दसवीं के बाद बच्चों का न हो पलायन -डॉ. संजय गुप्ता

कोरबा 27 मई (वेदांत समाचार)। ऊर्जानगरी इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के प्राचार्य एवं शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता ने कहा है कि कक्षा 10 वीं में जो छात्र अच्छे अंक प्राप्त करते हैं, उनके पालकगणों का पहला विचार बनता है कि अच्छी शिक्षा के लिए बच्चों को कोरबा के बाहर जाना चाहिए । इस मनोविचार के पीछे तीन कारण है पहला कोरबा में योग्य शिक्षकों की कमी है दूसरा ये मानसिकता कि बाहर जाने से सफलता के प्रतिशत बढ़ जाते हैं तथा तीसरा ये प्रचार की ब्रांड विशेष की संस्थाओं में पढ़ने से बच्चों का चयन उच्च संस्थाओं के लिए होता है । ये तीनों तर्क उपर से सही दिखते हैं लेकिन यदि कारणों पर विचार किया जाये तो निष्कर्ष निकलेगा कि तीनों भ्रामक है । घर का जोगी जागड़ा आन गांव का सिध्द कहावत यहाँ चरितार्थ होती है । एक अच्छे शिक्षक के दो गुण हैं संप्रेषण क्षमता तथा स्वयं की विषय प्रविणता इन्हीं केवल परखा जा सकता है और वास्तविकता के धरातल पर अनुभव किया जा सकता है । जो मेधावी छात्र स्थानीय शिक्षकों से पढ़ते हैं वे ही पारखी होते हैं, तथा नए छात्रों के लिए गाइड का काम करते हैं । कोरबा में ऐसे शिक्षक अवश्य हैं और उनके पूर्व छात्र ऐसा प्रमाणित करते हैं कि उनकी संप्रेषण कला कोटा के शिक्षकों से कम नहीं है । ये छात्र ऐसे हैं जो कोरबा तथा कोटा दोनों स्थानों पर पढ़ चुके हैं केवल एक स्थान पर चढ़ना और विचार बना लेना पूर्वाग्रह होगा । कोटा में सफलता का प्रतिशत अधिक नहीं है, विज्ञापनों में केवल सफल छात्रों को प्रचारित किया जाता है । कुल प्रवेश के लिए हजारों छात्रों की संख्या नहीं दिखाई जाती ये भी नहीं दिखाया जाता कि उन्होंने सब बच्चे 80-90 प्रतिशत से अधिक अंको वाले ही लिये हैं और इसके बावजूद भी सफलता का प्रतिशत बहुत कम होता है । जिन्हें प्रवेश परीक्षा में अपने बल पर सफल होना ही है, चाहे वे कहीं से भी प्रशिक्षण लें सफल होंगें । लोग कोरबा के उन 10-15 पालकों को जानते हैं जिनके बच्चे कोटा में सफल हुए वे पूर्व से ही अति मेधावी थे । उन 200 पालकों को मैं जानता हूँ जिनके बच्चे कोटा में असफल रहे और कुछ तो डिप्रेशन में चले गए उनका प्रचार नहीं होता है । ये बच्चे कोटा या विशाखापटनम् में घर से बाहर रहते हैं, दो साल तक शाला नहीं जाते घर के खाने का परिवर्तन तथा वातावरण परिवर्तन को सहन नहीं कर पाते । ये उम्र का ऐसा समय है जब बच्चे समाज के संस्कार शाला से ग्रहण करते हैं खेल तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं । मानवीय गुणों के संस्कार माता-पिता से ग्रहण करते हैं इन वर्षों में उन्हें बाहर कोचिंग फैक्टरी में भेज देने से वे विज्ञान का विकास तो कर लेते हैं, लेकिन संस्कारों कि हानी तथा व्यक्तित्व विकास कि हानि अधिक होता है । ब्राण्ड इमेज का लाभ उठाकर शहरों में फ्रेंचाईज देना और कोटा की पढ़ाई आपके शहर में प्रचलित करना इससे बड़ा और कोई भ्रम हो ही नहीं सकता । हाल ही में भारत सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालय बिल पारित किया है इस सन्दर्भ में जब आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूछा गया कि क्या वे भारत में ब्रांच या फ्रेंचाईजी बनायेगी तो हंस दिये उन्होने कहा कि दो आक्सफोर्ड नहीं हो सकते । यदि कोटा जाने के ये तीनों कारण भ्रामक है, तो फिर उपाय क्या है इसका उपाय है कि कोटा के अच्छे सूत्रों को हम कोरबा में स्थापित करें । इस सफलता सूत्र के चार बिंदू हैं -1 छात्रों की प्रतिबध्दता -कोटा में लाखों की फीस देकर बच्चों पर दबाव हो जाती है कि वह अपनी सफलता के लिए जान लड़ा देता है । यह पालक तथा शिक्षक काउंसलिंग के द्वारा ला सकते हैं । 2. समय की उपलब्धता कोटा के पक्ष में सबसे लाभ दायक परिस्थिति है ये बच्चे नियमित शाला नहीं जाते और उनके पास रिश्तेदार, टीवी और गृह कार्यों से मुक्ति तो होती है इस प्रकार उसके पास प्रतिदिन नौ घंटे अतिरिक्त होते हैं ।


