सबसे अधिक शिवपुराण व सत्संग छत्तीसगढ़ में होते हैं : पं. खिलेंद्र दुबे

रायपुर ,23 फरवरी  महासेवा संघ के द्वारा खमतराई के दोना पत्तल फेक्टरी के पास बम्हदाई पारा में चल रहे शिव महापुराण कथा व महाशिवरात्रि रुद्राभिषेक कराया जा रहा है जिसका शुक्रवार को समापन होगा। समापन अवसर पर शोभायात्रा खमतराई बाजार चौक से निकाली जाएगी। यह शोभायात्रा  पूरे मतराई का भ्रमण करेगी। 9वें दिन पंडित खिलेंद्र दुबे ने शिव सहस्त्रानाम, बेलपत्र वर्षा पर श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुए कहा कि 11 गुड़हल का फूल, 11 बेलपत्र व 11 चावल चढ़ाने से भगवान शिव रीझ जाते हैं। छत्तीसगढ़ में सबसे से अधिक शिवपुराण व सत्संग होता है और बड़े-बड़े साधु-संत यहां कथा सुनाना चाहते हैं और सत्संग सुनने से हर चीज में बदलाव आता हैं।

विष्णुदेव भी शंकर की पूजा करते है
पंडित खिलेंद्र दुबे ने श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान विष्णुदेव भी भगवान शंकर की पूजा करते है। एक बार भगवान विष्णु पूजा कर रहे थे और पहला नाम लिया शिव और 108 नाम लिया सुनीति। यह एक संदेश देता है कि हम जब माला जाप करें तो नीति से करें। जब माला जाप करें तो सुंदर नीति से करें किसी का दुरुपयोग न करें, किसी का बूरा न चाहे और सबका भला ही सोचें। दूसरों के प्रति ईष्या और दोष नहीं रखना चाहिए। 216 बार जाप करने पर भगवान विष्णु ने शिव का नाम रखा पराग्रह, इसका मतलब यह है कि हम शिव के चरण में रहेंगे तो दुनिया को पार कर लेंगे। 324 बार जाप किया तो नाम रखा गया भोजनम, माला जाप कर रहे है तो अपने आहार का ध्यान रखना है यह नहीं कि कुछ काम करते हुए माला जाप करना चाहिए। केवल धन चढ़ाने से कुछ नहीं होता, अगर कोई वक्ता कुछ बोल रहा है तो उसकी बातों को मान लोंगे तो वक्ता उसे धन्यवाद कहता है और श्रोता का जीवन सुधर जाता है। सत्संग सुनने से हर चीज में बदलाव आता है। सुदर्शन के सामान कोई बलवान नहीं है क्योंकि वह साक्षात शिव है।

पूरी दुनिया करती है भगवान शंकर की अराधना
श्रद्धालुओं को पंडित दुबे ने बताया कि केवल भगवान विष्णु ही नहीं पूरी दुनिया भगवान शंकर की अराधना करती है और सब महादेव के सानिध्य में रहते है। पार्थिव शिव पूजा करने से यज्ञ सफल होता है इसलिए माता पार्वती ने पार्थिव पूजा की थी। पार्थिव शिव पूजा करने के लिए शाम के समय में भगवान शिव के मंदिर में एक दीपक जलाओ और एक लोटा जल सुबह-सुबह चढ़ाना पड़ता है। यह कार्य एक साल तक करना पड़ता और अगले साल से उसका प्रभाव खुद ब खुद दिखने को मिलता है। अगर शिव को मनाना है तो माता पार्वती के साथ जाप करना चाहिए जो कोई भी यह व्रत करता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है।

पंडित दुबे ने बताया कि शिवलिंग में जब हम जल अपर्ण करते है तो वह जल शिव के साथ ही जलहरि जिसे माता पार्वती माना जाता है वह भी उसे धारण करती है। जलहरि में जल चढ़ाने जाए तो 11 गुड़हल का फूल, 11 बेलपत्र, 11 चावल के दाने जो टूटा न हो, तीन चम्मच गंगाजल, मौली धागा लपेट दो लेकिन उसमें गठान नहीं लगाना चाहिए। एक राउंड, तीन या सात राउंड करो, जितना करना है उतना कर लो फिर 11 गुड़हल का फूल, 11 बेलपत्ती, 11 चावल के दाने को शिवलिंग में अर्पण कर दो, इसके साथ आप जो कुछ भी अर्पण करना चाहते हो वह कर सकते हो लेकिन यह तीन सामग्री बहुत जरुरी है। अगर गुड़हल का फूल नहीं मिलता है तो कनेर का फुल, लेकिन कनेर के फूल को सीधा नहीं तोडऩा चाहिए पहले उसमें एक लोटा पानी डाले फिर उससे फूल उधार ले लें। यह तीनों चीज बढ़ाने से भगवान शिव रीझ जाते है। अगर भगवान शिव को ज्यादा ही रीझाना है तो शंभू सदा शिव का जाप करें। जो किसान अपने हाथ से सफल उगाता हो चाहे वह चांवल पतला हो, मोटा हो या साबूत हो उसे अगर महादेव में चढ़ा देता है तो महादेव खुश हो जाते है। नीले और सफेद आँख के झंझट में कई लोग फंसे हुए है यह दोनों बराबर है। एक भगवान का उल्टा हाथ है तो एक सीधा। किसी भी हाथ से भगवान को प्रणाम करोगे तो वह खुश रहते है।

श्रद्धालुओं को बताते हुए उन्होंने कहा कि शिव मंदिर जाए तो पूजा की थाली को दाहिने ओर रखें और पूरा पुष्प एक साथ न चढ़ाएं, एक फूल जरुर बचाएं। हो सकें तो योग्य ब्राम्हण से पूजा व रुद्राभिषेक कराएं और संकल्पित पूजा को ही श्रेष्ठ पूजा माना गया है। अगर रात भर पूजा करना चाहते हो तो रात भर कर सकते हैं, हर महीना मास शिवरात्रि होता है। मास शिवरात्रि में दिन में भले ही भोजन कर लें लेकिन रात में भोजन नहीं करना चाहिए, पर शुक्ल पक्ष में भोजन कर सकते हैं। पंडित दुबे ने कहा कि सबसे से अधिक शिवपुराण व सत्संग छत्तीसगढ़ में होता है और बड़े-बड़े साधु-संत छत्तीसगढ़ में कथा सुनाना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ जिनके चरण को महानदी धो रही है, जिनके चरणों पर एक सुंदर भजन हैं और उसमें पूरे छत्तीसगढ़ का वर्णन है। पूरे भारत में छत्तीसगढ़ को माता और पूरे विश्व में छत्तीसगढ़ी महातारी कहा जाता है। जितने श्रोता यहां मिलते हैं उतना और कहीं नहीं। अपने भूमि का सम्मान करें क्योंकि जिस भूमि पर हम छोटे से बड़े हुए है। भगवान शिव वह देवता है जो जन्म और मृत्यु दोनों देता है अन्यथा कोई भी देता मुक्ति नहीं दिला सकता।

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]