Supreme Court ने बीमा कंपनियों के खिलाफ कही बड़ी बात…

सुप्रीम कोर्ट ने इंश्योरेंस सेक्टर को लेकर एक अहम बात कही है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ग्राहकों के पास बीमा कंपनियों द्वारा तैयार किए गए इंश्योरेंस के कॉन्ट्रैक्ट में दस्तखत करने के अलावा बहुत कम ही विकल्प होता है. यह बात जस्टिस सूर्यकांत और एम एम सुंद्रेश की बेंच ने कही है. वे एक दुकान के मामले में सुनवाई कर रहे थे, जिसमें आग लग गई थी. कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले को खारिज कर दिया है.

इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट को कोर्ट ने बताया एकतरफा

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि बीमा कंपनियां इंश्योरेंस के कॉन्ट्रैक्ट तैयार करती हैं, जिनमें एक स्टैंडर्ड फॉर्मेट का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें ग्राहक को अपने दस्तखत करने होते हैं. उनके पास इन पर हस्ताक्षर करने के बजाय कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों पर बहस करने का बहुत कम ही विकल्प रहता है. बीमा कंपनी अपनी शर्तों को तय करती है. वह ग्राहकों पर इस बात को छोड़ती है कि या तो वह इन शर्तों को मान लें या छोड़ दें.

बेंच ने कहा कि ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स आम तौर पर एकतरफा होते हैं. अदालत का कहना है कि यह मुख्य तौर पर बीमा कंपनी के पक्ष में होते हैं. इसमें ग्राहक की बेहद कम सुनी जाती है.

ग्राहकों का रखा जाना चाहिए ध्यान: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट की आजादी का कॉन्सेप्ट इंश्योरेंस के कॉन्ट्रैक्ट में खो जाता है. अदालत का कहना है कि ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स में बीमा कंपनी की ओर से बहुत विवेक, विश्वास, डिस्कलोजर की मांग होती है. हालांकि, बीमा का कॉन्ट्रैक्ट ग्राहक की तरफ एक वैकल्पिक चीज होती है. लेकिन इसका मकसद भविष्य में किसी बड़ी गलती को होने से रोकना रहता है.

सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि उसी उद्देश्य के लिए प्रीमियम का भुगतान किया जाता है, क्योंकि कुछ होने पर रिम्बर्समेंट की उम्मीद की जाती है. इसलिए बीमा कंपनी को इस उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए और ग्राहक की नजर से भी, जोखिम को कवर करना चाहिए.

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