आज जागेंगे भगवान विष्णु, जानिए देवउठनी एकादशी का महत्व, पूजाविधि, महत्व से लेकर सबकुछ

04 नवंबर दिन शुक्रवार( friday) को देवउठनी एकादशी व्रत है। आज के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जैसा कि देवउठनी एकादशी व्रत की कथा में बताया गया है। आज के दिन भगवान विष्णु( god vishnu) योग निद्रा से बाहर आते हैं, जिसके साथ ही चातुर्मास का समापन हो जाता है।

शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ: 03 नवंबर, गुरुवार, शाम 07 बजकर 30 मिनट सेकार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि का समापन: 04 नवंबर, शुक्रवार, शाम 06 बजकर 08 मिनट परपूजा का शुभ समय: सुबह 06 बजकर 35 मिनट से सुबह 10 बजकर 42 मिनट तकअभिजित मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट

देवउठनी एकादशी का महत्व( importance) 

पदम पुराण में वर्णित एकादशी महात्यम के अनुसार देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हज़ार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है। एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान,शांति प्रदाता व संततिदायक है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु( god vishnu) के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

जानिए पूजा विधि ( worship) 

इस दिन सांयकाल में पूजा स्थल को साफ़-सुथरा कर लें,चूना,गेरू या आटे में हल्दी ( turmeric) पूजा कक्ष में रंगोली बनाएं।

घी के ग्यारह दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं। फिर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के लिए

द्राक्ष,ईख,अनार,केला,सिंघाड़ा,लड्डू,पतासे,मूली आदि ऋतुफल एवं नवीन धान्य इत्यादि साथ रखें। यह सब श्रद्धापूर्वक श्री हरि को अर्पण करने से उनकी कृपा सदैव बनी रहती है।

इस दिन मंत्रोच्चारण,स्त्रोत पाठ,शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का विधान है।

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