Mohan Bhagwat Vijayadashami Speech : पहली बार RSS के शस्त्र पूजन में महिला मुख्य अतिथि

दशहरा के पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का पारंपरिक शस्त्र पूजन कार्यक्रम महाराष्ट्र के नागपुर में हुई। संघ प्रमुख सरसंघचालक मोहन भागवत ने रेशमबाग में इस वार्षिक विजयादशमी कार्यक्रम को संबोधित किया। पर्वतारोही संतोष यादव कार्यक्रम की मुख्य अतिथि रहीं। यह पहला मौका है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने शस्त्र पूजन कार्यक्रम में महिला अतिथि को आमंत्रित किया। महिला शक्ति को महत्व देने वाली सोच मोहन भागवत के संबोधन में भी स्पष्ट हुआ। मोहन भागवत अपने संबोधन में विभिन्न मुद्दों पर विचार रखे। इनमें दुनिया में बढ़ता भारत का कद, नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां और आम नागरिकों की जिम्मेदारियां शामिल रहीं।

पढ़िए संबोधन की बड़ी बातें –

  • संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते समाज की महिलाओं की उपस्थिति की परंपरा पुरानी है।व्यक्ति निर्माण की शाखा पद्धति पुरुष व महिला के लिए संघ तथा समिति पृथक् चलती है। बाकी सभी कार्यों में महिला पुरुष साथ में मिलकर ही कार्य संपन्न करते हैं।
  • पंथ-संप्रदाय के हिसाब से जनसंख्या में असंतुलन आने से नए देश बन गए, देश टूट गए। इसलिए जनसंख्या में संतुलन जरूरी है।
  • जनसंख्या पर समाज का मन तैयार कर एक समग्र नीति बननी चाहिए। फिर किसी को उसमें छूट नहीं दी जानी चाहिए। जनसंख्या असंतुलन की बड़ी वजह जबरदस्ती मतांतरण और सीमा पार से घुसपैठ भी है।
  • शक्ति हीं शान्ति का आधार है।
  • संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हम सबको दी थी।
  • समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियाँ और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है। उनके बहकावे में न फ़सते हुए,उनकी भाषा,पंथ,प्रांत,नीति कोई भी हो,उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए।

राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में हम लगातार सफल होते जा रहे हैं। आज दुनिया भारत की तरफ देख रही है. दुनिया भर में भारत की विश्वसनीयता बढ़ रही है और आज भारत की बात पूरी दुनिया सुन रही है :

इस मौके पर मुख्य अतिथि संतोष यादव ने कहा, अक्सर मेरे व्यवहार और आचरण से लोग मुझसे पूछते थे कि ‘क्या मैं संघी हूं?’ तब मैं पूछती की वह क्या होता है? मैं उस वक्त संघ के बारे में नहीं जानती थी। आज वह प्रारब्ध है कि मैं संघ के इस सर्वोच्च मंच पर आप सब से स्नेह पा रही हूं।

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