स्थानीय स्तर पर खरीदारी से स्थानीय बाजार की बढ़ती है शक्तिःसुशील रामदास

रायगढ़,03अक्टूबर। चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के प्रदेश उपाध्यक्ष सुशील रामदास ने जिले वासियों से कहा है कि त्यौहार हमारी भारतीय संस्कृति के आर्थिक संवर्धन के माध्यम हैं। भारत एक पुरातन संस्कृति वाला देश है और इसके संस्कृति में उपस्थित वैशिष्टता ही इसको उत्सवधर्मिता वाले संस्कृति में परिवर्तित करता है। यही कारण है कि इसके लोक संस्कृति में उत्सवों का अपना महत्त्व है, जिसके मूल से निकलने वाले त्यौहार हमारे सांस्कृतिक मूल्य को सुरक्षित रखने के कार्य को तो करते ही हैं। साथ ही साथ अर्थ व्यवस्था को भी गति देने का कार्य करते हैं, जिससे हमारे समाज में अर्थ का प्रवाह एक से दूसरे व्यक्ति तक होता है, जिसके कारण समाज की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है। इसीलिए हमारे पूर्वजों द्वारा त्यौहारों को एक उपकरण की भाँति सांस्कृतिक संरक्षण और समाज की अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से लोक व्यवस्था में उपयोग किया गया है।

इन बिन्दुओं को दृष्टि में रखते हुए हमें इन त्यौहारों को हर्ष-उल्लास के साथ तो मनाना ही चाहिए साथ ही साथ अपने उपयोगिता के वस्तुओं को ऑनलाइन खरीदारी करने के अपेक्षा स्थानीय बाजार से खरीदारी करनी चाहिए। इससे हमें अच्छे गुणवत्तायुक्त वस्तु तो मिलेंगे ही, साथ ही वस्तु में किसी भी प्रकार की गणबड़ी के स्थिति में स्थानीय दुकानदार को पकड़ा जा सकता है। लेकिन वहीं ऑनलाइन खरीदारी में 10 दिवसों की एक निश्चित अवधि ही मिलती है। उसके बाद आप उस वस्तु को वापस नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मैं आप सभी से एक घटना को साझा कर रहा हूँ, वह घटना कुछ इस प्रकार से है। एक बच्ची जिसका नाम प्रेरणा है, उसने फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी ऑनलाइन कम्पनी से एम. लक्ष्मीकांत की पुस्तक, जिसका नाम भारत की राजव्यवस्था है और वह एमसी ग्रो हिल प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक है। उस बच्ची ने पुस्तक को खरीद कर पढ़ने के दौरान पाया कि उस पुस्तक में चार अध्याय ही नहीं है। तब तक पुस्तक की खरीदारी किए उसको 20 दिवस हो चुके थे। जबकि उस पुस्तक के विषय सूचि में उन चारों अध्यायों का उल्लेख किया गया था। उसके आधार पर उसने फ्लिपकार्ट में शिकायत की, किन्तु फ्लिपकार्ट ने दस दिवस से अधिक होने कारण वापस लेने से सीधा इंकार कर दिया। वहीं एक बच्ची मृदुलिका है, जिसने रसायन विज्ञान की नीट परीक्षा की तैयारी हेतु आर. के. गुप्ता की लिखी हुई पुस्तक खरीदी, उसमें भी 30 पृष्ठ नहीं थे। लेकिन उस बच्ची ने स्थानीय पुस्तक दुकान सिंधु बुक डिपो से उस पुस्तक की खरीदारी की थी।

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अब उसे पढ़ने के दौरान ही लगभग 22 दिनों में यह पता लगा कि पुस्तक के बीच में 30 पृष्ठ नहीं हैं। तब उसने सिंधु बुक डिपो में जाकर समस्या से दुकानदार को अवगत कराया। पुस्तक को देखने के पश्चात् सिंधु बुक डिपो के मालिक ने तत्काल उस पुस्तक को वापस कर दूसरी पुस्तक बच्ची को पांच मिनट में उपलब्ध करायी। इस घटना का उल्लेख करना यहां इसलिए आवश्यक हो जाता है कि वस्तु खरीदते समय हमें उसके कई समस्याओं की जानकारी नहीं होती, लेकिन वह समस्याएँ रहती हैं। अतः ऑनलाइन खरीदारी से हमारे स्थानीय अर्थव्यवस्था के गति में अवरोध तो आता ही है। साथ ही साथ उसमें बहुत सारी समस्याएँ भी आती हैं। इसलिए मैं जिले के सभी गणमान्य जन से अनुरोध करूंगा कि आप सभी लोग स्थानीय बाजार में अपने आवश्यकता की वस्तु की खरीदारी करें और अपने पड़ोस में भी उत्सव की खुशियों को बांटे।