छत्तीसगढ़ के जैव विविधता वाले हसदेव अरण्य को लेकर जबर्दस्त सियासत चल रही है। कांग्रेस-भाजपा के नेता आदिवासियों का मसीहा और जंगल बचाने का दावा करते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। ग्रामीण का विरोध-प्रदर्शन जारी है। तीन शिफ्ट में पेड़ों की रखवाली हो रही है। इधर प्रशासन पेड़ों को काटने की योजना बना रही है। इस वर्ष परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक के लिए 11 हजार 808 पेड़ काटे जाएंगे। वनविभाग एवं प्रशासन ने पेड़ों की गिनती पूरी कर ली है। जंगल कटेगा या बचेगा इस पर बुद्धिजीवियों का अपना तर्क है। इधर देश के साथ विदेशों तक हसदेव अरण्य को बचाने अभियान चल रहे हैं। विरोध और बयानबाजी के बीच कुछ लोग अपना स्वार्थ भी साधने में लगे हैं।
बता दें कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड को आबंटित परसा कोल ब्लॉक के पहले चरण में कोल माइनिंग पूरा होने के बाद दूसरे चरण में पीईकेबी कोल ब्लॉक में खनन को मंजूरी दी गई है। इसमें 2711 हेक्टेयर भूमि पर कोयला खनन किया जाएगा। 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र है। इसके अलावा इसमें परसा, फतेहपुर, हरिहरपुर एवं घाटबर्रा के ग्रामीणों की भूमि शामिल है। वनभूमि पर पेड़ों की कटाई माइनिंग प्लान के अनुसार प्रतिवर्ष की जाएगी। एकसाथ पूरे क्षेत्र के पेड़ नहीं काटे जाएंगे। पीईकेबी कोल ब्लॉक में सरगुजा एवं सूरजपुर दोनों जिलों के वनक्षेत्र शामिल हैं।
एक साल में 11,808 पेड़ों काटने जाएंगे
पीईकेबी कोल ब्लॉक के लिए इस वर्ष कुल 11808 पेड़ों की कटाई होगी, जिसमें घाटबर्रा क्षेत्र में 9,760, सूरजपुर जिले के 2048 पेड़ों की कटाई होगी। सरगुजा डीएफओ पंकज कमल ने बताया कि सरगुजा वन क्षेत्र के 43 हेक्टेयर क्षेत्र में 7980 पेड़ों की कटाई होगी। शेष पेड़ राजस्व की भूमि में हैं। पेड़ों की कटाई के लिए पेड़ों का चिन्हांकन कर लिया गया है। अब तक 400 पेड़ों की कटाई की जा चुकी है। सूरजपुर क्षेत्र में 300 पेड़ों की कटाई की गई है, जबकि सरगुजा क्षेत्र में सवा सौ पेड़ों को काटा जा चुका है। आंदोलन में शामिल लोगों का कहना है कि इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ शामिल हैं। हजारों छोटे पेड़ों को इसमें शामिल ही नहीं किया गया है।
वर्ष 2019 से ग्रामीण कर रहे हैं विरोध
परसा ईस्ट केते बासेन कोल परियोजना का ग्रामीण 2019 से विरोध कर रहे हैं। एक सप्ताह पहले वन विभाग ने पेड़ों की कटाई शुरू की तो बड़ी संख्या में मौके पर पहुंचे ग्रामीणों ने कोल ब्लॉक का विरोध करते हुए पेड़ों की कटाई रुकवा दी थी। जंगल में भारी संख्या में हुआ। भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई। विरोध को देखते हुए कटाई रोकनी पडी़। बता दें कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित किया गया था। राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में खदान नहीं खुलने नहीं खुलने की बात ही थी। पिछले दिनों कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी से एक छात्रा ने हसदेव अरण्य को लेकर सवाल भी किया था, जिस पर राहुल गांधी ने पार्टी के अंदर बात करने और परिणाम दिखने की बात कही है।
दोबारा ग्रामसभा कराने से प्रशासन का इनकार
कोल ब्लॉक का विरोध करने वाले ग्रामीण लंबे समय से दुबारा ग्रामसभा कराने की मांग कर रहे हैं। जिला पंचायत ने भी दोबारा ग्रामसभा कराने का प्रस्ताव पारित करते हुए सरगुजा कलेक्टर को इस संबंध में ज्ञापन सौंपा था। वहीं सरगुजा कलेक्टर संजीव झा ने यह बताते हुए दोबारा ग्रामसभा कराने से इनकार कर दिया कि जमीनों का अधिग्रहण कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किया गया है। इस कारण दोबारा ग्रामसभा कराने की आवश्यकता नहीं है।
भाजपा ने भी आंदोलन को दिया समर्थन
पेड़ों को कटने से बचाने के लिए आंदोलन कर रहे ग्रामीणों को भाजपा ने भी अपना समर्थन दिया है। पूर्व मंत्री व विधायक बृजमोहन अग्रवाल घाटबर्रा गांव पहुंचे। राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम, पूर्व सांसद कमलभान सिंह, पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, पूर्व मंत्री केदार कश्यप, भाजपा जिला अध्यक्ष ललन प्रताप सिंह सहित भाजपा नेताओं के प्रतिनिधि मंडल ने परसा केते खदान का विरोध कर रहे ग्रामीणों से मुलाकात कर आश्वस्त किया कि भाजपा उनके साथ खड़ी है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का सीधे जुड़ाव प्रकृति एवं पर्यावरण से है, इसलिए पेड़ बचेगा तो ही आदिवासियों की संस्कृति बचेगी। छत्तीसगढ़ भाजपा ने स्पष्ट किया है कि वे इस मामले में कोल ब्लॉक में पेड़ों की कटाई के खिलाफ और आंदोलनकारियों के साथ हैं।
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