खंडवा, ओंकारेश्वर । तीर्थनगरी में नर्मदा के नए झूला पुल के नीचे विशेष ध्यान देने की मांग उठ रही है। तीर्थनगरी में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं की आवाजाही होती है। ब्रह्मपुरी स्थित नए झूला पुल के नीचे अनेक स्थानों पर मधुमक्खी के बड़े-बड़े छत्ते लगे हुए हैं। जो पर्व या भीड़ के दौरान हादसे की वजह बन सकते हैं। रविवार को नए झूला पुल से मंदिर दर्शन करने जा रहे महिला-पुरुषों को अचानक मधुमक्खियों के हमले का सामना करना पड़ा। गनीमत रही कि यहां श्रद्धालुओं की संख्या सीमित थी अन्यथा अफरा-तफरी में बड़ा हादसा हो सकता है।
आठ-दस दिनों में इक्का-दुक्का यात्री मधुमक्खी के डंक का शिकार होते रहते हैं। छत्ता हटाने के लिए विशेषज्ञ का इंतजार नर्मदा नदी के अथाह पानी के बीच ऊंचाई पर झूला पुल के नीचे लगे मधुमक्खियों के छत्ते को हटाने के लिए विशेषज्ञ जरूरी है। समय-समय पर मधुमक्खी के छत्ते को हटाया जाता है लेकिन पुल के बीच लगे छत्ते तक पहुंचना आसान नहीं है। जिससे यह नहीं हट पाते है। नगर परिषद द्वारा इस कार्य के लिए वन विभाग की मदद लेने की बात कही जाती है।
मधुमक्खियों के छत्ते को हटाने के लिए वन विभाग को पूर्व में पत्र लिख चुके है। नगर परिषद के पास इनको हटाने के लिए कोई संसाधन नहीं है। इसमें जो भी मदद की जरूरत होगी। नगर परिषद की ओर से की जाएगी।
– मोनिका पारधि, सीएमओ ओंकारेश्वर
कैंटीलिवर पुल होने लगा खस्ताहाल
ओंकारेश्वर नगर नर्मदा नदी के दो सिरे पर बसा है। ओंकार पर्वत वाले सिरे पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर है। मुख्य नगर से द्वीप पर स्थित मुख्य मंदिर में दर्शन जाने के लिए पहले केवल नावें ही उपलब्ध थीं। भक्तों की सुविधा के लिए 1979 में मध्य प्रदेश शासन के लोक निर्माण विभाग (पीडब्यूडी) ने नदी पर एक कैंटीलिवर पुल का निर्माण किया था। इस पुल की लंबाई करीब 200 मीटर है। इसका निर्माण कार्य 30 सितंबर 1971 में प्रारंभ हुआ था। 31 मई 1979 को पूर्ण हुआ। इस पुल की लागत 28 लाख रुपये थी। ओंकारेश्वर के जेपी चौक से शुरू होने वाले इस पुल से श्रद्धालुओं के अलावा ओंकार पर्वत पर निवास करने वाले स्थानीय लोग भी आवाजाही करते है। करीब 42 साल पुराना यह बगैर पाए वाला पुल रखरखाव के अभाव में खस्ताहाल होने लगा है। इसके रखरखाव का जिम्मा पीडब्ल्यूडी का है।
झूला पुल की उम्र 75 साल है। एनएचडीसी ने जेसी गुप्ता कंपनी को इसके निर्माण का ठेका दिया था। मोरवी पुल ढहने की तकनीकी वजह अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है। दुर्घटना के कारण सामने आने पर उसके हिसाब से इसके तकनीकी पहलुओं का परीक्षण जरूरी है। ओंकारेश्वर के झूला पुल की स्थिति बेहतर है। खतरे जैसी कोई बात नहींं है। आमतौर पर झूला पुल का लोड टेस्ट 85 प्रतिशत होने पर इसे अच्छा माना जाता है लेकिन ओंकारेश्वर पुल का लोड टेस्ट 96 प्रतिशत रहा था। ऐसे में इसकी मजबूती पर संदेह नहीं किया जा सकता है।
– हरीश सांवरिया, झूला पुल निर्माण कंपनी के तत्कालीन इंजीनियर
[metaslider id="347522"]