पं. मुकुटधर पांडेय शासकीय महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक वाणिज्य डॉ. प्रिंस कुमार मिश्रा को पीएचडी की उपाधि

0 लघु वनोपज के विपणन एवं प्रबंधन में जिले के 500 आदिवासी परिवारों पर किया रिसर्च

कोरबा, 09 जुलाई (वेदांत समाचार)। महुआ, साल बीज और चार-चिरौंजी जैसे विभिन्न वनोपजों के संग्रहण कार्य से हमारे वनों में निवास करने वाले आदिवासी परिवारों का जीवन सुधर-संवर रहा और उनके लिए खुशहाली के द्वार खुल रहे. इस विषय में किए गए शोध से यह निष्कर्ष पंडित मुकुटधर पांडेय शासकीय महाविद्यालय कटघोरा के सहायक प्राध्यापक वाणिज्य डॉ. प्रिंस कुमार मिश्रा ने प्राप्त किया है. लघु वनोपज के विपणन एवं प्रबंधन का आदिवासियों के आर्थिक विकास पर प्रभाव (कोरबा क्षेत्र के विशेष संदर्भ में) विषय में जिले के 500 आदिवासी परिवारों पर किए गए अपने शोध कार्य के लिए डॉ. प्रिंस कुमार मिश्रा को पीएचडी (डॉक्टर आॅफ फिलॉसफी) की उपाधि से नवाजा गया है.

पंडित मुकुटधर पांडेय शासकीय महाविद्यालय कटघोरा में पदस्थ सहायक प्राध्यापक वाणिज्य डॉ. प्रिंस कुमार मिश्रा को डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई है. डॉ. मिश्रा ने नवंबर 2019 में अपना शोध कार्य शुरू किया, जिसे उन्होंने 21 दिसंबर 2021 को पूर्ण कर लिया. इस बीच उन्होंने कोरबा के प्रत्येक विकासखंड से 100 समेत लघु वनोपज संग्रहण से आजीविका चला रहे जिले के 500 आदिवासी परिवारों पर अध्ययन किया. इसी माह दो जुलाई को ही उन्हें पीएचडी अवार्ड हुआ है. डॉ मिश्रा ने अपना शोध कार्य डॉ. प्रभाकर पांडेय के निर्देशन में पूरा किया. पंडित मुकुटधर पांडेय महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ प्रिंस कुमार मिश्रा को पीएचडी की उपाधि मिलने पर महाविधालय के प्राचार्य डॉ. एमएम जोशी, कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. सतीश अग्रवाल, साथी एवं वरिष्ठ प्राध्यापकों, सहायक प्राध्यापकों, उनके परिजन व महाविद्यालय के छात्र छात्राओं समेत समस्त महाविद्यालय परिवार ने हर्ष व्यक्त करते हुए शुभकामनाएं प्रदान की हैं. डॉ. मिश्रा सरल व मिलनसार व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं, जो छात्र-छात्राओं की जिज्ञासाओं और समस्याओं के समाधान में हर संभव सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहते हैं.


चरोंटा-तुलसी समेत 31 वनोपज समर्थन मूल्य के दायरे में


डॉ. मिश्रा ने अपने शोध में पाया कि लघु वनोपज के संग्रहण से वनांचल के आदिवासियों को आर्थिक लाभ हो रहा और इससे उनकी आर्थिक दशा में सुधार हो रहा है. उन्होंने बताया कि पूर्व में शासन द्वारा महुआ, तेंदूपत्ता, चार, साल बीज समेत केवल सात प्रकार के वनोपज को समर्थन मूल्य के दायरे में रखा था. वर्तमान में चरोंटा बीज, तुलसी मंजरी व गोंद समेत 31 प्रकार के वनोपज समर्थन मूल्य के दायरे में हैं. इसमें बिना कोई निवेश लाभार्जन है. अगर किसी कारण से हानि भी होती है, तो उसे केंद्र व राज्य शासन द्वारा 75 और 25 प्रतिशत के अनुपात में साझा करते हैं. लाभ की स्थिति में शासन की ओर से उन्हीं हितग्राहियों को बोनस के रूप में वितरित कर दिया जाता है.


बिना निवेश लाभ पर हानि शून्य, सी-मार्ट उम्दा उदाहरण


शहर में शुरू किया गया सी-मार्ट भी मूल हितग्राहियों को लाभांन्वित कर वनोपज को मुख्य बाजार में जगह दिलाने की अगली कड़ी है. सी-मार्ट का भी यही उद्देश्य है, कि वनोपज के लाभ से अधिक से अधिक लोगोें को जोड़ा जा सके, ताकि बाजार में इन्हें भी कारोबार की प्रतियोगिता में शामिल किया जा सके. इस तरह लघु वनोपजों के कारोबार से होने वाले लाभ को मूल हितग्राहियों को आर्थिक आत्मनिर्भता प्रदान कर लाभ दिया जा सके. इनके संग्रहण में जीरो इंवेस्टमेंट में मेक्सिमम लाभ का कांसेप्ट है, क्योंकि इस कार्य में आदिवासी हितग्राहियों को अपनी जेब से कोई पूंजी नहीं लगाना पड़ता, केवल संग्रहित कर विक्रय करना होता है.