नईदिल्ली I 12 सितंबर, 2022 को दिनभर हलचल रही. ये हलचल वैसी ही महसूस हो रही थी जैसे कि राममंदिर मामले की सुनवाई के दौरान हुआ करती थी. ये दिन था जब वाराणसी जिला जज को फैसला करना था कि हिंदू पक्ष की दलील सुनने योग्य है या नहीं. यूं तो शाम ए अवध और सुब्ह ए बनारस सदियों से अपनी खास तासीर के लिए मशहूर है. मगर 12 सितंबर की दोपहर जैसे ही जिला जज ने हिंदू पक्ष की दलील स्वीकार की और केस को सुनने लायक माना वैसे ही पूरा परिसर हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा.
जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाया गया था. अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति वही है जोकि ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करती है. हिंदू पक्ष की पांच महिलाओं ने कोर्ट से श्रृंगार गौरी मंदिर में हर रोज पूजा अर्चना करने के अधिकार की भी मांग की है. इस पर सुनवाई जारी रहेगी.
मुस्लिम पक्ष ने तीन कानून को आधार बनाकर कोर्ट से अपील की थी वो हिंदू पक्ष की अपील खारिज कर दे. इनमें 1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1985 वक्फ एक्ट और तीसरा 1983 श्री काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट है. इन तीनों को ही मुस्लिम पक्ष ने आधार बनाया था. मगर जिला जज ने इनको खारिज करते हुए महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है. मुस्लिम पक्ष ने ऊपरी अदालतों का रूख करने की बात कही है. मगर इसमें हम समझते हैं कि आखिरकार ये तीनों एक्ट कहते क्या हैं ?
1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट
कानूनी दांव पेंच की भाषा से अलग आसान भाषा में हम आपको समझाते हैं कि ये एक्ट क्या कहता है. 1991 में जब राममंदिर आंदोलन और राममंदिर को लेकर पूरे देश में विवाद था उस वक्त इस एक्ट की जरूरत दिखी. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. सरकार थी कांग्रेस की और प्रधानमंत्री थे पीवी नरसिंह राव. उस वक्त ये कानून बनाया गया. इसमें कहा गया कि यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. इस कानून के सबडिवीजन भी हैं. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां पर मुस्लिम समुदाय दशकों से नमाज पढ़ रहा है इसलिए ये याचिका सुनवाई योग्य है ही नहीं. अगर ऐसा हुआ तो वो प्लेसिस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन है.
1985 वक्फ बोर्ड
मुस्लिम पक्ष ने इस कानून को आधार मानकर वाराणसी जिला जज से हिंदू महिलाओं की अपील खारिज करने की अपील की. इस कानून के तहत कहा गया कि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है. ऐसी दशा में कोई भी लीगल प्रोसिडिंग सेंट्रल वक्फ ट्रिब्यूनल बोर्ड लखनऊ ही कर सकता है. मतलब कि मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद परिसर को अपनी संपत्ति बनाते हुए दलील दी की इस मामले की सुनवाई हो ही नहीं सकती. क्योंकि ये वक्फ बोर्ड का मामला है. वाराणसी जिला जज ने कहा कि याचिका दायर करने वाली महिलाएं मुस्लिम नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मां श्रृंगार गौरी स्थल में पूजा अर्चना करने का अधिकार वक्फ बोर्ड कानून में कवर नहीं होता. इस आधार पर कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया.
1983 श्री काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट
1983 को ये कानून बनाया गया था. इस कानून के तहत केवल हिंदू वर्ग ही इस मंदिर के कार्यवाहक होंगे. इसके अलावा श्री काशी विश्वनाथ न्याय, परिषद का गठन, मंदिर के कार्यकर्ताओं की सेवाअवधि समेत इस कानून में समावेश किया गया है. मुस्लिम समुदाय इसको भी आधार बनाकर हिंदू पक्ष की दलील खारिज करने की अपील कर रहे थे. कोर्ट ने पूरी दलील सुनकर कहा कि किसी भी तरह मुस्लिम पक्ष सफल नहीं हुआ जिससे ये साबित हो कि ये एक्ट हिंदू महिलाओं की अपील को खारिज करने का आधार है. इसलिए कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया.
अदालत ने याचिका खारिज की
उत्तर प्रदेश में वाराणसी की जिला अदालत ने सोमवार को ज्ञानवापी शृंगार गौरी मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह देवी-देवताओं की दैनिक पूजा के अधिकार के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी, जिनके विग्रह ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं. जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाया गया था.
इलाहाबाद हाइकोर्ट में सुनवाई
मुस्लिम पक्ष ने अदालत के इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है. इसके साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. वहीं, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सोमवार को अगली सुनवाई की तारीख 28 सितंबर, 2022 निर्धारित की.
[metaslider id="347522"]