आदिवासी विकास विभाग के छात्रावास आश्रम मजदूरों के बदौलत हो रहे हैं संचालित – मनीराम जांगड़े

कोरबा, 27 मई । जिले के आदिवासी विकास विभाग द्वारा संचालित लगभग 184 छात्रावास आश्रम है लेकिन सदियों बीत जाने के बाद भी विभाग द्वारा एवं राज्य शासन की महत्वपूर्ण एवं सराहनीय योजनाओं में से एक कहे जाने वाला विभाग मजदूरों के बदौलत संचालित है उक्त संस्था ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले रसोईया चौकीदार यह सभी पद पर आज भी दैनिक मजदूर कार्य कर रहे हैं । वर्ष 2013 में उक्त संस्था में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार के द्वारा 364 पद दैनिक वेतन भोगी कलेक्टर दर की स्वीकृत किया गया था ।

लेकिन किसी कारणवश उक्त पर आज पर्यंत नियुक्ति नहीं हुई है संस्था में कार्यरत मजदूर अपनी पूर्ण ईमानदारी एवं जवाबदारी से कार्य कर रहे हैं। लेकिन साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार की जितनी भी आलोचना की जाए वह कम है क्योंकि उक्त मजदूर को मां में एकमुश्त महज ₹9000 मिलते हैं वह भी 3 से 4 माह में एक बार एक ओर जहां प्रतिमान 50 हजार पाने वाले व्यक्ति को अगर 1 माह से किसी कारणवश वेतन नहीं मिलता है तो उनकी परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगा जाती है लेकिन यह मजदूर उक्त छात्रावास आश्रम में रहकर पठन-पाठन के कार्य कर रहे जिले के गरीब एवं मध्यम वर्गीय छात्र-छात्राओं को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो तन मन से वह एक खुद भी पालक बनकर उनकी देखरेख एवं भोजन बनाकर खिलाते हैं इसलिए इन मजदूरों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है लेकिन विभाग न जाने कब अपने गहरी निंद्रा से जागेंगे एवं उक्त संस्था में शासकीय कर्मचारी नियुक्त करेंगे या तो भविष्य के गर्त पर नजर आ रहा था लेकिन गत दिनों तत्कालीन सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर से समाजसेवी मनीराम जांगड़े ने इस विकराल समस्या को लेकर चर्चा की जिस पर उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से बड़े खेद की बात है कि 2013 से संस्थाओं में दैनिक वेतन भोगी कलेक्टर दर का पद 364 स्वीकृत थे लेकिन आज पर्यंत नहीं भरा गया है ।

इस पर अविलंब राज्य शासन को पत्र व्यवहार किया जाएगा ताकि इन संस्था में शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति हो सके और बिना किसी परेशानी की संचालित हो एक ओर जहां छत्तीसगढ़ शासन के यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल जी के द्वारा प्रदेश के समस्त विभागों में आज जरूरत के अनुसार भारी संख्या में नौकरी का विज्ञापन जारी किया गया है जो बहुत ही प्रशंसनीय है लेकिन कोरबा जिला ही एक ऐसा जिला है जहां पूर्व में स्वीकृत पदों पर आज भी भर्ती का विज्ञापन जारी नहीं किया गया है जो समझ से परे है हद तो जब होता है की विगत 15 से 20 वर्षों से कलेक्टर दर दैनिक वेतन भोगी के पद पर कार्य कर रहे हैं लगभग 174 कर्मचारियों को आज तक नियमित नहीं किया गया है जबकि प्रदेश के समस्त जिलों में इस इस पद पर कार्यरत सभी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया है इस संबंध में मनीराम जांगड़े ने कहा कि इस जिले में भी यह संभव था लेकिन पूर्व के सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग की निष्क्रियता एवं लापरवाही की वजह से आज तक उक्त कर्मचारी दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है कई कर्मचारी तो अपनी आयु सीमा भी खत्म करने की कगार पर है आगे उन्होंने कहा कि एक ओर जहां कोरबा आदिवासी बाहुल्य जिला है साथ ही पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आता हैं सबसे बड़ी गर्व और खुशी की बात तो यह है कि हमारे कोरबा लोक सभा क्षेत्र से यहां सांसद भी कांग्रेस से हैं साथ ही जिले के 3 विधानसभा क्षेत्र से भी कांग्रेस के विधायक हैं बावजूद इसके इस गंभीर समस्या से आदिवासी विकास विभाग द्वारा संचालित 184 छात्रावास आश्रम मुक्त नहीं हो रहे हैं इस संबंध में जब विभाग के द्वारा दैनिक वेतन भोगी कलेक्टर दर पर भर्ती किए जाने विज्ञापन जारी किया गया था जिसमें समूचे प्रदेश से हजारों की तादाद में आवेदन मंगाए गए थे।

जबकि शासन का स्पष्ट आदेश था कि केवल कोरबा जिले के निवासियों को ही उक्त पद पर नियुक्ति की जाए जिसकी विरोध तत्कालीन कटघोरा विधानसभा के विधायक श्री लखन लाल देवांगन जी के द्वारा की गई थी और उनके द्वारा भी मांग किया गया था कि शासन के नियमानुसार केवल कोरबा जिले के बेरोजगार युवाओं को उक्त पद पर नियुक्त किया जाए तब से आज तक विभाग की उक्त संस्थाओं में कलेक्टर दर या अनियमित कर्मचारी नहीं होने की वजह से समस्या जस की तस बनी हुई है।

इस संबंध में समाजसेवी मनीराम जागडे ने प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं आयुक्त अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग एवं विभागीय मंत्री माननीय डॉक्टर प्रेमसाय सिंह टेकाम को पत्र लिखकर मांग की है कि विभाग की उक्त समस्या की त्वरित निदान करते हुए कार्यवाही करने की कष्ट करें ताकि कोरबा जिले के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सके गत दिनों आदिवासी विकास विभाग के द्वारा कुछ नियमित पद की भर्ती किए जाने विज्ञापन जारी किया गया है यह ऐसे पद है जो एसी और कूलर में बैठकर कार्य करेंगे लेकिन मैदानी स्तर पर जिनके नाम से आदिवासी विकास विभाग कहलाता है वह तो छात्रावास आश्रम है जहां सबसे पहले दैनिक वेतन भोगी कलेक्टर दर पर नियुक्त करना चाहिए लेकिन एक गंभीर समस्या विशेष ध्यान आकृष्ट करते हुए प्रक्रिया जारी करने को उचित नहीं समझा गया।