डॉक्टर्स डे-2022 : जो बचाएं सबकी जान उनके योगदान का करें सम्मान

छाल स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. पैंकरा हर समय लोगों के लिए रहते हैं मौजूद
मरीजों का डॉक्टर पर भरोसा ही सबकुछ है : डॉ. राजकृष्ण शर्मा

रायगढ़ । डॉक्टर्स के योगदान और बलिदान के सम्मान में हर साल देश में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। जिस तरह एक सैनिक देश की रक्षा करता है। उसी तरह डॉक्टर हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करता है। डॉक्टरों को हमारे समाज में एक उच्च दर्जा दिया गया है उन्हे जीवन उद्धारकर्ता माना जाता है। हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान दुनिया भर के डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह किए बिना पीड़ितों का इलाज किया।

रायगढ़ की बात करें तो आदिवासी बहुल और खनन क्षेत्र छाल का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जिले का एकमात्र ऐसा पीएचसी है जो हर समय खुला रहता है। 30,000 ग्रामीणों की आबादी के बीच इस पीएचसी में सड़क दुर्घटना के मामले अधिक आते हैं। कोयला परिवहन के कारण यहां ऐसी स्थिति बनी है। छाल पीएचसी नेशनल क्वालिटी ऐश्योरेंस स्टैंडर्ड्स से सर्टिफाइड है। प्रदेश स्तरीय कायाकल्प पुरस्कार भी इस पीएचसी को मिला है। इस पीएचसी को खास बनाने वाले हैं यहां के प्रभारी डॉ. सुरेंद्र कुमार पैंकरा 2006 से यहां पदस्थ हैं और पीएचसी कैंपस में रहकर मरीजों के लिए हर समय मौजूद रहते हैं। कई बार तो दूरस्थ जगह से आए मरीज और उनके तिमारदारों को वह अपने यहां खाना भी खिलाते हैं। लैलूंगा के आखिरी और दुर्गम गांव चंवरपुर में पैदा हुए डॉ. पैंकरा अपने गांव के पहले शिक्षित व्यक्ति हैं और जनसेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का प्रयास करते हैं। सरकारी व्यवस्था के अलावा वह मरीज और लोगों की हरसंभव सेवा करते हैं। राज्य सरकार ने 2019 में उन्हें उत्कृष्ट सेवा पुरस्कार दिया तो धरमजयगढ़-छाल इलाके में इनका बहुत सम्मान है। सैकड़ों जिंदगी बचाने वाले डॉ. पैंकरा बहुत ही साधारण तरीके से रहते हैं।

डॉ. पैंकरा बताते हैं: ”बचपन से ख्वाब बुना था कि डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करूंगा। 2001 में डॉक्टर बना और तब से पूरी कोशिश रहती है कि सच्चे मन से लोगों की सेवा कर सकूं। मैं लोगों के लिए हर समय उपलब्ध रहता हूं। महीने में दो या एक ही ऐसी रात होती होगी जब मैं चैन से सो पाता हूं अन्यथा यहां रात में दुर्घटना के ज्यादा मामले आते हैं। और मैं ऐसे सभी मामलों को देखता हूँ। प्राइवेट अस्पतालों में जैसी सुविधा मिलती है वैसी ही सुविधा मेरे पीएचसी में भी मिले मैं इसी कोशिश में लगा रहता हूं।“

जब नहीं की जान की परवाह
कोविड के समय में पीएसची में कोविड मरीजों के इलाज की कल्पना मात्र से रूह कांप जाती है लेकिन डॉ. पैंकरा ने अपनी सूझबूझ से कई लोगों की कोरोना से जान बचाई क्योंकि गंभीर अवस्था वाले मरीज के रायगढ़ जाते-जाते हालत और बिगड़ जाती थी । ऐसे में उन्होंने पीएचसी छाल से सटे स्कूल जो क्वारांटाइन सेंटर था वहां लोगों की मदद से बेड, ऑक्सीजन और जरूरत का सामान लाकर अस्थाई अस्पताल बना दिया। वह अपने स्टाफ को पीएचसी में रखते और खुद कोरोना संक्रमित मरीजों के लक्षण के हिसाब से इलाज करते। समय रहते इलाज मिलने से कोरोना से कई लोगों की जान बची है। स्थानीय लोगों में डॉ. पैंकरा के इसी जुनून के कारण बहुत सम्मान है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जरूरी
डॉ. राजकृष्ण शर्मा (जनरल, लेप्रोस्कोपिक सर्जन ) जिन्होंने 300 से अधिक कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज किया,ज्यादातर मरीज स्वस्थ होकर इनके अस्पताल से लौटे हैं। जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान है। लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। उन्होंने बताया:“ हर साल, राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का उत्सव एक समर्पित विषय पर केंद्रित होता है जो हमें एक समान और समकालिक संचार में मदद करता है। इस बार राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 2022 की थीम ‘फ्रंट लाइन पर पारिवारिक डॉक्टर है।“

डॉ. शर्मा कहते हैं: “समय के साथ हर पेशे में बदलाव आया है और लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। डॉक्टरी पेशे में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि सब कुछ देने के बाद भी कुछ रह जाता है। सभी की अपनी सीमाएं होती हैं और उसी के दायरे में रहकर कार्य करना होता है। हम भी लोगों से उम्मीद करते हैं कि अगर हम पेशेवर हैं तो वह भी हमसे पेशेवर तरीका अपनाए। डॉक्टर जान बचाता है यही भरोसा ही हमारे लिए सबकुछ है। इसका रहना बहुत जरूरी है।“

“कोविड के समय में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति अत्यधिक जागरूकता आई थी लेकिन अब स्थिति फिर से कोविड के पहले जैसी हो गई है। लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना है। हम औद्योगिक जिले में रहते हैं वैसे भी यहां कई तरह की बीमारियों के होने का ज्यादा खतरा है। जिस हिसाब से जिले में उद्योग हैं उस हिसाब से यहां अस्पताल और मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल नहीं खुले। 12 साल से अधिक समय में मेडिकल कॉलेज रफ्तार नहीं पकड़ पाया। मेडिकल कॉलेज में सुविधाएं बढेगीं तो पूरे जिले को इसका लाभ मिलेगा। वर्तमान समय में कुछ लोग इंटरनेट से ज्ञान लेकर अपने खुद डॉक्टर बन जाते हैं जो कि गलत है। यदि तबीयत खराब है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।“ डॉ. शर्मा बताते हैं।

डॉक्टर्स डे का इतिहास
भारत में, राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पहली बार 1 जुलाई 1991 को डॉ. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में, स्वास्थ्य क्षेत्र में उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया गया था।उन्होंने लोगों के लिए अपने जीवन का योगदान दिया, कई लोगों का इलाज किया और लाखों लोगों को प्रेरित किया। इसके अलावा, वह महात्मा गांधी के निजी चिकित्सक भी थे। वर्ष 1976 में, चिकित्सा, विज्ञान, सार्वजनिक मामलों, दर्शन, कला और साहित्य के क्षेत्रों में काम करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति को पहचानने के लिए उनकी स्मृति में बीसी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना की गई थी।