रायगढ़। समर्थन मूल्य पर समितियों में धान खरीदी अंतिम दौर में है। अब केवल एक सप्ताह का ही समय बचा हुआ है। इस दौरान हुई बहुत बड़ी गड़बड़ी को अनदेखा कर दिया गया है, जिसका लाभ चुनिंदा रसूखदार किसानों ने उठा लिया। करीब 500 हेक्टेयर रकबे का पंजीयन बीज प्रक्रिया केंद्र और समितियों दोनों में कर दिया गया। सुगंधित धान और सामान्य धान के नाम पर गड़बड़ी की गई।
सहकारी समितियों के अलावा बीज निगम के अधीन प्रक्रिया केंद्रों में भी धान की विशेष किस्मों का पंजीयन किसान करवाते हैं। जबकि इस रकबे का पंजीयन समितियों में नहीं होना चाहिए। छग राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम हर साल किसानों से सुगंधित धान समेत कुछ विशेष किस्मों के बीज खरीदने के लिए किसानों से एग्रीमेंट करता है।
बीज प्रक्रिया केंद्र के माध्यम से किसानों के रकबे का पंजीयन होता है। उस किसान के सुगंधित धान के रकबे का पंजीयन सहकारी समितियों में न हो, इसके लिए गिरदावरी में सही एंट्री होनी चाहिए। राजस्व विभाग जब गिरदावरी की एंट्री करता है, तो धान के अलावा दूसरी फसलों की एंट्री होती है। सुगंधित धान भी इसी श्रेणी में आता है। यहीं पर गड़बड़ी हुई है।
बीज प्रक्रिया केंद्र में दर्ज रकबे और गिरदावरी का रकबा एक समान होना चाहिए। खरसिया और लैलूंगा तहसील में दिलचस्प मामला सामने आया है। बीज प्रक्रिया केंद्र चपले के गिरदावरी के आंकड़ों में 14 गांवों के रकबे में 75 हेक्टेयर का अंतर आया है। बगडेबा, डेराडीह, ठुसेकेला, सरवानी, परसकोल, तिउर, घघरा, मकरी, नावापारा, महका, गोपीमहका, रतनमहका, खरसिया और बसनाझर के कई किसानों ने 103 हेक्टेयर का पंजीयन सुगंधित धान के बीज उत्पादन के लिए किया है। गिरदावरी में सुगंधित धान का रकबा जब दर्ज किया गया तो इन 14 गांवों में केवल 28 हेक्टेयर ही रकबा मिला। मतलब 75 हेक्टेयर का अंतर आया। इस गलती की वजह से किसान एक ही रकबे से सुगंधित धान और समिति में सामान्य धान बेचकर दोहरा लाभ उठा सकते हैं।
जांच टीम ने पकड़ा मामला
बीज निगम के आंकड़े और राजस्व विभाग की गिरदावरी में अंतर मिलने पर कृषि विभाग ने खरसिया के बहुउद्देशीय सहकारी समिति में पंजीकृत बीज उत्पादक किसानों का सत्यापन किया था। निरीक्षण में पता चला कि किसानों का 21.35 हेक्टेयर फर्जी पंजीयन कराया गया है। मतलब समिति में बीज के लिए पंजीयन कराने के बाद उसी अनुसार बोनी नहीं किया गया। धान के बजाय 7.65 हेक्टेयर सुगंधित धान का रकबा ऐसा पाया गया, जिसका पंजीयन बीज उत्पादन के लिए कराया था, लेकिन सामान्य धान लगाया। पंजीकृत किसानों ने मूंगफली, सुगंधित धान आदि फसलों के बीज के लिए पंजीयन कराया। इस रकबे पर बीज विक्रय किया जाना था, लेकिन गिरदावरी में दर्ज नहीं कराया। बीज बेचने के समय बाहर से खरीदकर बीज पहुंचाया जा रहा है। प्रमाणीकरण अधिकारी इसे प्रमाणित भी कर रहे हैं। समिति में इस रकबे पर धान भी बेचा जा जा रहा है।
नहीं हुई कोई कार्रवाई
कृषि विभाग ने कई जगहों पर ऐसी गड़बड़ी पकड़ी है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। सुगंधित धान को सरकार ने धान के स्थान पर लगाई जाने वाली दूसरी फसल की सूची में रखा है। लैलूंगा के किसानों के नाम पर सुगंधित धान की प्रोत्साहन राशि 10 हजार रुपए प्रति एकड़ ली जा रही है और समिति में धान भी बेचा जा रहा है। गिरदावरी में गड़बड़ी के कारण ही ऐसा हो रहा है। इधर धान बेचने के लिए समिति में भी पंजीयन कराया गया। इस तरह एक ही रकबे पर दोनों जगहों पर फसल विक्रय कर लाभ उठाया जाता रहा और इधर गुणवत्ताहीन बीज ले लिया जा रहा है।
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