रायपुर। सन्मति नगर फाफाडीह में रविवार को तीन बाल ब्रह्मचारियों की सानंद एवं भक्तिमय वातावरण में भव्य जैनेश्वरी दिगंबर दीक्षा का साक्षी सकल जैन समाज बना। सकल जैन समाज ने आचार्य विशुद्ध सागर महाराज की सारी क्रियाओं और चर्याओं को देखकर एवं ऐतिहासिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव और जैन दीक्षा को देखकर, उन्हें सर्वोदयी संत की उपाधि से विभूषित किया। उपाधि से विभूषित होते ही पंडाल जयकारों से गूंज उठा। इससे पूर्व उस पल का साक्षी मौजूद सकल जैन समाज बना,जब तीनों बाल ब्रह्मचारी ने राग रूपी वस्त्र को त्यागकर दिगम्बर जैन मुनि दीक्षा को प्राप्त किया।
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने धर्मसभा में कहा कि मित्रों जब तक बिगड़ोगे नहीं,तब तक कार्य बनेगा नहीं। ज्ञानियों जो बिगड़ने से डरते हैं वे जीवन में कभी कार्य पूरा नहीं कर पाएंगे। बिगड़ने से निर्भीक होना पड़ेगा, तब आप कार्य कर पाओगे, यही सिद्धांत है। 3 बाल ब्रह्मचारी बिगड़े हैं, यदि ये लोग अपनी गृहस्थी न बिगाड़ते, यदि ये दीक्षा न लेते तो आज मुनिराज कैसे बनते ? राग नहीं बिगड़ेगा तो वैराग्य नहीं उत्पन्न हो सकता है। ब्रह्मचर्य नष्ट नहीं होगा तो संतान कैसे मिलेगी और परिवार नहीं छोड़ोगे तो भगवान कैसे बनोगे। मित्रों बिगड़ने और बिगाड़ने से ही काम बनता है।
आचार्य ने कहा कि वही धुरंधर बन पाते हैं जो मित्र धुरी पर चलते हैं, खड़े नहीं रहते हैं,धुरी नहीं छोड़ते हैं। रथ का चक्का धुरी पर चलेगा नहीं तो रथ खड़ा रह जाएगा। ऐसे ही जीवन का रथ आगे बढ़ाना है तो संयम सिद्धांत की धुरी को छोड़ना नहीं और स्थिर मत रहना,हमेशा चलते रहना। मित्रों बिना चले कुछ नहीं हो सकता। ज्ञानियों घड़ी का कांटा नहीं चले तो समय का ज्ञान कैसे होगा और गुणस्थानों का कांटा न चले तो संसार का ज्ञान कैसे होगा।
आचार्य ने दीक्षा के पूर्व तीनों बाल ब्रह्मचारियों से कहा कि दीक्षा देने वाला पुण्य कमा लेगा,श्रावक और सभी अनुमोदना कर चले जाएंगे,लेकिन सत्य तो यह है कि दीक्षा लेकर जैसे वस्त्र को आप फेकोगे, वैसे कषायों को भी फेकना पड़ेगा। इन दीक्षर्थियों ने दीक्षा के लिए प्रार्थना की,इनके जन्म के माता-पिता व धर्म के माता-पिता, संत भाई ललितप्रभ महाराज ने भी दीक्षा देने की बात कही,यहां राजनेता भी बैठे हैं,ये सभी प्रशंसक के हैं,सभी चले जाएंगे,आपको जीवन में व विहार के दौरान वन में अकेले रहना पड़ेगा। वहां भीतर के भाव को कैसे संभालोगे, यह निर्णय कर लो।
आचार्य ने कहा कि खेल-खेल में दीक्षा हो सकती है,पर दीक्षा लेने के उपरांत खेल नहीं होता। संस्कार हो जाएंगे,मंत्र उच्चारण हो जाएगा,वस्त्र तुम्हारे फेंक दिए जाएंगे,मित्रों अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,पुनः सोच लो। हमारे पास नहीं बैठ पाओ तो भाई ललितप्रभ के पास बैठ जाओ,फिर विचार कर लो। जिनको तुम त्याग रहे हो वह आपसे दूर रहेंगे,भविष्य में भी दूर रहेंगे। क्या अब भी दीक्षा के भाव हैं ? आपको पूरी भूमि व आकाश देख रहा है। जब आप कपड़े उतारकर फेकोगे तो सब तालियां बजाएंगे। यदि यही संसार में कोई करे तो शर्म से लोग आंख नीची कर लेते हैं।
आचार्य ने तीनों दीक्षार्थियों को दी दीक्षा
