खरसिया ,15 फरवरी । ग्राम बरगढ़ में बह रही भागवत मंदाकिनी में आचार्य श्रवण गिरि ने ध्रुव-चरित्र सुनाया। वहीं कहा कि श्रीमद् भागवत कथा भारतीय संस्कृति की वृहद व्याख्या है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ही उत्तानपाद है, जीव की दो वृतियां ही उसकी दो पत्नियां सुरूचि एवं सुनीति हैं। सुरूचि के अनुसार पुत्र उत्तम तो होता है, लेकिन माता-पिता का कल्याण करेगा इसमें संदेह है। जबकि सुनीति के अनुसार यादि जीवन जिया जाय तो बालक ध्रुव की तरह निश्चय ही कल्याणकारी होता है। आचार्य ने बताया कि भगवान के भक्तों को मृत्यु नहीं मारती, अपितु वह मृत्यु के मस्तक पर पैर रखकर भगवान के धाम की यात्रा करते हैं। इसीलिए भक्तध्रुव सीधे भगवान के धाम में गए।
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धर्म गुरुओं की हो मान्यता
व्यासपीठ से आचार्य श्रवण गिरि महाराज ने कहा कि इतिहास साक्षी है, राज्य सत्ता ने प्रारंभ से धर्म गुरूओं के निर्देश का पालन किया है। दशरथ ने विश्वामित्र एवं वशिष्ठ, जनक ने शतानंद एवं अष्टावक्र, नंद एवं वासुदेव ने शांडिल्य, गर्गाचार्य एवं संदीपनी के निर्देशों का पालन किया। धर्मगुरुओं के दिशा-निर्देश पर चलने वाला राज्य सर्वत्र विजयी होता है। अतः धर्म का मार्ग बताने वालों को विशेष मान्यता मिलनी चाहिए।
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