जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में हुई ओपन प्रतियोगिता में 7 से 100 साल तक के करीब 5 हजार प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें 80 वर्ष आयु वर्ग में भाग लेते हुए बीएल राय ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ते हुए 2 गोल्ड व 1 सिल्वर मेडल जीतने में सफल रहे। यह मेडल उन्होंने 3.50 मीटर लांग जंप तो 6.50 मीटर ट्रिपल जंप लगाकर प्रथम व 100 मीटर दौड़ लगाकर दूसरे स्थान के लिए मिला।

बतौर स्पोर्ट्स टीचर मेडिकल कालेज में दे रहे हैं सेवा
टीपीनगर निवासी राय बालको के सेवानिवृत्त कर्मी हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने खेल शिक्षक के रूप में विभिन्न निजी शिक्षण संस्थाओं में सेवाएं देते रहे। वर्तमान में सृष्टि मेडिकल कॉलेज में स्पोर्ट्स टीचर व बालको सेवानिवृत्त मैत्री संघ के सदस्य हैं। इस संगठन के सदस्यों का उन्हें लगातार संबल मिलता है इस वजह से वे टूर्नामेंट का हिस्सा बन पाते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव को लेकर वे कभी तनाव नहीं लेते हैं।

जीवन में केवल खेलने का ही नशा: जब राय से पूछा गया कि उनके फिटनेश का राज क्या? वे किसी तरह का नशा पान करते हैं या नहीं। तब उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि हां वे नशा करते हैं, पर उनका नशा केवल खेलने के लिए होता है। देश के किसी भी कोने में वेटरंस टूर्नामेंट होने की सूचना पर वे उसमें शामिल होना चाहते हैं, जिसकी वजह से वे फिट हैं। यूं कहें कि यह नशा ही उनकी फिटनेश का राज है तो कोई गलत नहीं होगा। आज भी वे रोजाना 20 किलोमीटर साइकिलिंग करते हैं।

वेटरन खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की जरूरत
राय ने बताया कि उनके जैसे बहुत से खिलाड़ी हैं जिन्हें प्रोत्साहन की जरूरत होती है। वे चाह कर भी ओपन टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं ले पाते हैं। क्योंकि हर खिलाड़ी आने जाने का खर्च वहन नहीं कर पाता है। अगर वेटरन खिलाड़ियों को कोई संस्था-संगठन, जनप्रतिनिधि या औद्योगिक संगठनों का समय समय पर सहयोग मिले तो वे अपनी प्रतिभा का लोहा आज भी मनवाने तैयार हैं। जरूरत है तो उन्हें नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए किसी प्रायोजक की।