छत्तीसगढ़ के 36 रियासतों में एक है धमधा, यहां एक-दो, तीन नहीं बल्कि पूरे 126 तालाब, जल संरक्षण का बेहतरीन नमूना

छत्तीसगढ़ के 36 रियासतों में से एक है धमधा। यह गोंड राजाओं का गढ़ था। यहां उनका किला है। किले को सुरक्षित रखने चारों तरफ मोती की माला जैसे पिरोए गए 126 तालाब। इन तालाबों को प्राकृतिक रूप से भरने बना है बूढ़ा नरवा। छह कोरी छह आगर तरिया वाले गढ़ के रूप आज भी धमधा की पहचान होती है। धमधा का इतिहास 11 सौ साल पुराना है।  

धमधा में आज भी कई पुरातन महत्व की चीजें नजर आ जाती है। गोंड राजाओं का किला और मंदिर देखने आप धमधा जाएं तो एक बात को बड़े गौर से देखें। हमारे पूर्वजों की जल संरक्षण को लेकर सोच। यकीन मानिए आप आश्चर्य में डूब जाएंगे। धमधा के किलो को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिए गोंड़ राजाओं ने किले के चारों तरफ 126 तालाब खुदावाए थे। इन 126 तालाबों में पानी भरने का काम बूढ़ा नरवा (नाला) करता था। बूढ़ा नाला जिसका एक छोर धमधा से 5 किलोमीटर दूर खेतों में है। बारिश के दिनों में इस खेतों का पानी इस बूढ़ा नरवा के माध्यम से तालाबों में आता था। पहले तालाब फिर दूसरे, फिर तीसरे और अंत में 126 वां तालाब। नाले के पानी से पहले तालाब भरता था, जब वह छलक उठता तो पानी ओवर फ्लो होकर दोनों तालाबों को जोड़ने बने नाली के सहारे दूसरे, फिर तीसरे तालाब में पहुंचता था। हर तालाब के लिए एक जंक्शन बना हुआ है। यह संरचना आज भी काम करती है, इसलिए धमधा के तालाब कभी सूखते नहीं है। जल संरक्षण के साथ किले की सुरक्षा का इसे बेहतरीन सोच मान सकते हैं। 

समय के साथ धमधा ने आकार लिया 
धमधा शहरीकरण की चपेट में आया। तालाब पटते गए। आज भी पट रहे हैं। आज केवल 25 तालाब बचे हुए हैं। गोविंद पटेल, वीरेंद्र देवांगन ने बुजुर्गों से सुनी कहानी को लेकर धमधा के तालाबों को खोजना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक समिति बनाई धर्मधाम गौरव गाथा समिति। इसमें शहर के प्रबुद्ध जनों को जोड़ा। बुजुर्गों से मिली जानकारी के आधार पर सभी तालाबों का पता चल गया। अब विलुप्त हो चुके तालाबों को पुनर्जिवित करने का काम शुरू हो गया है। जिला प्रशासन ने भी इसे संज्ञान में लेकर तालाबों से कब्जा हटाने नोटिस देना शुरू कर दिया है। अभी हाल ही में दुर्ग कलेक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने तालाब की स्थिति देखी। तालाबों की नगरी धमधा को उसके पुराने स्वरूप में लाने काम शुरू करने कहा है। पहले चरण में 12 तालाबों से अतिक्रमण हटाए जाएंगे। 

ग्यारहवीं शताब्दी का चौखड़िया कुंड 
धमधा का पहला तालाब चौखड़िया कुंड ग्यारहवीं शताब्दी के पहले किसी अज्ञात राजवंश ने बनवाया था। राजवंश समाप्त होने के बाद यह स्थान वीरान हो गया। इसके बाद गोंड राजाओं ने यहां मंदिर की मरम्मत की और किला बनवाया और उसकी सुरक्षा के लिए तालाब बनवाया। फिर हर जाति-वर्ग के लोगों ने धार्मिक मान्यता, पेयजल, निस्तारी और सिंचाई सुविधाओं के लिए तालाब बनवाए। रोचक बात यह है कि यहां कई जातियों और वर्गों के लोगों ने सार्वजनिक तालाब बनवाए। जैसे पान की खेती करने वालों ने 16 बावली खुदवाए और यहीं पास में बरेज बाड़ी लगवाई। यहां हर तालाब का अपना और विलक्षण इतिहास है। 

विलक्षण है जल संरक्षण का धमधा मॉडल
धर्मधाम गौरव गाथा समिति के पदाधिकारी वीरेंद्र देवांगन ने बताया कि धमधा में 126 तालाबों की श्रृंखला है। यह सरोवर अपने भरने के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर नहीं करते। इन्हें भरने के लिए नजदीकी गांवों के खेतों से लंबी नहर श्रृंखला बनाई गई थी। खेतों का अतिरिक्त पानी इनमें आता था और यह सरोवर सालभर भरे रहते थे। इस नहर श्रृंखला का लाभ यह भी था कि इसके माध्यम से आने वाले पानी से भूमिगत जल भी रिचार्ज होता था। नहरों की श्रृंखला लंबी है और खुशी की बात यह है कि इनमें सुधार कार्य भूपेश बघेल सरकार द्वारा शुरू किया है। बता दें कि पिछले साल यहां के एक तालाब में मछली पकड़ने डाले गए जाल में एक 200 किलो का कछुआ निकला था।

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