अधर्म के विनाश के लिए भगवान लेते हैं अवतार : अतुलकृष्ण भारद्वाज

खरसिया । कथा व्यास अतुलकृष्ण महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान चतुर्थ दिन ज्ञान की महिमा के बारे में श्रद्धालुओं को बताया कि मनुष्य को जीवन जीने के लिए भगवान शिव के आदर्शों पर चलना चाहिए। भगवान शिव के सिर पर नाग विराजमान है, जिसका तात्पर्य यह है कि संसार के समस्त प्राणियों के सिर पर काल रूपी नाग बैठा है, जो प्रत्येक दिन उसकी आयु को खा लेता है। भगवान शेर की खाल धारण कर यह बताना चाह रहे हैं कि मनुष्य को गृहस्थ जीवन संयम से जीना चाहिए क्योंकि शेर अपने जीवन में एक नारी व्रत धारी है। भगवान शिव नंदी पर बैठे हैं, जिसका तात्पर्य है कि नंदी धर्म का प्रतीक है। भगवान शिव पूरे शरीर पर चिता की राख लपेटे हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि दुनिया के सभी प्राणियों को एक दिन चिंता में जाना है।

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का सुंदर वर्णन वर्णन करते हुए आचार्य ने कहा कि जब-जब धरती पर अधर्म का बोलबाला होता है, तब-तब भगवान किसी न किसी रूप से धरती पर अवतरित होकर असुरों का नाश करते हैं। अधर्म पर धर्म की विजय होती है। काम क्रोध और लालच को त्याग कर भक्ति एवं सच्चे मन की साधना से हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा। त्रेता युग में जब असुरों को शक्ति बढ़ने लगी धर्म लुप्त हो रहा था तब मां कौशल्या की कोख से भगवान श्रीराम ने जन्म लिया। द्वापर में मां देवकी की कोख से भगवान ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। वहीं व्यास ने कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान हैं, सर्वत्र विद्यमान हैं। प्रेम से पुकारने पर कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। भगवान तो निर्मल मन एवं भक्ति देखते हैं। इसलिए कहा गया है कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम से प्रेम से प्रकट होहीं मैं जाना।