महान एथलीट पीटी उषा ने ली राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ

नई दिल्ली। खेल जगत में अद्भूत प्रतिभा के दम पर तूफान की तरह फर्राटा दौड़ कर दुनियाभर में भारत का नाम रौशन करने वाली पूर्व ओलंपिक ट्रैक एंड फील्ड एथलीट पीटी उषा ने आज राज्यसभा की नई मनोनीत सांसद और उच्च सदन में शपथ ली। उन्हें राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने शपथ दिलवाई। पीटी उषा ने 1984 ओलंपिक खेलों में चौथा स्थान हासिल किया था। पीटी उषा को 1983 में अर्जुन अवॉर्ड और 1985 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है।

राज्यसभा के 245 में से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचित किया जाता है। कला, साहित्य, ज्ञान, खेल और सामाजिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान देने वाले शख्स को सांसद के रूप में चुना जाता है। इन सांसदों के पास राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं होता है। राज्यसभा के मनोनित होने वाले पहले खिलाड़ी महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर थे।

केरल की रहने वाली हैं पीटी उषा

पीटी उषा का शुरुआती जीवन उनके अपने गांव पय्योली में बीता था, जो भारत के दक्षिणी राज्य केरल का एक तटीय जिला था। इसीलिए बाद के दिनों में पीटी ऊषा को पय्योली एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता था। पीटी उषा जब चौथी कक्षा में पढ़ती थीं, तब उन्होंने दौड़ना शुरू किया था। उनके शारीरीक शिक्षा के अध्यापक ने उषा को जिले की चैंपियन से मुकाबला करने को कहा। वो लड़की भी पीटी उषा के स्कूल में ही पढ़ती थी। उषा ने उस रेस में जिला चैंपियन को भी हरा दिया था। अगले कुछ वर्षों तक वो अपने स्कूल के लिए जिला स्तर के मुकाबले जीतती रही थीं। लेकिन, पीटी उषा का असल करियर तो 13 साल की उम्र में शुरू हुआ, जब उन्होंने केरल सरकार द्वारा लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्पोर्ट्स डिविजन में दाखिला लिया था।

16 साल की उम्र में पहली बार ओलंपिक का हिस्सा बनीं

1980 में केवल 16 साल की उम्र में पीटी उषा ने मॉस्को में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में हिस्सा लिया था। चार साल बाद 1984 में वो किसी ओलंपिक खेल के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई थीं। लेकिन, बस एक मामूली से फासले से उषा ओलंपिक का मेडल जीतने से चूक गई थीं।
ओलंपिक के बाद पीटी उषा के प्रदर्शन में गिरावट आई और लोगों ने उनकी आलोचना शुरू कर दी। हालांकि, उषा को खुद पर यकीन था। 1986 के सिओल एशियाई खेलों में उन्होंने चार गोल्ड मेडल जीते थे। 400 मीटर की बाधा दौड़, 400 मीटर की रेस, 200 मीटर और 4 गुणा 400 की रेस में उषा ने स्वर्ण पदक जीते। 100 मीटर की रेस में वो दूसरे नंबर पर रहीं। 1983 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिया गया था। 1985 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

पति ने की वापसी में मदद

1991 में शादी के कुछ ही दिनों बाद उषा ने एथलेटिक्स से ब्रेक ले लिया था। तभी उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया। पीटी उषा के पति वी श्रीनिवासन की खेलों में दिलचस्पी थी। वो खुद एक खिलाड़ी थे। वो पहले कबड्डी खेला करते थे। उन्होंने हर काम में उषा का हौसला बढ़ाया। पीटी उषा खेलों की दुनिया में दोबारा आई और 1997 में अपने खेलों के करियर को अलविदा कहा। उन्होंने भारत के लिए 103 अंतरराष्ट्रीय मेडल जीते हैं।