नई दिल्ली: विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत को अपना रास्ता चुनने के लिए किसी भी अन्य देश की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है. विदेशमंत्री का यह बयान रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर सख्त रूख अपनाने के लिए पश्चिमी देशों के भारी दबाव के बीच भारत की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति की पुष्टि करता है. जयशंकर ने कहा कि भारत किसी भी अन्य देश को खुश करने के लिए उसकी ‘हल्की प्रतिच्छाया’ नहीं बन सकता है.
नई दिल्ली में जारी नेताओं और नीतिनिर्माताओं की अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी ‘रायसीना डायलॉग’ के दौरान विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कहा, “हमें अपने रुख पर भरोसा रखना होगा… मुझे लगता है, दुनिया के साथ हमारा उसी तरह पेश आना बेहतर होगा, जैसे हम हैं, न कि कोशिश करके उनकी ‘हल्की प्रतिच्छाया’ बन जाएं…”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह सोचना कि दूसरे हमारे बारे में क्या कहेंगे, यह सोचना कि हमें दूसरों से मंज़ूरी लेनी होगी, मुझे लगता है, उस युग को हमें पीछे छोड़ देना चाहिए.
मंगलवार को विदेशमंत्री ने यूक्रेन संकट को लेकर यूरोपीय देशों के विदेशमंत्रियों के सवालों के जवाब दिए थे, और पूछा था कि उस वक्त यूरोप कहां था, जब अफगानिस्तान जैसे एशियाई देश संकट में थे. यूरोपीय देशों पर अफगान जनता को संकट में धकेल देने का आरोप लगाते हुए जयशंकर ने यूरोपीय नेताओं को याद दिलाया कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी बड़ी समस्याएं हैं.
विदेशमंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय माहौल का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने तथा अतीत में की गई गलतियों को ठीक करने को लेकर भारत को प्रैक्टिकल होना चाहिए, तथा सुरक्षा पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा, “अगर हमने कोई एक उपलब्धि चुननी हो, जो पिछले 75 वर्षों के दौरान हमने किया हो, दुनिया को दिया हो, तो वह यह सच्चाई है कि हम लोकतंत्र हैं…”
विदेशमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र ही भविष्य है, और ऐसा भारत में अतीत में किए गए फैसलों की वजह से है. उन्होंने कहा, “एक वक्त था, जब दुनिया के इस हिस्से में सिर्फ हम ही एकमात्र लोकतंत्र थे… अगर आज लोकतंत्र दुनियाभर में फैला है, तो कुछ हद तक इसका श्रेय भारत को जाता है।
[metaslider id="347522"]