आचार्य ने कहा कि जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद की सीढ़ी पर पहली बार चढ़ रहे थे तो उनकी आंख में आंसू थे। संसार मे जब चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन सकता है,यहां एक गरीब परिवार का व्यक्ति भी भगवान बन सकता है। जिस पथ पर भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर स्वामी चले और वर्तमान में महान आचार्य एवं साधु उस पथ पर चल रहे हैं,क्या आप इस पद को संभाल पाओगे ? इतना ही नहीं दीक्षा आपकी हो जाएगी,याद रखना किसी की परछाई मत बनना। परछाई पीछे रहती है। भगवान महावीर के शासन के आगे चलना, संसार का त्याग ही मोक्ष मार्ग है।
आचार्य ने कहा कि पूर्व में जो हुआ उसे भूल जाना, पंथों के भेद मन से निकाल देना। देश में चाहे हिंदू, जैन,बौद्ध हों सनातन काल से ये एक थे। इनमें भेद मत करना, राष्ट्र की अखंडता को नष्ट मत करना। किसी दूसरे मुनि संघ की अवहेलना मत करना। विशुद्ध सागर के शासन में कभी किसी दूसरे संघ की अवहेलना,अनादर मत करना।
आचार्य ने कहा कि यतन पूर्वक बोलना,सोना ,खाना, पीना, यतन पूर्वक समिति करना,भगवान महावीर का निर्दोष चरित्र बढ़े, विशुद्ध सागर का संघ बढ़े ये उद्देश्य नहीं,विशुद्ध सागर ने दीक्षा दी है तो जैनत्व को बढ़ाना। न मोबाइल पास में रखना और न अपना मोबाइल किसी को पास में रखने देना। एसी, कूलर,पंखे का उपयोग नहीं करना। सदैव मूलाचार का पालन कर लिया तो सारी परंपरा आगे बढ़ जाएगी,जीवन में हमेशा ध्यान रखना। जीवन में विषम लिंगी से दूर रहना।
आचार्य ने कहा कि भगवान निर्ग्रंथों की निर्ग्रन्थ मुद्रा में कोई दोष न लग पाए ध्यान रखना। साढ़े 18000 वर्षों तक यह जैन समाज ऐसे ही जयवंत रहेगा। गुरु परंपरा, अर्हत परंपरा, समाज, देश की आंख नीचे नहीं करना, हमेशा ऊपर उठाना। हम आपको पकड़ पकड़ कर नहीं लाए हैं,न मुंडन किया है। आप स्वयं आए, पुनः आपके माता-पिता से आज्ञा ले लेते हैं। अहिंसा,अचौर्य,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह के साथ प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव रखना। ये साधु देश की संपत्ति है,आनंद आना चाहिए। भारत साधु संपत्ति से भरा देश है। अब तुम सिर्फ माता-पिता के नहीं, देश के नहीं, पूरे विश्व के बन गए हो।
आचार्य ने कहा कि संसार में किसी नारी के पास नहीं बैठना और न बैठाना। बस आशीर्वाद देकर अपने काम में लग जाना। संघ में भविष्य में नारियों को रखकर संघ को हानि नहीं पहुंचाना। संघ में स्त्रियों का प्रवेश मत रखना। श्रमण और श्रमणियों के संघ अलग अलग हैं। यति संघ का विचरण अलग हो और आरिकाओं का विचरण अलग हो,ये समय की मांग है। महावीर स्वामी के शिष्यों को पूरा प्रतिक्रमण करना पड़ता है,हमेशा ध्यान रखना।
आचार्य ने कहा कि जैसे भाई ललितप्रभ ने कहा, आप सब इस पंडाल से जाएं तो कुछ लेकर जाएं। तो ध्यान रखना ज्ञानियों जहां मांसाहार और शाकाहार दोनों लिखा है तो उस स्थान पर भोजन मत करना। मित्रों आप मांसाहार खाते नहीं, लेकिन वहां का शाकाहार भी नहीं खाना। अपने घर का पानी भी पीना हो तो मदिरालय में पीने नहीं जाना,खुले रोड में पानी पी लेना। आप लोग ये संकल्प के साथ इन ब्रह्मचारी की दीक्षा के पहले दीक्षा ले लो।
