कुंभकार के चाक घुमाकर गीली मिट्टी को अपने हाथों से आकार दे रहे IPS Dipka के समर कैंप के प्रतिभागी

कोरबा, 02 मई। इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में जारी समर कैंप में विद्यार्थियों को पॉटरी एक्टिविटी के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के मिट्टी की कलाकृतियों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ।पॉटरी एक्टिविटी के अंतर्गत विद्यार्थियों ने प्रथम दिवस दीया एवं गमला बनाने की कला सीखी। इसके साथ ही साथ समर कैंप के अंतिम बेला तक विद्यार्थियों को मटका, सुराही, गुल्लक एवं खिलौने सहित विभिन्न प्रकार की आकर्षक कलाकृतियों का निरंतर प्रशिक्षण दिया जाएगा।

पाटरी एक्टिविटी में अधिकांश विद्यार्थियों ने पंजीयन कराया है ।सभी विद्यार्थी बहुत उत्साह के साथ कुंभकार श्री सीताराम जी बतारी निवासी के द्वारा बनाए जा रहे मिट्टी की कलाकृतियों को देखते व सीखते हैं। तत्पश्चात क्रमानुसार विद्यार्थी स्वयं चाक घुमाकर मिट्टी पर अपना कोमल हाथ स्पर्श कर आकर्षक कलाकृतियां बनाते हैं ।श्री सीताराम कुंभकार जी विद्यार्थियों को चाक घुमाने का तरीका और गीली मिट्टी के दोनों तरफ हाथ रखने का तरीका और उंगलियों को मिट्टी पर फेंरने की विधि समझाते हैं ,जिसे बच्चे बहुत ध्यान से सुनते हैं ।

श्री सीताराम कुंभकार जी बच्चों को पाटरी कला की हर बात बारीकी से अवगत करा रहे हैं ।उन्होंने विद्यार्थियों को समझाया कि हमारे जीवन में प्रारंभिक काल से ही मिट्टी का बहुत महत्व है। मानव ने प्राचीन काल से ही मिट्टी के बर्तनों का उपयोग प्रारंभ कर दिया था। मिट्टी के मटको के शीतल जल को आज भी लोग बहुत पसंद करते हैं ।आज भी किसी भी सभ्यता के प्राचीन से प्राचीनतम होने का प्रमाण मिट्टी के बर्तन या मिट्टी की प्राचीन कलाकृतियां ही देती हैं। मिट्टी के बर्तन बनाकर हम भले ही अपना जीवन यापन करते हैं ,पर मिट्टी हमें जमीन से जुड़े रहना अर्थात कभी भी अहंकार नहीं करना सिखाती है। मिट्टी को तो साक्षात मां अन्नपूर्णा माना जाता है ।पॉटरी एक्टिविटी में इंचार्ज श्रीमती बिंदु लता राठौर एवं अस्विता गढ़वाल का विद्यार्थियों को भरपूर सहयोग मिल रहा है ।इन्हीं के मार्गदर्शन में तथा श्री सीताराम कुंभकार जी के सहयोग से विद्यार्थी मिट्टी की आकर्षक कलाओं को स्वयं बनाकर सीखने का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

विद्यालय के यशस्वी प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि आज प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा हावी हो गई है ।जहां तक मिट्टी के बर्तन या मिट्टी की विभिन्न कलाकृतियों की बात है तो भले ही आज हम पेपर प्लेट ,डिस्पोजल, तांबे ,कांसे, सिल्वर इत्यादि के बर्तनों या पात्रों का उपयोग करते हैं ,लेकिन आज भी मिट्टी के बर्तनों का अपना अलग ही महत्व है। भले ही दुनिया कितना ही आगे बढ़ रही है पर आज भी हमें विभिन्न अवसरों पर मिट्टी की कलाकृतियों या बर्तनों की आवश्यकता होती है ,जो कि इस बात का प्रमाण है कि ग्रामीण क्षेत्रों का यह जीविकोपार्जन का एक सशक्त माध्यम है ।यह कला का एक महत्वपूर्ण अंग है ।यह देखने में जितना आसान लगता है ,वास्तव में उतना आसान नहीं होता ।

मिट्टी की कलाकृतियां बनाने के लिए भी अच्छे प्रशिक्षण वह लगन की आवश्यकता है। आज भी हमारी भारतीय संस्कृति में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में मिट्टी के पात्रों की आवश्यकता होती है। जैसे दीपावली में दीए ,भागवत कथा हेतु मटके ,विवाह हेतु सुराही इत्यादि ।मिट्टी सृष्टि के पंचतत्व में प्रमुख है ।इसका व्यवहारिक जीवन में भी बहुत महत्व है वास्तव में मिट्टी हमें अपना वजूद बताती है कि अहंकार किस बात का? इसी मिट्टी से पैदा हुए हैं और इसी मिट्टी में मिल जाना है। आज मिट्टी के ऊपर तो कल मिट्टी हमारे ऊपर। माटी कहे कुम्हार से तु क्या रौंदे मोय ,एक दिन ऐसा आएगा मैं रौदूंगी तोय।