बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला को सिर्फ इसलिए कि वह शिक्षित है अपना खर्च स्वयं उठाने को काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने अपनी अलग रह रही पत्नी को गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल जज बेंच पुणे में फैमिली कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला के पास काम करने या घर पर रहने का विकल्प है, भले ही वह योग्य हो और उसके पास शैक्षिक डिग्री हो।
जज ने कहा कि हमारे समाज ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि घर की महिला को आर्थिक रूप से योगदान देना चाहिए। काम करना महिला की अपनी पसंद है। उसे काम पर जाने के लिए सिर्फ इसलिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह ग्रेजुएट है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह घर नहीं बैठ सकती है।
जस्टिस डांगरे ने कहा कि आज मैं इस कोर्ट की जज हूं। कल, मान लीजिए मैं घर पर बैठ सकती हूं। क्या तब आप यह कहेंगे कि मैं जज बनने के काबिल हूं इसलिए मुझे घर पर नहीं बैठना चाहिए?।
याचिकाकर्ता व्यक्ति के वकील ने तर्क दिया कि पारिवारिक अदालत ने उनके मुवक्किल को भरण-पोषण का भुगतान करने का अनुचित निर्देश दिया था, क्योंकि उसकी अलग हुई पत्नी ग्रेजुएट थी और उसके पास काम करने और जीवन यापन करने की क्षमता थी।
वकील अजिंक्य उडाने के माध्यम से दायर अपनी याचिका में उस व्यक्ति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी अलग रह रही पत्नी के पास वर्तमान में आय का एक स्थिर स्रोत था, लेकिन उसने इस तथ्य को अदालत से छुपाया था।
याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उसे पत्नी को हर महीने 5,000 रुपये और अपनी 13 वर्षीय बेटी के भरण-पोषण के लिए 7,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, जो वर्तमान में उसके साथ रहती है। हाईकोर्ट इस मामले में अगले सप्ताह आगे की सुनवाई करेगा।
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