देश में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। क्या आप ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं। जिसकी खासियत अन्य शक्तिपीठों और मंदिरों से अलग है। राजस्थान के नागौर जिले के भंवाल माता मंदिर की कहानी बेहद अलग है। दूसरे मंदिरों की तरह यहां माता को मिठाई नहीं, बल्कि शराब का भोग लगाया जाता है। वह भी ढाई प्लाया शराब। सुनने में थोड़ा अजीब लगे, लेकिन यह सच है। यह भोग हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। अगर भक्त के पास बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, चमड़े का बेल्ट और पर्स है, तो प्रसाद नहीं चढ़ा सकता।
इस मंदिर में शराब को नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। माता ढाई प्लाया शराब ग्रहण करती हैं। चांदी के प्याले में शराब भरकर पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी से प्रसाद ग्रहण करने का निवेदन करते हैं। कुछ ही देश में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा तीन बार किया जाता है। मान्यता है कि काली माता उसी भक्त का भोग लेती है। जिसकी मन्नत पूरी होनी होती है। वह सच्चे दिल से भोग लगाता है। कहा जाता है कि भंवाल माता प्राचीन समय में एक पेड़ के नीचे से स्वयं प्रकट हुई थीं।
डाकुओं ने बनवाया था मंदिर
800 साल पुराने इस मंदिर को डाकुओं ने बनवाया था। एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के दल को सैनिकों ने घेर लिया है। मौत को निकट देख उन्होंने माता को याद किया। मां ने अपनी शक्ति से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के गृभगृह में देवी की दो मूर्तियां स्थापित है।
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