केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर समलैंगिक शादी का विरोध किया है। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा कि समलैंगिक संबंध और सामान्य संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग हैं, जिन्हें समान नहीं माना जा सकता। केंद्र सरकार ने कहा कि समान लिंग वाले लोगों का साथी के रूप में साथ रहना अपराध नहीं है लेकिन इसे पति-पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की इकाई के समान नहीं माना जा सकता।
सरकार ने हलफनामे में दिए ये तर्क
बता दें कि एक समलैंगिक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग की है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। जिस पर केंद्र सरकार ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। जिसमें केंद्र ने कहा कि समलैंगिकों का जोड़े के रूप में साथ रहना और शारीरिक संबंध बनाने की, भारत की पारिवारिक इकाई की अवधारणा से तुलना नहीं हो सकती। भारतीय पारिवारिक इकाई की अवधारणा में एक पुरुष और महिला शादी करते हैं, जिसमें पुरुष ‘पति’ और महिला ‘पत्नी’ होती है। दोनों विवाह के बाद बच्चे पैदा करते हैं और पुरुष ‘पिता’ और महिला ‘माता’ बनती है।
सरकार ने कहा कि शादी को हमारे समाज में संस्था का दर्जा प्राप्त है, जिसका अपना सार्वजनिक महत्व होता है। शादी संस्था के कई अधिकार और दायित्व भी होते हैं। सरकार ने कहा कि विशेष सामाजिक संबंध के लिए मान्यता लेना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में समलैंगिक शादी संबंधी याचिकाएं दायर की गईं थी, जिन्हें बाद में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच को स्थानांतरित कर दिया गया था।
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में समलैंगिक शादी के विरोध का तर्क देते हुए कहा कि समान लिंग वाले लोगों की शादी को मान्यता देने से मौजूदा पर्सनल लॉ का उल्लंघन होगा, जिनमें निषिद्ध संबंधों की डिग्री, शादी की शर्तें और अनुष्ठान की आवश्यकताएं आदि शामिल हैं। साथ ही घरेलू हिंसा कानून समेत कई कानूनी प्रावधान समलैंगिक शादी में लागू करना संभव नहीं है। बता दें कि जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है, उनमें से एक हैदराबाद के समलैंगिक जोड़े सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डंग की याचिका शामिल है।
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