एक मंदिर ऐसा भी: यहाँ जानें के लिए मर्द को बनना पड़ता है औरत, 

नई दिल्ली: अक्सर आपने देखा होगा कि जब भी कोई फेस्टिवल होता है तो लड़कियां या महिलाएं अच्छे से तैयार होती हैं. खास मौकों पर महिलाएं 16 तरह के श्रृंगार करती हैं और सज-धज कर रहती हैं. लेकिन, केरल में एक ऐसा फेस्टिवल है, जिसमें लड़के तैयार होते हैं और महिलाओं की तरह 16 श्रृंगार करते हैं. इतना ही नहीं, लड़कियों की तरह ही साड़ी आदि कपड़े पहनते हैं यानी पूरी तरह लड़की बनकर इस फेस्टिवल में हिस्सा लेते हैं. ऐसे में जानते हैं इस फेस्टिवल से जुड़ी खास बातें।

यह खास फेस्टिवल केरल की राजधानी से 80 किलोमीटर दूर कोल्लम के एक मंदिर कोट्टंकुलंगार श्री देवी मंदिर में हर साल आयोजित किया जाता है. इस फेस्टिवल का नाम चमयाविलक्कू है, जो 19 दिन का फेस्टिवल है. लेकिन, इस फेस्टिवल के आखिरी दो दिन कोट्टंकुलंगार चमयाविलक्कू परंपरा को पूरा किया जाता है, जिसमें लड़के, लड़कियों की तरह तैयार होकर इस मंदिर में आते हैं.

बता दें कि कोरोना की वजह से दो साल तक इस फेस्टिवल को इजाजत नहीं दी गई थी, लेकिन इस साल मार्च के आखिरी में इसका आयोजन किया गया था. इस फेस्टिवल को देखने के लिए हजारों लोग जमा होते हैं और देखते हैं कि किस तरह से पुरुष महिलाओं के कपड़े पहनकर तैयार होते हैं. लेकिन, यहां किसी को ऐसा करने में शर्म नहीं आती है और किसी की मजाक नहीं बनाई जाती है.

यह प्रसिद्ध मंदिर केरल का एकमात्र मंदिर है जिसके गर्भगृह की छत नहीं है. लड़के जब तैयार होते हैं, तो मेकअप करते हैं और ज्वैलरी भी पहनते हैं. इस परपंरा के लिए लड़कों के घर वाले या फिर मंदिर में मौजूद मेकअपमैन उनका मेकअप करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से लड़कों को जल्द ही नौकरी मिलता है और धन-वैभव की प्राप्ति होती है.

क्यों करते हैं ऐसा?- वहीं एक लोक कथा के अनुसार, एक बार कुछ चरवाहों ने एक नारियल को जंगल में मिले पत्थर पर मारकर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पत्थर से खून की बूंदे टपकने लगी, वे डर गए और गांववालों को बताया. ज्योतिषियों को बुलाया गया तो उन्होंने बताया कि पत्थर में वनदुर्गा की अलौकिक शक्तियां हैं और मंदिर के निर्माण के तुरंत बाद पूजा शुरू की जानी चाहिए. इसके बाद गांव वालों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया. जिन चरवाहों को वह नारियल मिला था, उन्होंने महिलाओं का रूप धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना की, इस तरह से यह परंपरा शुरू हुई. और आस्था और बढ़ती गयी.