कोरबा,23 मई (वेदांत समाचार) I ऊर्जानगरी के प्रसिध्द ख्यातिलब्ध प्राचार्य इंडस पब्लिक स्कूल दीपका एवं शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता का मानना है कि मनुष्य को प्रतिदिन एक नेक काम अवश्य करना चाहिए । डॉ. संजय गुप्ता के मुताबिक हम जब शाम को अपना काम समाप्त कर घर लौटते हैं तब एकांत में बैठ कर दिनभर में किए गए कामकाज का मूल्यांकन करते हैं । दिनभर की मेहनत के बाद हमें यह लगता है कि हमने कुछ भी ऐसा सार्थक नहीं किया जो हमारे खाते में जमा हो सके ।
अनेक बार हम ऐसा महसूस करते हैं कि हमने काम तो दिनभर में बहुत किया परंतु उसका ठोस परिणाम कुछ भी नहीं निकला । अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी कई बार हम अपने खाते शून्य ही दर्ज पाते हैं । यह स्थिति हमें व्यथित करती है । हमें अहसास होने लगता है कि हम हीरे के समान अनमोल जीवन को व्यर्थ गवां रहे हैं ।
कभी-कभी हम सोचते हैं कि जो काम हमने किया है उससे किसी को लाभ नहीं होने वाला समाज का उससे कुछ भी प्रापत नहीं होगा । लेकिन जिस समाज में हम रहते हैं, उस समाज के प्रति हमारा यह दायित्व बनता है कि हम उसे भी कुछ दें । समाज से केवल लेना स्वस्थ सामाजिक विकास की दृष्टि से अनुचित है । इसलिए हम अपने कामकाज के दायित्व के साथ-साथ सामाजिक दायित्व के प्रति भी थोड़े से चिंतित और मुस्तैद हों । इसका अभिप्राय यह है कि हम ऐसा अवश्य करें जिससे हमें मानसिक संतोष हो ।
सवाल यह उठता है कि मानसिक संतोष प्राप्त करने के लिए हम मुस्तैद कैसे होंगें ? इसकी अकेली शर्त यही है कि हम प्रतिदिन एक ऐसा नेक काम करें जो हमें मानसिक संतोष दे । यदि हम शिक्षक हैं तो एक निर्धन विद्यार्थी की पढ़ाई-लिखाई में उसकी अतिरिक्त सहायता करें । हमारा यह गंभीर प्रयास हो कि हमारे सहयोग से वह विद्यार्थी कुछ और बेहतर करके दिखाए । उसकी पढ़ाई-लिखाई की नींव मजबूत हो ताकि भविष्य में यह एक बेहतर नागरिक बन कर समाज को कुछ सार्थक दे सके ।
यदि हम कुशल व्यवसायी हैं तो अपने व्यवसाय में नैतिकता को आधार बनाएं । स्थिति का लाभ उठाकर अतिरिक्त धन कमाने के लिए प्रयास न करें । लाभ उतना कमाएं जिससे हम अपना काम करते हुए समाज के प्रति अपनी जवाबदेही को पूरा कर सकें । इससे दो काम होंगें हमारे अपने स्वयं की तथा हम पर निर्भर परिवार के सदस्यों की उदर पूर्ति होगी साथ ही हमें यह संतोष होगा कि हम समाज के प्रति मुस्तैद हैं । इस संवाद का अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति जहां है वह इस हकीकत का सदैव ध्यान रखे कि जिस समाज और देश में रहते हैं उससे हम केवल लें ही नींह उसे कुछ सार्थक दें भी ।
ऐसा करके हम जहां एक और बेहतर नागरिक होने की अपनी इच्छा पूरी कर सकेंगें वहीं समाज के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी योगदान दे सकेंगें । वस्तुतः मानसिक संतोष प्रदान वाला कोई भी कार्य नैतिक मूल्यों के पोषण से जुड़ा हुआ है । मानसिक संतोष हमें जहां एक ओर अनेक प्रकार की मानसिक व्याधियों से बचाता है, वहीं दूसरी ओर हम स्वयं को साहस से परिपूर्ण पाते हैं । यह स्थिति स्वस्थ सामाजिक संरचना के लिए अनिवार्य है । इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि प्रतिदिन एक नेक काम करें । यह हमें तमाम प्रकार के अवसाद से बचाएगा ।
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