मैनपुरी के नगला गाद गांव में आने जाने के लिए 70 सालों से रास्ता नहीं था। जब सरकार इस गांव की मदद नहीं कर पाई तो ग्रामीणों ने खुद इसका हल खोजा। जमीनें दान की और डेढ़ किमी लंबी सड़क खुद बनाई।
करीब 70 साल पहले बसाए गए सपेरों के गांव नगला गाद के ग्रामीणों की हालत किसी सर्प सी हो गई थी। आने-जाने के लिए चकरोड न होने से उन्हें खेतों से गुजरना पड़ता था। शिक्षा बढ़ी, स्वास्थ्य सुविधाएं मिलीं तो रास्ते की जरूरत महसूस हुई, कई साल से मांग करते-करते थक हारकर उन्होंने इसका हल खुद ही खोजा। जमीनें दान की और डेढ़ किमी लंबी और 10 फुट चौड़ी सड़क श्रमदान से बनानी शुरू कर दीं। अब प्रशासन उनकी इस पहल से उत्साहित होकर रास्ता पक्का बनाने की बात कर रहा है।
आजादी के समय सपेरा जाति के मुखिया राम सिंह ने समुदाय के लोगों को बसाकर बेवर कस्बे में नगला गाद बनाया था। तब पगडंडियों से काम चल जाता था। रास्ते की जरूरत नहीं महसूस हुई। बाद में ये करपिया ग्राम पंचायत का मजरा बन गया। समुदाय के लोगों को 1976 में आवास और जमीन के पट्टे भी दिए गए, लेकिन रास्ते की सुध नहीं ली गई। तब से अब तक 300 की आबादी वाले इस गांव के ग्रामीणों को रास्ता मयस्सर नहीं हुआ। रास्ते के लिए ऊसर जमीन का इस्तेमाल होता था। लेकिन जब ऊसर पर खेती होने लगी तो वो रास्ता भी बंद हो गया।
जरूरतों और शिक्षा ने सुझाया रास्ता
नगला गाद के बाहर करपिया में करीब 25 साल पहले स्कूल बना और करीब 30 साल पहले बेवर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना। इस पर रास्ता न होने से कोई बीमार होता या कोई महिला गर्भवती होती तो उसे अस्पताल तक ले जाने की समस्या खड़ी होने लगी। बरसात के दिनों में ग्रामीणों और स्कूल आने-जाने में बच्चों को समस्या आने लगी। इस पर यहां के निवासियों को पक्के रास्ते की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने मांग करनी शुरू कर दी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था।
अभिलेखों में सरकारी रास्ता दर्ज नहीं था। डेढ़ वर्ष पूर्व पंचायत चुनाव में सड़क की मांग उठाई गई। चुनाव बाद ग्राम प्रधान नीरज देवी और उनके पति जय कुमार ने पहल भी की लेकिन बात नहीं बनी। गग्गरपुर, मल्लामई के ग्रामीणों ने जमीन देने से इनकार कर दिया। गत 18 अगस्त को ग्राम प्रधान नीरज देवी ने बीडीओ अजयपाल सिंह और पंचायत सचिव के साथ-साथ ग्रामीणों की बैठक बुलाई।
इस बार दिल मजबूत करके सबसे पहले पूर्व प्रधान रोहन सिंह ने 10 बिस्वा जमीन दान देने की घोषणा की। इसके बाद सिलसिला चल निकला। प्रधानपति जय कुमार ने भी जमीन देने की सहमति जताई। धीरे-धीरे कुल 12 लोगों ने 49 बिस्वा जमीन सड़क के लिए दे दी। पूरी जमीन की कुल कीमत करीब 12 लाख है।
सड़क बननी शुरू हुई तो खुश हुए ग्रामीण
छह दिन पूर्व ग्रामीणों के लिए दान की जमीन पर जेसीबी चली। इसके बाद मनरेगा से 3.12 लाख रुपये का बजट प्रस्ताव बनाया गया और मजदूरों को लगाकर कच्ची सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया गया। 10 फुट चौड़ी और डेढ़ किमी सड़क पर काम शुरू हुआ तो ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना न रहा। एक किमी कच्ची सड़क बन चुकी है। ये सड़क पक्की बनाने के लिए सीडीओ विनोद कुमार ने मौके पर जाकर निर्देश दिए हैं।
गांव की प्रधान नीरज देवी का कहना है कि 70 साल से ग्रामीण सड़क विहीन थे। सड़क बनने से मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। खुशी है कि ग्रामीणों के लिए कुछ बेहतर हो रहा है। वहीं मैनपुरी के सीडीओ विनोद कुमार ने बताया, “स्थानीय लोगों ने पहल की तो मैंने मनरेगा से संपर्क मार्ग बनाने के निर्देश दिए। वर्षों से यहां के लोग बिना सड़क के आवागमन कर रहे थे। अब पक्की सड़क बनवाने की भी व्यवस्था की जाएगी।”
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