आचार्य के सिंहासन से उतरते ही जयकारों से गूंज उठा पंडाल,जब प्रारंभ हुई भव्य जैनेश्वरी दीक्षा
निर्धारित महूर्त पर आचार्य विशुद्ध सागर महाराज अपनी मंगल देशना देकर सिंहासन से उतरे। उनके उतरते ही पूरा पंडाल हजारों गुरु भक्तों के जयकारों से गूंज उठा। आचार्य ने दीक्षर्थियों के मस्तक पर गंधोधक के द्वारा महाशांति मंत्र से प्रक्षालन किया। ग्रह शांति मंत्र द्वारा दीक्षर्थियों के शीश का प्रक्षालन किया गया। कपूर मिश्रित भस्म के द्वारा केश का उत्पाटन किया गया। पंच परमेष्ठी का स्मरण कर आचार्य ने अपने वरद हस्त से केश का उत्पाटन किया। दीक्षा विधि शनिवार से प्रारंभ हो चुकी थी, दीक्षा के पूर्व तीनों ब्रह्मचारी भैया ने भाजन आदि का त्याग किया। अब दो माह, अधिक से अधिक 4 माह के भीतर ये केशों का उत्पाटन करेंगे। इसके पश्चात आचार्य ने मस्तक पर श्रीकार लेखन किया। स्वाधीनता के प्रतीक केश लोचन की प्रक्रिया संपन्न हुई। साधक की प्रथम परीक्षा केश लोचन से प्रारंभ होती है। रागी केसों को संभालता है और वैरागी केशों का उत्पाटन कर देता है। वाम हस्त से आचार्य ने दीक्षार्थी के मस्तक का प्रक्षालन कर फिर सिर,दाढ़ी,मूछ के केस का उटपाटन किया।
एक ही पल में दीक्षार्थियों ने जीवन पर्यंत वस्त्र त्यागकर धारण किया दिगंबरत्व भेष
केश लोचन विधान के पश्चात जिस क्षण का सभी को इंतजार था,जब आचार्य तीनों ब्रह्मचारी को दीक्षा देने जा रहे थे। किसी ने सही कहा है भावों को बदलने के लिए,देश को, निवास और नाम का बदलना भी जरूरी है। ऐसे ही इन त्यागी विदों ने अपने भेष को बदला। दीक्षार्थी ने अपने वस्त्रों को ऐसे फेंका जैसे राग न हो। उन्होंने जीवन पर्यंत के लिए त्याग कर दिया। सभी ने खूब अनुमोदना की, धन्य धन्य इनकी जिन दीक्षा के जयकारों से सभी ने अनुमोदना की। आचार्य ने एक और मौका दिया,लेकिन तीनों दीक्षार्थी ने एक स्वर में कहा कि छोड़ दिया तो छोड़ दिया,अब आप हमें जिन दीक्षा प्रदान करिए।
आचार्य ने दीक्षार्थियों को दिए महत्वपूर्ण निर्देश
आचार्य ने कहा कि कभी एकल विहार नहीं करना। एकल बिहार का जिनागम में निषेध है। कलयुग में अकेले जिन शासन के साधु को विचरण नहीं करना चाहिए। साथ मे पांच रहे या तीन रहे,कम से कम दो लोगों के साथ विहार करना। आचार्य ने श्रीकार लेखन के पश्चात महामंत्र के संस्कार किए। व्रत आदि के संस्कार देकर 28 मूल गुणों के संस्कार प्रदान किए। मंगल द्रव्य से हथेली को भरा।
आचार्य ने दीक्षार्थियों का किया नामकरण तो तालियों की गड़गड़ाहट और अनुमोदना से गूंजा पंडाल
आचार्य ने समस्त संस्कार देकर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर दीक्षार्थियों का नामकरण किया। आचार्य ने बाल ब्रह्मचारी सौरभ भैया को जयेंद्र नाम दिया,अब ये श्रमण मुनिश्री जयेंद्र सागर महाराज कहलाएंगे। इसी तरह बाल ब्रह्मचारी निखिल श्रमण मुनिश्री जितेंद्र सागर महाराज और बाल ब्रह्मचारी विशाल भैया मुनिश्री जयंत सागर कहलाएंगे। नामकरण के पश्चात आचार्य ने तीनों श्रमण मुनिराजों को संयम का उपकरण पिच्छी प्रदान की। साथ ही कमंडल प्रदान किया। कमंडल प्रदान करने का सौभाग्य गुरु भक्तों को प्राप्त हुआ। सभी ने अपने स्थान में खड़े होकर मंगल अनुमोदना की। तीनों नए मुनिराजों ने आचार्य संघ के मुनिराजों को नमोस्तु किया और सभी मुनिराजों ने प्रति नमोस्तु किया।
