भोपाल, 17 अक्टूबर । संस्कृति, पर्यटन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक है। यही पीढ़ी सनातन संस्कृति के मूल्य, परंपराएँ और संस्कारों को भावी पीढ़ी में अंतरित करेंगी। मंत्री सुश्री ठाकुर रवींद्र भवन के मुक्ताकाशी मंच पर श्रीराम कथा के विविध प्रसंगों पर एकाग्र 7 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीराम लीला उत्सव के शुभारंभ कार्यक्रम को संबोधित कर रही थी।
मंत्री सुश्री ठाकुर ने कहा कि संस्कृति विभाग देश और प्रदेश की संस्कृति और धरोहर को संरक्षित करने के साथ ही उसके संवर्धन और उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी क्रम में देश और विदेश में व्याप्त भगवान श्रीराम के उत्तम चरित्र को एक साथ मंचित करने का नवाचार किया गया है। संचालक संस्कृति श्री अदिति कुमार त्रिपाठी भी उपस्थित रहे। संस्कृति विभाग एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् नई दिल्ली के सहयोग से 22 अक्टूबर तक श्रीराम कथा के विविध प्रसंगों पर एकाग्र सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीराम लीला उत्सव का रवींद्र भवन मुक्ताकाश मंच एवं परिसर पर किया जा रहा है।
पहली बार श्रीहनुमान चालीसा पर आधारित चित्र प्रदर्शनी
उत्सव में पहली बार श्रीहनुमान चालीसा आधारित “संकटमोचन” चित्र प्रदर्शनी का संयोजन किया जा रहा है। श्रीराम कथा में सबसे प्रमुख चरित्र के रूप में संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीहनुमान का वर्णन किया है। भक्ति की पराकाष्ठा का अनुभव श्रीरामचरित मानस में श्रीहनुमान द्वारा भगवान श्रीराम के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। श्रीहनुमान प्रत्येक भक्त के लिये ‘संकट मोचक’ के रूप में अपना आशीष व्यक्त करते हैं। श्रीहनुमान के इस महान चरित्र को पहली बार चित्रात्मक रूप से अभिव्यक्त करने का कार्य संस्कृति विभाग द्वारा किया गया है। चित्र सृजन का कार्य ख्यात चित्रकार श्री सुनील विश्वकर्मा, वाराणसी द्वारा किया गया है। श्री विश्वकर्मा की विशिष्टता भारतीय आध्यात्मिक चरित्रों को पूर्ण शुचिता के साथ अभिव्यक्त करने की रही है। श्रीहनुमान कथा की चौपाइयों और दोहों को 40 चित्रों में समेटा गया है। इन सभी चित्रों को पहली बार ‘संकट मोचन’ प्रदर्शनी से रवीन्द्र भवन परिसर में प्रदर्शित किया जा रहा है।
दीपावली के अवसर पर दीपोत्सव मेला में 175 से अधिक शिल्पी विविध माध्यमों के शिल्प एवं वस्त्रों, बाँस, लोहा, पीतल, तांबा एवं अन्य धातु से बने उत्पादों का प्रदर्शन और विक्रय करेंगे। शिल्प मेले में भील एवं गोण्ड जनजातीय समुदाय के चित्रकार भी हिस्सेदारी कर रहे हैं। स्वाद- व्यंजन मेला में 9 व्यंजनकार बघेली, बुंदेली, राजस्थानी, मराठी, सिंधी एवं जनजातीय समुदाय के व्यंजन उपलब्ध रहेंगे। लोकराग में नृत्य, गायन एवं कठपुतली प्रदर्शन की गतिविधियाँ प्रतिदिन दोपहर 2 बजे से रवींद्र भवन परिसर में की जायेंगी। कार्यक्रम में प्रवेश निःशुल्क रहेगा।
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