जिसमें वह अपनी प्रेक्टिस पूरी कर सकता है लेकिन जब कोरबा के शिक्षक पढ़ाते हैं तो पालक बच्चों को शाला भेजते हैं । टीवी भी उपलब्ध कराते हैं, और शादियों में भी ले जाते हैं । घर के छोटे-मोटे कार्य भी कराते हैं । इस प्रकार कोरबा की कोचिंग को काटा की कोचिंग की उपेक्षा 25 प्रतिशत समय दिया जाता है लेकिन रिजल्ट में दोनों को आमने सामने किया जाता है । 3. कम्पीटिशन तथा माहौल का अभाव कोटा में एक कक्षा के सभी छात्रों के अंक 80 से अधिक होते हैं, उन्हें संभावित प्रश्नों का अत्यधिक कार्य देकर और टेस्ट ले कर एक प्रतियोगिता का माहौल बनाया जाता है । कोरबा कि कक्षाओं में यह माहौल कभी अनुपस्थिति था लेकिन पिछले वर्ष से इसे संभव कर दिया गया है । 4. प्रश्नों कि उपलब्धता-इसमें कोटा विशाखापटनम, भिलाई तथा कोरबा में एक प्रतिशत का भी अंतर नहीं है विश्व का सर्वश्रेष्ठ स्टडी मटेरियल यहाँ भी उपलब्ध है तथा शिक्षक उसे समझाने में भी सक्षम है । इन चार प्रयत्नों के साथ पाँचवी यदि छात्रों को माता-पिता की देखरेख से भी मिलती है तो कोरबा कि तैयारी कोटा से भी अधिक अच्छी होती है । बच्चों को कहीं भी बाहर जाने की आवश्यकता नहीं ।


यह एक अत्यंत चौकाने वाला तथ्य है कि इस प्रकार जो बच्चे आई.आई.टी. में प्रवेश ले लेते हैं । जीवन के प्रति उनका नजरिया बदल जाता है हमारे टैक्स के करोड़ों रूपये खर्च करवाकर डिग्री लेकर उनका लक्ष्य बनाता है । अमेरिका में नौकरी कर स्वयं के लिए करोड़ो कमाना वे नाशा के लिए तथा अमेरिकन कंपनीयों के लिए रिसर्च करते हैं । न तो अपने देश की उन्नती के लिए यहाँ नौकरी करना पसंद करते हैं और न ही उनकी कोई रिसर्च भारत कि उन्नती में सहायक है । क्या आपने आई.आई.टी. ग्रेजुएट कार्य कर रहे हैं । शुन्य या एक लेकिन ऐसे पालक दो दर्जन मिल जायेंगें जो गर्वपूर्वक बतायेंगें कि उनके पुत्र आई.आई.टी. से ग्रेजुएट कर अमेरिका के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं । इनमें उन्हें गर्व का अनुभव होता है ये हमारे संस्कारों का स्तर है । इन कोटा फैक्टरी से उत्पादित प्रोडक्ट के लिए ही हमारे शिक्षा मंत्री चिन्तित हैं । आई.आई.टी. खड़गपुर के विनोद गुप्ता जैसे एकाध ही होते हैं जो शिक्षा के विकास कि चिंता करते हैं ।