Chaitra Navratri 2022। पूरे देश में इन दिनों Chaitra Navratri पूर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है और आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जा रही है। सभी माता मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। लाल फूल और लाल चुनरी से मां की पूजा की जा रही है। ऐसे में हम आपको एक ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जहां बिना सिर वाली देवी मां की मूर्ति है। करीब 6000 साल पुराने इस मंदिर से जुड़ी परंपराएं काफी रोचक है।
झारखंड में है बिना सिर वाली माता का मंदिरझारखंड के मां छिन्नमस्तिका मंदिर दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित रामगढ़ जिले के रजरप्पा में स्थित मंदिर का इतिहास 6000 साल पुराना है। मां कामाख्या मंदिर के बाद इसे दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है।
संगम स्थल पर मौजूद है मां छिन्नमस्तिका मंदिरमां छिन्नमस्तिका का मंदिर रजरप्पा की भैरवी-भेदा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है। यहां वैसे तो पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में बड़ी संख्या में देवी भक्त पहुंचते हैं।मां के हाथों में है कटा हुआ सिर
इस शक्तिपीठ मंदिर में मां की मूर्ति में उनका कटा हुआ सिर उनके हाथों में है और उनके गले से खून बह रहा है, जो लंबवत मुंह में चला जाता है। चट्टान में देवी की 3 आंखें हैं। गले में सर्प माला और मुंड माल है। माँ के बाल खुले हैं और जीभ बाहर निकली हुई है। माँ कामदेव और रति के ऊपर नग्न मूर्ति हैं। उनके दाहिने हाथ में तलवार है।इस शक्तिपीठ मंदिर को लेकर ये है मान्यता
इस देवी मंदिर में बिना सिर के वाली देवी मां की मूर्ति होने के पीछ एक पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई थीं। नहाने के बाद सहेलियों को भूख लगी और भूख से तड़पने के कारण उनका रंग काला पड़ने लगा। दो सहेलियों ने देवी मां से कुछ खाने के लिए कहा। अपनी सहेलियों को तड़पता देख देवी मां ने तलवार से अपना सिर काट लिया। इसके बाद मां का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में गिर गया और उसमें से तीन धाराएं बहने लगीं। माँ ने अपने सिर से निकलने वाली उन दो धाराओं को अपने दो दोस्तों की ओर बहने दिया। बाकी वह खुद पीने लगी। तभी से उनके इस रूप को छिन्नमस्तिका के नाम से पूजा जाने लगी।
6000 साल पुराना है इतिहासमां छिन्नमस्तिका का मंदिर का इतिहास 6000 साल पुराना बताया जाता है। पुराणों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ होगा। मां छिन्नमस्तिका का मंदिर के अलावा भी यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दास महाविद्या मंदिर, बाबा धाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर हैं, जो सभी दामोदर नदी और भैरवी के संगम पर स्थित है।
रात को मंदिर में टहलती हैं मांऐसी मान्यता है कि छिन्नमस्तिका मंदिर में देवी मां रात को विचरण करती हैं। यही कारण है कि जब रात्रि में पूर्ण एकांत होता है तो अनेक साधक तंत्र-मंत्र सिद्धि को प्राप्त करने में लगे रहते हैं। मंदिर के 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान करके सिद्धि प्राप्त करते हैं। इसके अलावा यहां धार्मिक मान्यताओं हैं कि यह स्थान माता का अंतिम विश्राम स्थल भी है। मां को बकरे की बलि दी जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में पाथ कहते हैं। यह परंपरा यहां सदियों से चली आ रही है। चैत्र नवरात्रि के 7वें दिन की सुबह बकरे की बलि दी जाती है। इसके बाद बकरी के कटे सिर पर कपूर रखकर मां की आरती की जाती है।
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