बुधवारी बाइपास की 60 प्रतिशत से अधिक जमीन पर बेजाकब्जा

कोरबा । नगर निगम क्षेत्र में बेजा कब्जा कर मकान बनाए जाने की वजह से दस साल के अंदर दो दर्जन से अधिक श्रमिक बाहुल्य बस्ती बस गए हैं। इन अवैध बस्तियों को अब वार्ड में तब्दील कर दिया गया है और मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही है। अवैध कब्जा का सिलसिला अभी भी थमा नही है। इन दिनों बुधवारी बाइपास पर मुख्य मार्ग, जैन मंदिर के पीछे व रेल्वे लाइन के बीच खाली पड़ी जमीन पर अवैध कब्जा धडल्ले से किया जा रहा है। निगम द्वारा कार्रवाई नहीं करने पर अतिक्रमणकारी धडल्ले से रातोरात बाउंड्रीवाल कर निर्माण कार्य करा रहे हैं।

नगर निगम का तोड़ूदस्ता की कार्रवाई भी भेदभावपूर्ण है। शिकायत मिलने पर ही कार्रवाई कर रहा है, जबकि निगम की नाक के नीचे हो रहे बेजाकब्जा को रोजाना देखने के बाद भी अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे। यही वजह है कि बेशकीमती जमीन पर अतिक्रमण लगातार बढ़ते जा रहा है। शासन के नए नियम के तहत अगर किसी शासकीय जमीन को अपने नाम पर रजिस्ट्री कराना है तो उस जमीन पर कब्जा जरुरी है। यही वजह है कि अतिक्रमण धड़ल्ले से किया जा रहा है। बुधवारी बाइपास मार्ग में करोड़ों की जमीन को हथियाने का खेल इन दिनों चल रहा है। एक तरफ निगम आयुक्त तोड़ूदस्ता दल को नए अतिक्रमण पर तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दे रहे हैं, लेकिन निगम के निचले स्तर के अधिकारी- कर्मचारी कार्रवाई करने से पीछे हट रहा है। वर्तमान में रेल्वे लाइन व बाइपास के बीच सागौन प्लांटेशन में भी अतिक्रमण किया जा रहा है। किसी को भनक न लगे या फिर विरोध न हो इसके लिए राखड़ ईंट का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि लोगों को यह लगे कि सरकारी निर्माण चल रहा है। बाइपास मार्ग की खाली पड़ी 60 प्रतिशत जमीन पर अब तक कब्जा हो चुका है।

कई विभागों की विवादास्पद जमीन पर नजर

बाइपास के अलावा शहर में औद्योगिक उपक्रम, रेल्वे लाइन, वन विभाग व सिंचाई विभाग के बीच जिन जमीनों को लेकर विवाद बना हुआ है, उस जमीन पर ज्यादा कब्जा हो रहा है। इसकी मुख्य वजह यह है कि रिकार्ड नहीं होने की वजह से कई जमीनें खाली पड़ी हुई है। इसका फायदा बेजाकब्जाधारी लगातार उठा रहे हैं।

एक-दूसरे पर फोड़ रहे ठीकरा

रेल्वे लाइन के आसपास काफी क्षेत्र में अतिक्रमण हो चुका है। सीएसईबी चौक से लगे नेहरुनगर के करीब जमीन पर अतिक्रमण कर करीब 70 घर तैयार हो चुके हैं। नौ माह बीतने वाला है, पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। निगम का कहना है कि जमीन रेल्वे की है, जबकि रेलवे का कहना है कि जमीन शासकीय है। यही वजह है कि दोनों ही कार्रवाई नहीं कर रहे है। कार्रवाई नहीं होने से सबसे अधिक नुकसान निगम को ही है। दरअसल बाद में इस अवैध बस्ती में विकास के नाम पर निगम को बड़ी राशि खर्च करनी पड़ेगी।

पट्टे के लिए हो रहा अतिक्रमण

आधा दर्जन वार्ड ऐसे हैं जहां पट्टे के लिए अतिक्रमण करने की होड़ मची हुई है। सर्वे बहुत जल्द शुरु होने जा रहा है। इसके बाद एक साथ सभी वार्डों में पट्टा बांटा जाएगा। इसलिए जमीन का दायरा बढ़ाने का खेल चल रहा है और कई हिस्से में कब्जा किया जा रहा है। भविष्य में सरकारी उपयोग के लिए जमीनें आरक्षित नहीं रखी जा रही है। अतिक्रमण कर शुल्क जमा किसी भी जमीन को कब्जा कर लिया जा रहा है। जबकि क्षेत्रवार और शहर के मुख्य मार्गों के आसपास ऐसे इलाकों को कब्जे के दायरे से बाहर रखने की जरुरत है। इन जमीनों पर अतिक्रमण करने का खेल जोरों से चल रहा है। कब्जा दिखाकर बाद में उसे अपने नाम पर दर्ज कराया जा रहा है।

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