रायगढ़: आज से शुरू होगा रामायण महोत्सव, देश-दुनिया से आएंगी मंडलियां, एक लाख दीपों से सजाया गया है रामलीला मैदान

रायगढ़। रायगढ़ में आज से शुरू होने वाला रामायण महोत्सव इसलिए खास बनने वाला है, क्योंकि दूसरे देशों की मंडलियां अपने-अपने तरीके से रामायण का मंचन करेंगी। 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया की मंडली छत्तीसगढ़ में पहली बार रामायण ककविन (काव्य) को इसी महोत्सव के मंच पर उतारने जा रही है। इसमें खासतौर पर राम और सीता की बातचीत खास नृत्य शैली में होगी।

इसी तरह कंबोडिया की रामायण ख्मेर कंपूचिया की भाषा का नाम है। ‘रामकेर्ति’ ख्मेर साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इसमें सबसे जबरदस्त मंचन वानर और राक्षस सेना के बीच द्वंद्व का होगा। इस द्वंद्व में खास तरह के बांस से उस वक्त के हथियार भी दिखेंगे। आपको बता दें कि कंपूचिया में लोग राम को प्राहा रीम के नाम से जानते हैं।

उनका उल्लेख देवताओं की तरह नहीं बल्कि प्राणियों के रूप में है। युध्द के मंचन के समय स्क्रीन पर पूरी सेना हथियारों के साथ दिखेगी। यह पहला ऐसा आयोजन है, जिसमें कई देशों के अलावा असम, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गोवा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल की रामायण मंडलियां भी प्रस्तुति देंगी।

छत्तीसगढ़ी रामायण लोकगीतों में भी

प्रदेश के इतिहासकारों के अनुसार छत्तीसगढ़ी रामायण की रचना जमुना प्रसाद यादव ने की थी। इस रामायण का कई बार मंचन हो चुका है। शिक्षा विभाग में पदस्थ जीएस राजपूत ने भी वाल्मीकि रामायण को छत्तीसगढ़ी में रूपांतरित किया है। यह छत्तीसगढ़ी लोक रामायण 352 पेज की है, जिसमें सात कांड और 1253 कवित्त हैं। इसे राजभाषा आयोग ने प्रकाशन की अनुमति भी दी है। इसमें यह भी दावा है कि छत्तीसगढ़ी लोक रामायण में मूल ग्रंथ के किसी भी कथा या प्रसंग से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। शिक्षा अधिकारी राजपूत का कहना है कि इसका लेखन उन्होंने शनिवार व रविवार समेत छुट्टियों के दिन 8 से 9 घंटे तक किया। बिल्हा में सरगांव के राजपूत जिस गांव में रहते हैं, वहां आज भी साप्ताहिक रामायण पाठ होता है। छत्तीसगढ़ी लोक रामायण का नाम बिलासा कलामंच भी है। बताया जा रहा कि यह नाम स्वर्गीय डॉ. पालेश्वर शर्मा ने दिया था। उन्होने भी लोकगीत के अनुसार रामायण को लिखा था। उनकी किताब में करीब 150 लोकगीत थे।

केलो आरती, सामूहिक हनुमान चालीसा भी
वनवास के दौरान श्रीराम छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य से गुजरे थे। छत्तीसगढ़ के वन इसी दंडक अरण्य का भाग माने जाते हैं। महोत्सव में मानस मंडली के कलाकार दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक और विदेशों से आने वाली मानस मंडली रात 8 से 10 बजे तक प्रस्तुति देंगे। इसमें अरण्यकांड पर केंद्रित प्रसंगों पर विभिन्न राज्यों से आए मानस दलों के साथ ही विदेशी दलों की ओर से रामायण की प्रस्तुति दी जाएगी। सामूहिक हनुमान चालीसा, भव्य केलो आरती और दीपदान भी होगा।

ये प्रस्तुतियां महोत्सव का आकर्षण होंगी

असम
सप्तकाण्ड रामायण असमिया रामायण है, जिसे 14वीं शताब्दी में असम के भक्तकवि माधव कंदलि ने संस्कृत से अनूदीत किया था।
कर्नाटक
रावण के कारण सिर्फ बैजनाथ ज्योतिर्लिंग ही नहीं, दक्षिण भारत में भी स्थापित हुआ था शिवलिंग। इसका भी किया जाएगा मंचन।

अलग-अलग देशों में रामायण के स्वरूप
नेपाल की भानुभक्तकृत रामायण और सुंदरानंद रामायण, कंबोडिया की रामकर, तिब्बत की तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायण, इंडोनेशिया की ककविन रामायण, जावा की सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग और पातानी रामकथा, इण्डोचायना: रामकेर्ति (रामकीर्ति) और खमेर रामायण, बर्मा (म्यांमार) की यूतोकी रामयागन, थाईलैंड की रामकियेन।

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