देश प्रदेश के राजनैतिक गलियारों की विडम्बना है कि कुर्सी की चाहत में अपने भी बेगाने हो जाते है। दलबदल फैशन हो चला है। सत्ता की मालाई का रसास्वादन के आदी मतलब परस्त नेताओ में हृदयपरिवर्तन की बयार अक्सर दिखती रहती है। कुछ मतलब परस्त खद्दरधारी अपने फायदे के लिए गमछा और झंडे का रंग बड़ी बेशर्मी से बदल लेते है, कुछ शाररिक रूप से गमछा लटकाए झंडे के नीचे रहते है किंतु मन और कमाई की लार टपकाती आत्मा से किसी और पार्टी के गमछे और झंडे में रमे रहते है। ताकि सत्ता की मालाई का रस्सास्वादन बेरोकटोक होता रहे।
भाजपा के राज में भाजपा और कांग्रेस के राज में कांग्रेस से चिपकने की कला वाले नेताओं की कमी कबीरधाम की राजनीति में कभी नही रही। जिले की राजनीति में पिता पुत्र की चर्चित जोड़ी के नंद के घर आनंद भयो, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की का राग अलापने की कला से कार्यकर्ता खासे नाराज है, कई अवसरों पर खरीखोटी भी सुना चुके है। वही पत्नी के सहारे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जीवित रखने वाले नेता की दरबार मे लगातार हाज़री भी चर्चित हो चली है। वैसे साल 2023 छत्तीसगढ के लिए चुनावी वर्ष रहने वाला है। मिशन 23 को ले राजनीति में पावर गेम का खेल भी प्रारम्भ हो चुका है । जिधर बम उधर हम की राजनीति के चलते अब दलबदलुओं की पौ बारह होने लगी है। दूसरी ओर चुनाव के मद्देनज़र विपक्ष हिन्दुतत्व के मुद्दे पर अकबर को घेरने पुरजोर कोशिश में है। अकबर की किस्मत का चक्र, काबिलियत, जन जन तक पहुंचने की सहजता या शतरंजी चाल कहे कि उनके और कुर्सी के बीच आने वाली अड़चने आश्चर्य जनक ढंग से दूर हो जाती है।
विगत वर्षों का झंडा कांड हो या धरमपुरा कांड के बाद हालात बिगड़ने के बावजूद जिस सहजता से मामले को शांत किया गया वह विपक्ष के लिए आश्चर्य से कम नही रहा है। वैसे अकबर ने राजनीति की नब्ज अच्छी पकड़ी है। हितग्राहियों से सीधा संपर्क और घर-घर जा कर मिलना उनकी छवि को चमका रहा है। अकबर विरोधियों के आरोप प्रत्यारोप की ओर ध्यान दिए बगैर डैमेज कंट्रोल कर अपने मिशन में जुटे हुए है। ममता की हालत पतली होने लगी है। ममता की कम होती लोकप्रियता के चलते महेश, नीलू, अर्जुन जैसे नेता भी अपनी जमीन बनाने जुटे हुए है। पंडरिया सीट को फोकट में झोली में गिरने की आस लगाए भाजपा में दावेदारों की फेहरिस्त लंबी है। हालांकि भावना के जनसम्पर्क और खर्चे के आगे सब बौने हो चले है। दूसरी ओर आकांक्षा सिंग की आप के बैनर तले ताबड़तोड़ दौरे और लोहारा राजपरिवार का नाम जिले की राजनीति में नया ही गुल खिलाने की फिराक में है। छत्तीसगढ की राजनीति में आने वाले समय मे बाबा की भूमिका भी प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय करेगी। राजनीति की इस उठा पटक के बीच अब भूले बिसरे कार्यकर्ताओ की भी याद आने लगी है जिनकी अब बारातियो सरीखी पूछ परख भी बढ़ेगी ।
और अंत में…
गलत जगह सम्मान दे दिया , व्यर्थ दे दिया प्यार।
हीरे की कीमत क्या जाने, कचरे के ठेकेदार।
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