60 तालाबों के गहरीकरण और साफ सफाई का काम प्रारंभ
रायगढ़ । तालाब हमारे आस पास जन जीवन का अभिन्न अंग है। यह न केवल गांवों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए जल उपलब्ध कराते हैं बल्कि ग्रामीण जन जीवन और अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में महती भूमिका निभाते हैं। आज जब गर्मी की चपेट में आकर जल स्त्रोतों के सूखने की खबरें आती रहती है।
ऐसे समय में रायगढ़ जिले में कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने जल संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी पहल की है। उन्होंने गांवों में ऐसे तालाब जिनका अस्तित्व सिमटता जा रहा था उसे फिर से पल्लवित कर उन्हें सहेजने की आधारशिला रखी है। कलेक्टर सिन्हा ने जिले में तालाबों के गहरीकरण और गाद सफाई का प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके लिए जिले के विभिन्न उद्योगों को भी जोड़ा गया है। प्रोजेक्ट के लिए जिले के 7 विकासखंड के 60 तालाब चिन्हांकित किए गए हैं। 42 तालाबों के गहरीकरण का कार्य शुरू भी कर दिया गया है। शेष के काम अगले कुछ दिनों में शुरू हो जायेंगे। ताकि बारिश के पहले तालाबों को गहरा कर उसकी साफ सफाई पूरी की जा सके। वहीं तालाब गहरीकरण का यह कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता लेकर किया जा रहा, जिसकी नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है। इस प्रोजेक्ट के लिए जिला स्तर पर नोडल अफसर बनाया गया है। ताकि काम के डेली प्रोग्रेस को मॉनिटर किया जा सके। कलेक्टर सिन्हा ने जिले में जल प्रबंधन को टॉप प्रायोरिटी में रखा है।
पिछले दिनों उनकी पहल पर ‘केलो है तो कल है’ की सोच के साथ केलो नदी संरक्षण प्रोजेक्ट की नींव नदी के उद्गम से रखी गई है। इसके साथ ही अब गांवों में जलस्रोतों को उनके पुराने स्वरूप देने का भी कार्य शुरू किया गया है। कलेक्टर सिन्हा ने इसके लिए उद्योग प्रतिनिधियों की विशेष बैठक लेकर कहा था कि किसी एक तालाब के गहरीकरण से उस गांव की कई जरूरतें एक साथ पूरी होती हैं।
भू जल का स्तर उठता है। निस्तारी के साथ ग्रामवासियों और पशुपालकों को रोजमर्रा की जरूरत के लिए पानी उपलब्ध होता है। मछली पालन और दूसरी आर्थिक गतिविधियों की संभावनाएं बलवती होती हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए और मौजूदा हालात की जरूरत के आधार पर तालाबों के गहरीकरण और गाद सफाई का काम किया जाना है। कलेक्टर सिन्हा के निर्देश पर तालाबों को चिन्हांकित कर अलग अलग उद्योगों को उनके पूरे कायाकल्प की जिम्मेदारी दी गयी है।
ग्रामीण जीवन का हिस्सा हैं तालाब
तालाबों का इतिहास काफी पुराना है। हजारों सालों से लोग गांवों में तालाब को अंजुली बनाकर बारिश की हर एक बूंद को सहेजने का काम करते आ रहे हैं। जिससे जरूरत के साथ जल संकट के समय उसका उपयोग कर सके। पहले छोटे छोटे गांवों में दसियों तालाब हुआ करते थे। कई गांव और नगर तो सिर्फ तालाबों की संख्या और उसकी भव्यता से अंचल में अपनी विशेष पहचान रखते थे। राजा महराजा और शासक वर्ग समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाने तालाब खुदवाया करते थे। विभिन्न ग्रंथों, लेखों और यात्रा वृतांतों में इसका उल्लेख है। गांव में जीवन चक्र भी तालाब के इर्द गिर्द घूमा करता था। सामाजिक संस्कारों से लेकर तैराकी और मछली पकड़ने जैसे कार्यों से मनोरंजन तक के लिए लोग तालाब पर आश्रित रहते थे।
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