छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर समर्पित रहिन पवन दीवान…

छत्तीसगढ़ी कला, साहित्य के संगे- संग छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म लइकई उमर ले रुचि रखे अउ संघरे के सेती संत कवि पवन दीवान  के नांव अउ काम ले तो मैं आगूच ले परिचित रेहेंव। फेर उंकर दर्शन पहिली बेर तब होइस, जब उन पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी के बैनर म रायपुर लोकसभा ले गाड़ी छाप म चुनाव लड़िन। तब मैं पढ़त रेहेंव. मोला सुरता हे, वो बखत हमन रायपुर के अमीनपारा म नव दुर्गा चौक म राहत रेहेन। दीवान  अपन चुनाव प्रचार खातिर शीतला मंदिर डहर ले रेंगत रेंगत सब झन ल जोहार करत महामाया मंदिर डहर आवत रहिन. हमर घर दूनों मंदिर के बीच म रिहिसे, तेकर सेती दीवान  ल देखइया अउ भेंट करइया मन के ए जगा भारी भीड़ होगे राहय।

हमूं मनला जब जानकारी होइस, के दीवान  इही डहार रेंगत रेंगत आवत हें, त हमूं मन घर ले निकल के बाहिर आगेन. उन माईलोगिन मन ल हाथ जोर के जोहार करंय अउ आदमी जात मन संग हाथ घलो मिला लेवंय. मन तो मोरो होइस के हाथ मिलाए जाय, फेर नइ मिला पाएन। जब हमन पढ़त राहन त हर शनिच्चर इतवार के छुट्टी म अपन गाँव नगरगांव जावन. दीवान  ल रायपुर म चुनाव प्रचार करत देखे के बाद जब गाँव गेंव, त उहों इही चुनावे के गोठ होवत राहय. गाँव म हमर पारा के जम्मो सियान मन सकला के दीवान  ल ही वोट दे के बात करत रहिन. हमूं मन उंकर चुनाव प्रचार करे के नांव म अपन गाँव के संग म तीर तखार के अउ गाँव मन म जाके उंकर चुनाव चिनहा ‘गाड़ी छापछाप’ बनावन।

बाद म जब साहित्य जगत म आएन, तेकर पाछू तो फेर कतकों जगा उंकर संग मेल भेंट होवय. तहाँ ले तो अइसनो बेरा आइस, के उंकर संग एके मंच म बइठ के कविता पाठ घलो करे ले मिल जावय। तब के रायपुर जिला (अब गरियाबंद) के गाँव किरवई म 1 जनवरी 1945 के जन्मे पवन दीवान  के चिन्हारी कवि, साहित्यकार के संगे-संग भागवत के प्रसिद्ध प्रवचनकार के रूप म घलो रिहिसे. उंकर आध्यात्मिक नांव स्वामी अमृतानंद सरस्वती रिहिसे. फेर हमला उंकर भागवत प्रवचन सुने के मौका तो नइ मिलिस. हां, एक पइत जरूर उंकर भागवत कथा के अंतिम बेरा के पांच मिनट देखे बर मिलिस। हमन मीर अली मीर, संजय शर्मा ‘कबीर’ अउ मैं कवि सम्मेलन म संघरे खातिर रायपुर ले थान खम्हरिया जावत रेहेन. रद्दा म जानबा होइस, के आदरणीय दीवान जी के भागवत आगू के एक गाँव म होवत हे। हमन आपस म चर्चा करेन, चलौ दीवान जी ल घलो अपन संग म ले चलथन, कवि सम्मेलन के गरिमा बाढ़ जाही।

गाँव के भांठा म स्कूल तीर भारी पंडाल लगे राहय. हमन वो मेर पहुंचेन, त कथा समापन के पाछू आरती होवत राहय. आरती के पाछू दीवान जी व्यास गद्दी ले खाल्हे आइन. एती हमन ल देख के अपन परिचित शैली म उन हांसिन, अउ कहिन- अरे तहूं मन भागवत सुने बर आए हव, अतेक दुरिहा? हमन उंनला बताएन के कवि सम्मेलन म जावत हन, बीच रद्दा म आपके भागवत के जानकारी मिलिस, त गुनेन आपो ल संग म ले चलिन. उन हांसिन अउ कहिन, अरे का बतावंव, भागवत चलत हे तेकर ए, नइते सिरतोन म चल देतेंव. मोला तो कवि सम्मेलन म जादा मजा आथे।

वइसे तो उंकर संग चारों मुड़ा अबड़ संघरन. मैं उनला हमर समाज के कार्यक्रम म घलो बलावंव. छत्तीसगढ़ राज के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल के जयंती के बेरा म हमर समाज द्वारा रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग म  एक सप्ताह के अलग अलग कार्यक्रम रखे जावय. एकर साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम के संयोजक मुंही ल बना देवंय. तेकर सेती एमा छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के संगे-संग संगोष्ठी अउ कुछू आने कार्यक्रम घलो राखन, त दीवान  ल पहुना के रूप म बलावन. एक बछर इही मंच म डॉ. परदेशी राम वर्मा मोला डॉ. खूबचंद बघेल अगासदिया सम्मान दीवान के हाथ ले देवाए रिहिन हें, अउ संग म मोर कविता संकलन ‘सब वोकरे संतान ए संगी’ के विमोचन घरो करे रिहिन हें।

