सैलरी नहीं बढ़ाने पर कोर्ट पहुंचा कर्मचारी, IT कंपनी के खिलाफ ठोका मुकदमा

लंदन,14 मई । आईटी इंडस्ट्री में काम करने वाला एक शख्स साल 2008 से सिक लीव पर था. उसने अपनी कंपनी पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए मुकदमा ठोका है. शख्स का आरोप है कि इस दौरान उसकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई. इयान क्लिफोर्ड नामक शख्स का दावा है कि वह विकलांगता के कारण होने वाले भेदभाव से पीड़ित हैं. उन्होंने कहा कि सैलरी में बीते 15 सालों में बढ़ोतरी नहीं हुई. मिरर यूके की रिपोर्ट के मुताबिक, आईबीएम हेल्थ प्लान के चलते इयान को हर साल 54,000 पाउंड (करीब 55 लाख रुपये) मिलते हैं. उन्हें 65 साल की उम्र तक सैलरी की गारंटी भी दी गई है. 55 लाख रुपये उन्हें सैलरी मिलती है. उनका कहना है कि बढ़ती महंगाई के सामने उनकी सैलरी काफी नहीं है.

रोजगार से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली अदालत ने इयान के दावे को खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि उन्हें अच्छा खासा लाभ मिल रहा है. किंग्स कॉलेज लंदन से पढ़ाई करने वाले इयान ने साल 2000 में लोटस डेवलपमेंट नामक कंपनी के लिए काम करना शुरू किया था. इसके बाद वो आईबीएम से जुड़े. सिंतबर 2008 में उन्होंने सिक लीव ली. फिर 2013 तक भी काम से दूर रहे. इस दौरान उन्होंने शिकायत करते हुए कहा कि उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई है और पांच साल के छुट्टियों के पैसे भी नहीं मिले. तब इयान को कंपनी की ‘दिव्यांग योजना’ में जगह दी गई. उनके साथ एक अग्रीमेंट हुआ.

प्लान के तहत, काम करने में असमर्थ कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जाएगा, वो एक कर्मचारी ही रहेगा और उस पर काम की जिम्मेदारी नहीं होंगी. बीमारी से ठीक होने, रिटायर होने या मौत होने तक, कर्मचारी को सैलरी का 75 फीसदी मिलेगा. ऐसे में इयान की सैलरी 72,037 पाउंड (करीब 73 लाख रुपये) है. यानी 2013 से अभी तक उन्हें 25 फीसदी की कटौती के बाद हर साल 55 लाख के करीब रुपये मिले हैं. वहीं छुट्टियों की पेमेंट वाले मामले में उन्हें 8,685 पाउंड (करीब 9 लाख रुपये) दिए गए थे. उनसे कहा गया कि वह दोबारा इस मुद्दे को न उठाएं.

फरवरी 2022 में इयान ने कंपनी को अदालत में घसीटा और भेदभाव का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि 2013 से उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई है. उन्होंने अपनी तुलना शारीरिक रूप से पूरी तरह सक्षम कर्मचारियों से की, जिन्हें छुट्टियों के दौरान भी अपनी पूरी सैलरी मिलती है. उन्होंने कहा कि महंगाई काफी बढ़ गई है, ऐसे में ये पैसे काफी नहीं हैं. हालांकि मामले में जज ने सुनवाई करते हुए इस केस को खारिज कर दिया.

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