मैं कुछ कहने नहीं इस भव्य जैनेश्वरी दीक्षा का आनंद लेने आया हूं : संत ललितप्रभ महाराज
जैन आचार्य संत ललितप्रभ महाराज ने कहा कि कुछ बोलने का नहीं आनंद लेने का अवसर है। मैं यहां आनंद लेने आया हूँ। जैन जगत के महान आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के साथ दो चातुर्मास, जिनमें पहला भीलवाड़ा और दूसरा रायपुर में हुआ। तीसरा चातुर्मास ऐसा हो जो एक ही शहर व एक ही पंडाल मैं हो। ऐसा वातावरण जैन जगत की एकता के लिए बने। मैंने पहली बार भीलवाड़ा में इन्हीं के सानिध्य में इस भव्य दीक्षा के दृश्य को जिया था। सकल जैन समाज को न केवल चातुर्मास बल्कि इन तीन दीक्षा का सौभाग्य मिला है। इस पंचम काल में जब मोबाइल नहीं छूटता,ये युवा साधु बन रहे हैं। आप अनुमोदना करने आए हैं, खाली हाथ मत जाना। इस दृश्य को देखकर सभी संकल्प लेना और जीवन परिवर्तन के लिए उसे अपनाना। जब दिगंबर श्वेताम्बर एक साथ बैठते हैं तो भगवान भी मुस्कुराते हैं। दिगंबर और श्वेताम्बर का अद्भुत सामंजस्य रायपुर में है। आपस में गले लगे रहना,यही रायपुर का गौरव है। मनुष्य का जन्म लेकर जन्मा, संसार में जिया, लेकिन जब मरोगे तो संसार का भेष नहीं होना चाहिए, मुनि का भेष होना चाहिए। पूरे श्वेतांबर समाज की ओर से मैं बहुत-बहुत अनुमोदना करता हूँ।
भव्य बिनोली और बाजे गाजे के साथ दीक्षार्थियों का पंडाल में हुआ भव्य मंगल प्रवेश
विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी व महामंत्री राकेश बाकलीवाल ने बताया कि दीक्षा के लिए तीनों ब्रह्मचारी को भव्य बिनोली के साथ बाजे गाजे के साथ भक्तिमय हर्षोल्लास वातावरण में पंडाल तक लाया गया। रथ से उतारकर कंधों में सवार कर ब्रह्मचारी के परिवार,मित्र एवं पूरा समाज साथ चला। विशुद्ध देशना मंडप पर पहुंचकर ब्रह्मचारी ने आचार्य विशुद्ध सागर महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया और स्थान ग्रहण किया। इसके पश्चात ब्रह्मचारी ने मंगलाचरण किया। आचार्य विरागसागर महाराज के चित्र का अनावरण हुआ। इसके पश्चात प्रतिष्ठाचार्य पंडित अजीत शास्त्री ने दीक्षा समारोह के पूर्व रक्षा मंत्र का पठन किया। देश में ऐसा कोई राज्य न होगा,जहां से गुरु भक्त न पहुंचे हो। आचार्य का पाद प्रक्षालन का सौभाग्य सुधीर बाकलीवाल परिवार को प्राप्त हुआ। इसी तरह गुरुभक्तों को शास्त्र भेंट का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
चातुर्मास अध्यक्ष प्रदीप पाटनी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि चातुर्मास का आशीर्वाद आचार्य से मिला था तो सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। पंचकल्याणक और दीक्षा महोत्सव रायपुर में हो गया,इसका हमने सोचा नहीं था। आचार्य के आशीर्वाद से सभी कार्यक्रम फलीभूत हुए,सारे पुण्य कार्य संपादित हुए। मैं आप सभी के पुण्य की अनुमोदना करता हूं। दीक्षा के पूर्व ब्रम्ह्चारी के माता व धर्म माता ने चौक पूरा। जन्म के माता-पिता,धर्म माता-पिता और तीनों दीक्षर्थियों ने अपनी भावनाएं आचार्य के समक्ष रखी।
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