सांसारिक सुख से एकाग्रता हटाकर धर्म के प्रति मग्नता लाएं : साध्वी स्नेहयशा

रायपुर। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशा ने गुरुवार को कहा कि उपाध्याय यशोविजयजी ने ज्ञान सार सूत्र में बहुत ही प्रिय बात कही है। परिग्रह के विषय पर बोलते हुए साध्वीजी ने बताया कि इसका अर्थ होता है जहां से मिले लेते जाओ। आप कितना भी महंगा कपड़ा पहन लो आपका मन नहीं भरेगा। कितनी भी रंग-बिरंगी और कीमती कपड़े हो आप उसे रोज नहीं पहनते, जितना महंगा हो उतना कम ही पहनते हो। पर जब लेने की बात हो तो आप ज्यादा से ज्यादा ले लेते हो।

साध्वी कहती है कि उसके बाद अगर कोई आपसे वह कपड़ा पहनने को मांगता है तो आप नहीं देना चाहते भले ही आप उस कपड़े को साल में एक बार ही क्यों ना पहने। यह परिग्रह है। साध्वीजी कहती है कि जब बच्चा ध्यान लगाकर पढ़ाई करता है तब उसके माता-पिता को अच्छा लगता है। भोजन बनाते समय भी आपकी एकाग्रता बनी रहती है। यानी संसार के हर कार्य में एकाग्रता बराबर बनी रहती है। ज्ञानी भगवंत फरमाते हैं जितनी एकाग्रता हमारी संसार के क्षेत्र में है, उतनी ही हमारी आत्मा के क्षेत्र में होनी चाहिए।

तीर्थंकर परमात्मा जब समवशरण पर विराजमान होते हैं तब नमो तित्थस्स अर्थात चतुर्वेदी संघ को नमस्कार करते हैं। चतुर्वेदी संघ यानी साधु-साध्वी और श्रावक श्राविका है। हमें विचार करना कि हम श्रावक हैं। जैसे पांच महाव्रत ग्रहण करने के बाद ही उन्हें साधु कहा जाता है, वैसे ही 12 व्रत ग्रहण करने वाले को ही श्रावक कहा जाता है। हमें अपना स्वयं का परीक्षण करना है कि तीर्थंकर परमात्मा मुझे नमन करते हैं पर क्या मैं उस योग्य हूं। इंद्र महाराजा अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व ब्रह्मचर्य व्रत धारी को नमन करते हैं। इस वक्त को ग्रहण करके शुद्ध पालन करने के लिए हमें स्पर्श इंद्रियों को नियंत्रित करना होता है। अब्रह्म का सेवन बहुत बड़ा पाप है और जो इसे प्रेरित करता है तो वह है हमारी आंखें।

इससे बचना हो तो 4 बातों का ध्यान रखें। पहला एकांत में विजातीय से दूर रहें। दूसरा अंधकार में भी विजातीय के साथ न रहे। तीसरा विजातीय से अति परिचय ना रखें और चौथा अलंकार का त्याग करें। साध्वीजी कहती है कि वासना पेट्रोल के समान है। उसे हजारों दिनों तक फ्रिज में रखने के बाद भी निकाल लोगे तो वह एक चिंगारी से ही भड़क उठेगी। इस वासना को शांत करने में देव गुरु धर्म ही सशक्त साधन है। देव से करुणा मिलती है, गुरु से वात्सल्य प्राप्त होता और धर्म से शांति प्राप्त होती है। वासना हमें जब भी सताए तो देव गुरु धर्म के अति निकट पहुंचे।

सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा 5 से होगी प्रारंभ
मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी धर्मराज बेगानी तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि 5 अगस्त, शुक्रवार सुबह 8:00 बजे सम्मेद शिखर तीर्थ जहां पार्श्वनाथ परमात्मा का मोक्ष हुआ था ऐसे पावन तीर्थ की भाव यात्रा गुरुवर्या की निश्रा में प्रारंभ होगी। वहीं, 16 अगस्त से अक्षयनिधि, समवशरण, कषाय विजय तक प्रारंभ होने जा रहा है। इस अभी तप का संपूर्ण लाभ पारसचंद बसंती देवी, प्रवीण, पायल, तनिष्का, दीक्षा, लक्ष्य मुणोत परिवार ने लिया है।