दंतेवाड़ा, 3 सितंबर। जिले के ढोलकल पहाड़ पर शताब्दियों पुरानी श्रीगणेशजी की प्रतिमा स्थपित है। मध्य भारत में सबसे ऊंचे स्थान पर विराजित हरियाली से ढ़के पहाड़ों के मध्य ढोलकल पहाड़ के शिखर पर खड़ी चट्टान पर विराजित श्रीगणेशजी की यह दुर्लभ प्रतिमा 19 सितंबर 2012 को देश-दुनिया के सामने आई। प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर जगह मिल जाती हैं, परंतु बस्तर में समुद्र तल से तीन हजार तीन सौ पच्चासी फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विध्न विनायक की प्रतिमा मध्य भारत की एकमात्र श्रीगणेश प्रतिमा है, जो इतनी उंचाई पर बचेली वन परिक्षेत्र अंतर्गत कक्ष क्रमांक 712 में विराजित है। यह गणेश मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली में, ललितासन मुद्रा में काले चट्टान में उकेरी गई है। श्रीगणेशजी की यह दुर्लभ प्रतिमा 36 इंच ऊंची तथा 19 इंच मोटी है। शिखर चट्टान की आकृति ढोल की तरह है इसलिए इसे ढोलकल या ढोलकट्टा भी कहा जाता है।
ढोलकल श्रीगणेशजी की इस दुर्लभ प्रतिमा के बारे में दक्षिण बस्तर में यह कथा प्रचलित है कि बैलाडीला के नंदीराज शिखर पर महादेव ध्यान करते थे। एक दिन उन्होंने पुत्र विनायक से कहा कि वे ध्यान करने शिखर पर जा रहे हैं। कोई उनकी साधना में विघ्न न डाले। कुछ समय बाद भगवान परशुराम वहां पहुंचे और नंदीराज शिखर की तरफ जाने का प्रयास करते लगे। विनायक ने उन्हें रोका। इससे परशुराम जी कुपित हो गए और फरसा से विनायक पर वार कर दिया। फरसे के वार से विनायक का एक दांत काटते हुए पहाड़ के नीचे जा गिरा, इसलिए विनायक एकदंत कहलाए और पहाड़ के नीचे की बस्ती का नाम फरसपाल पड़ा।
ढोलकल श्रीगणेशजी तक पंहुचने के लिए सबसे पहले ग्राम फरसपाल पंहुचना होगा यहां पंहुचने के लिए छग की राजधानी रायपुर से 384 किमी दूर दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ है। यहां से 16 किमी दूर फरसपाल गांव है। इस गांव से तीन किमी दूर जामगुड़ा बस्ती है। यहां पहाड़ के नीचे वाहन पार्किंग कर लगभग तीन किमी पैदल चढ़ाई कर ढोलकल शिखर तक पहुंचा जा सकता है। रायपुर, विशाखापट्टनम, हैदराबाद से दंतेवाड़ा के लिए सीधी बस सेवा है। विशाखापट्टनम-जगदलपुर-किरंदूल एक्सप्रेस व पैसेंजर से दंतेवाड़ा पहुंचकर या रायपुर, हैदराबाद वायुयान सेवा से जगदलपुर पहुंचकर टैक्सी से ढोलकल तक पहुंच सकते हैं।
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