रायगढ़ ,02 फरवरी । कई सरकारी योजनाएं केवल कागजों में ही अच्छी लगती हैं। धरातल पर हकीकत कुछ और ही होती है। मनरेगा का भी ऐसा ही हाल है। ग्राम पंचायतों को सरकार ने मनरेगा से मांग अनुसार काम दिए ताकि गांव की हालत सुधरे, लेकिन उस रकम को काम में न लगाकर बंदरबांट कर लिया गया। ऐसे ही एक काम की पड़ताल की गई तो योजना की असलियत सामने आ गई। पुसौर जनपद के ग्राम आमापाली में जूनाडीह तालाब का जीर्णोद्धार किया गया। वर्ष 20-21 में इस काम के लिए 4.981 लाख रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति दी गई थी। 22 अप्रैल 2020 को काम प्रारंभ भी हुआ।
हैरानी की बात यह है तालाब का जीर्णोद्धार हो भी गया और पता भी नहीं चला। तालाब को देखने पर पता चलता है कि यहां कोई काम ही नहीं हुआ। एक पचरी दिखाई पड़ती है और तालाब में एक बूंद पानी तक नहीं है। गहरीकरण तो किया ही नहीं गया। जेसीबी से किया गया छोटा सा गड्ढा दिखाई दे रहा है। तालाब तो नाम का है, यहां साफ मैदान ही नजर आ रहा है। इस काम की तकनीकी सहायक रीना राजवाड़े है। काम में 32 हजार रुपए की सामग्री भी उपयोग की गई है लेकिन मौैके पर कुछ भी नहीं नजर आता।
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केवल जॉब कार्ड बने, काम कोई नहीं करता
मनरेगा के कामों में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ा है। पिछले तीन सालों में तो केवल डाटा तैयार करने में ही पूरी ऊर्जा खपाई गई है। जमीनी स्तर पर काम हो रहे हैं या नहीं यह कोई देखने ही नहीं गया। दरअसल मनरेगा को अब केवल पोर्टल से ही चलाया जा रहा है। गांवों में जॉब कार्ड बनाकर उस मजदूर के नाम पर मस्टररोल जेनरेट कर दिया जाता है। एक समझौता होता है जिसके मुताबिक श्रमिक को काम करने नहीं जाना पड़ता लेकिन भुगतान पूरा होता है। इस राशि की बंदरबांट की जाती है। इधर काम होता ही नहीं और काम पूरा दिखा दिया जाता है।
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