साल के 365 दिवस में से एक दिवस 14 सितंबर को हिंदी के सम्मान में मिले राजभाषा दिवस जिसे बड़े जोर शोर से मना अखबारो में खबरे और सोशल मीडिया में फ़ोटो सेल्फी डाल कर साल के 364 दिन फिर भूल जाने वाली बीमारी के बाद, न्यायालयों से हिंदी में न्याय मिलने की आस के साथ सभी को राजभाषा हिंदी दिवस की हार्दिक बधाईयाँ मंंगलकामनाएं..
‘दुनिया में शायद ही कोई मुल्क होगा जो अपनी राष्ट्र भाषा को उचित सम्मान दिलाने या उसे राष्ट्र भाषा के रूप में व्यवहृत करने के लिए इतना मजबूर या अभिशप्त होगा, जितना कि हिंदी के लिए भारत असहाय है।‘ कही पढ़ी गई ये लाइनें वाकई में कटु सत्य है।
राजभाषा हिंदी को लेकर सरकार और संस्थाए सिर्फ राजभाषा दिवस पर ही क्यों जागती है समझ से परे है ? क्या हिंदी को गरीबो अनपढों की भाषा समझा जाने लगा है ? गांव के आदमी और गरीब किसान तो हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में बात करते है ,पर साहब व अमीर हिंदी में कम अंग्रेजी में ज्यादा गिटपिट करते है । गांव का आदमी गरीब किसान हिंदी में आवेदन देता है पर सरकार के अधिकांश विभाग व अफसर अंग्रेजी में पत्र लिखते है । हिंदी भाषा के प्रचार -प्रसार के बहाने कुछ लोग अपनी आजीविका के लिए ही हिंदी की फजीहत करते रहते हैं।सरकार के अधिकांश विभाग व अधिकारी आजादी के सात दशक गुजरने के बावजूद अंग्रेजी में पत्रचार का मोह नही छोड़ पा रहे । जबकि सरकार राज भाषा को बचाने पानी की तरह पैसा बहा राजभाषा के अफसरों और सदस्यो का पेट पाल रही है ? मुझे अब यह लिखने में कतई झिझक नही कि आज भारत के अलावा शायद ही कोई और देश होगा जो अपनी राष्ट्रभाषा के उत्थान के लिए इतना पैसा पानी की तरह बहाता होगा ।
करोड़ो रूपये खर्चने के बाद भी जय हो मेरी राज भाषा हिंदी की जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। देश की राजभाषा “हिंदी” है तो फिर आखिर उसमें सारे सरकारी काम-काज काहे नहीं हो रहे है? न्यायालयों में न्याय तक हिंदी में नही मिल पा रहे । क्यों संसद , विधानसभा में सारे मंत्री- सांसद , विधायक हिंदी में अपनी बात सदन में नहीं रख पाते ? देश आज भी हिंदी भाषी और गैर हिंदीभाषी क्षेत्र के रूप में बंटा हुआ है जिसके चलते आज भी देश के अधिकांश हिस्सों में हिन्दी अपनी जगह तलाशती दिखती है । हिंदी भाषी प्रदेशो को छोड़ दे तो अधिकांश राज्यो में सरकारी संस्थानों मंदिरों देवालयों में सूचना फलक सड़क मार्गो के संकेतक अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा में लिखे दिखते है । हिंदी कही दिखती ही नही । मेरे गुजरात, महाराष्ट्र , पंजाब भ्रमण के दौरान मेरा पाला भी ऐसे ही सूचना फलको संकेतकों से पड़ा । हिंदी के अंको को भी धीरे से गायब कर दिया गया आज कल के बच्चो को अंक १, ३, ४, ५, ६,७,८,९ पूछ लो तो अचरज से देखते है कि क्या है ये ? इसी तरह हिंदी वर्णमाला से हमें पढ़ाये गए कई वर्णाक्षर हिंदी से लुप्त हो चुके है जो हिंदी के लिए दुखद घटनाक्रम है । वैसे सरकार , सरकारी कार्यालय और हम हिंदी की जगह अंग्रेजी को ही जब तक ज्यादा महत्व देंगे हो फिर हिंदी सिर्फ कागजो में ही हमारी राजभाषा रह जाएगी ।
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