अपन जिनगी के संझौती बेरा म उंकर डॉ. परदेशी राम वर्मा  संग भारी मयारुक संबंध रिहिस. कहूँ जावयं त दूनों, कुछू करयं त दूनों. वोमन भगवान राम के महतारी माता कौशल्या के नांव ले एक ठन समिति ‘माता कौशल्या गौरव अभियान समिति’ घलो बनाए रिहिन हें. एकर जगा-जगा कार्यक्रम करंय. तब मैं सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ म रेहेंव. वोमन दूनों समाचार दे खातिर प्रेस मन म घलोक पहुँच जावंय. हमर प्रेस म आवंय, त मोला पहिलिच के फोन कर देवंय, हमन नीचे म खड़े हावन तैं जल्दी आ अउ ए समाचार ल आजेच छपवा देबे।

माता कौशल्या गौरव अभियान वाले कार्यक्रम म आदरणीय दीवान एक बात ल हर मंच म कहंय- ‘बंगाल के मन अपन देवता ल धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन. गुजरात के मन अपन देवता ल धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देवता धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन. पंजाब अउ महाराष्ट्र के मन अपन देवता धर के आइन, हम उंकरो पांव परेन. भइगे चारों मुड़ा के देवता मन के पांव परई चलत हे। फेर मैं पूछथौं, अरे ददा हो, भइगे दूसरेच मन के देवता के पांव परत रहिबो त अपन देवता के कब पांव परबो? वोकर देवता मनके पांव परई म हमर माथा खियागे, अउ वो परदेशिया मन इंकरे आड़ म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागें.’

मोला उंकर ये बात बहुत अच्छा लागय. सिरतोन आय, हम दूसर सब के सम्मान करथन ए तो बने बात आय, फेर उंकर चक्कर म अपन देवता, अपन परंपरा, अपन इहाँ के पारंपरिक उपासना अउ जीवन पद्धति मन के उपेक्षा करई ह तो सही नोहय न?  इही बात ल लेके हमूं मन इहाँ के मूल आध्यात्मिक संस्कृति, पूजा उपासना के विधि अउ जीवन पद्धति मनला के प्रचार प्रसार खातिर एक समिति ‘आदि धर्म जागृति संस्थान’ बनाए हवन, अउ वोकर बेनर म मैदानी काम घलो करत रहिथन। अइसने सब बात मन के सेती हमन जब राजिम के प्रसिद्ध पारंपरिक पुन्नी मेला के नांव ल बदल के ‘राजिम कुंभ’ कर दिए गे रिहिसे, तेकर नंगत विरोध करन. कतकों पत्र-पत्रिका म लेख अउ समाचार घलो छपवाए रेहेन. एकर संबंध म आदरणीय दीवान  मोर तारीफ करे रिहिन हें. उन काहंय, ए परदेसिया मन हमर परंपरा अउ संस्कृति के सत्यानाश करत हें. इहाँ के मूल संस्कृति खातिर उंकर मन म वाजिब म भारी पीरा रिहिसे।

राजिम कुंभ के नांव ले जेन आयोजन होवय. वोमा संत समागम घलो होवय. एक पइत हम दूनों उहाँ संघर परेन. मैं दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका ‘इतवारी अखबार’ के संपादन ल वो पइत  देखंव. वोमा राजिम ऊपर विशेषांक निकाले रेहेन, तेकर विमोचन उही मंच म होना रिहिसे. तेकर सेती प्रेस ले मोला भेज दे गे रिहिसे, अउ दीवान ल राजिम के रहवइया होए के सेती हाथ-पांव जोर के बलाए गे रिहिसे. संत समागम के ए मंच म विशेषांक के संपादन करे के सेती मोर सम्मान घलो करे गे रिहिसे।

बाद म जब दूनों मिलेन त हांस डरेन. उन कहिन-‘ का करबे सुशील, तैं प्रेस म नौकरी करथस तेकर मजबूरी म इहाँ आए हस, ठउका अइसने मैं इहाँ रहिथंव, त बरपेली हाथ पांव ल जोर के मोला इहाँ तीर के लान लेथें.’ दीवान  2 मार्च 2016 के ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले के परमधाम के रद्दा धर लेइन. हमन ल मीडिया ले जानबा मिलिस, के गुरुग्राम (हरियाणा) के एक अस्पताल म उन आखिरी सांस लेइन. बिहान दिन मंझनिया करीब 2 बजे उंकर राजिम आश्रम म उनला  समाधि दिए जाही. मैं ए खबर ल सुनते डॉ. परदेशी राम वर्मा ल फोन करेंव, त उन बताइन के हव खबर ह  सिरतोन आय. हमन राजिम जाए बर निकलगे हवन. तब महूं ह उनला आवत हंव कहिके तुरते राजिम बर निकल गेंव।

 जावत-जावत रद्दा म मोर मन म उंकर बर श्रद्धांजलि के ए चार डांड़ गूंजे लागिस-

आंधी का रूप दिखाकर क्यों शांत हो गये पवन

तेरे ठहाकों से गूंज रहा है, अब भी धरा-गगन

काम अभी भी कई शेष हैं, जो तुमने प्रारंभ किए

छत्तीसगढ़ियों के सपनों को कुछ कुछ पूर्ण किए

उन्हें पूर्ण करने का हम तो, अब देते हैं वचन

यही हमारी श्रद्धांजलि है, शत-शत तुम्हे नमन

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